अष्टनायिका साधना मुख्यतः मोहिनी और वशीकरण जैसे कार्य करने के लिए की जाती हे,यक्षिणी और अप्सरा की तरह ही अष्टनायिका की साधना होती हे,
अष्टनायिका साधना एक तांत्रिक प्रथा है जो तंत्रिक शास्त्र में विस्तार से वर्णित है। इस साधना का उद्देश्य देवी या शक्ति की आराधना और उनके साथ मिलकर दिव्य शक्तियों का पुनर्निर्माण करना होता है। अष्टनायिका साधना का नाम इसलिए है क्योंकि इसमें आठ मुख्य नायिकाएँ (दिव्य शक्तियाँ) होती हैं, जिनकी साधना किनारे किनारे की तांत्रिक प्रथाओं के माध्यम से की जाती है।
अष्टनायिका साधना के लिए विशिष्ट मंत्र, यंत्र, और अनुष्ठान होते हैं जिनका पालन किया जाता है। इस साधना का मुख्य उद्देश्य दिव्य शक्तियों के साथ सांयुक्त होकर आत्मा के सुख, समृद्धि, और सिद्धियों की प्राप्ति करना होता है।
यदि आप अष्टनायिका साधना की विस्तारित जानकारी चाहते हैं, तो यह बेहद गहरा और विशेषज्ञ साधना है, इसलिए सुरक्षित और उचित मार्गदर्शन के साथ इसे अपनाना चाहिए। साधकों के लिए इसे केवल विशेषज्ञ गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए, और यह किसी के निर्देशन बिना नहीं करना चाहिए।
तांत्रिक साधना के बारे में सही जानकारी न होने पर खतरा हो सकता है, और इसे सावधानी से करना चाहिए।
अब आठ प्रकार की नायिकाओं की साधन-विधि एवं उनके मन्त्रों का वर्णन किया जाता है।
अष्ट नायिकाओ के नाम इस प्रकार हैं-
१. जया, २. विजया, ३. रतिप्रिया, ४. काञ्चन-कुण्डली,
५. स्वर्णमाला, ६- ज्यावती, ७- सुरंगिनि और ८ विद्रविनी
अष्टनायिका साधन
अब आठ प्रकार की नायिकाओं की साधन-विधि एवं उनके मन्त्रों का वर्णन किया जाता है।
अष्ट नायिकाओ के नाम इस प्रकार हैं-
१. जया, २. विजया, ३. रतिप्रिया, ४. काञ्चन-कुण्डली,
५. स्वर्णमाला, ६- ज्यावती, ७- सुरंगिनि और ८ विद्रविनी
जया साधन
मन्त्र-
ॐ ह्रीं ह्रीं नमो नमःजये हूँ फट्।
साधन विधि-
अमावस्या से प्रारम्भ करके दूसरी अमावस्या तक इस मन्त्र का प्रतिदिन पाँच हजार की संख्या में जप करना चाहिए। जप की क्रिया किसी एकान्त स्थान में या शून्य शिव मन्दिर में बैठकर करनी चाहिए।
जप समाप्त होने पर अर्द्धरात्रि के समय जया’ नामक नायीका साधक के समक्ष प्रकट होकर उसे अभिलाषित वर प्रदान करती है।
‘विजया साधन
“ॐ हिलि हिलि कुटी कुटी तुहु तुहु मे वशं वशमाँनय
विजये श्र: श्र: स्वाहा।
साधन विधि-
नदी तटवर्ती श्मशान में जो भी वृक्ष हो, उसके ऊपर चड़कर रात्रि के समय में, उक्त मन्त्र का जप करना चाहिए।
तीन लाख मन्त्र का जप पूरा हो जाने पर विजया’ नामक नायिका प्रसन्न होकर साधक के वशीभूत होती है और उसे अभिलाशीत वर प्रदान करती है।
रतिप्रिया साधन
“हू रतिप्रिये साधय साधय जल-जल धीर- धीर पाजापय स्वाहा”
पाठ-भेद के अनुसार इस मन्त्र का दूसरा स्वरूप इस प्रकार है-
“हे रतिप्रिये साधे साधे जल जल धीर धीर याग्नप्रय स्वाहा”
साधन विधि-
रात्रिकाल में नग्न होकर, नाभि के बराबर जल में बैठकर अथवा खड़े होकर इस मन्त्र का जप करना चाहिए।
महीने तक हविष्यापी होकर रातभर जप करना चाहिए । इस प्रकार जप समाप्त होने पर रतिप्रिया नामक नायिका वशीभूत होकर साधक को इच्छित वर प्रदान करती है।
कन्चंनकुण्डली साधन
मंत्र
“ॐ लोलनि पहाडहासिनि सुमुखिः कन्चंनकुण्डलीनि खे छ च क्षे हु।।
साधन विधि-
गोबर को एक पुतली बनाकर एक वर्ष तक पाचादि द्वारा कन्चंनकुण्डली नामक नायीका का पूजन और उस मन्त्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। तिराहे पर स्थित बरगद वृक्ष की जड़ में बैठकर, रात्रि के समय गुप्त भाव से इस मन्त्र का जप करना चाहिए। जप समाप्त हो जाने पर कन्चंनकुण्डली नामक नायीका साधक के वशीभूत होकर, उसे इचित वर प्रदान करती है।
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