साधक माता कामख्या की साधना करता हे और उसको जब सफलता ना मिले तब साधक को कामख्या पीठ में जाकर माता कामाख्या की साधना करनी चाहिए, साधना से पूर्व साधक को कामाख्या चालीसा का पाठ करना चाहिए फिर साधना का प्रारम्भ करने से साधक की साधना फलीभूत हो जाती हे,
दोहा-
सुमिरन कामाख्या करूं, सकल सिद्धि की खानि। होइ प्रसन्न सत करहु माँ, जो मैं कहाँ बखानि।।
चालीसा-
जै जै कामाख्या महारानी। दात्री सब सुख सिद्धि
भवानी।। कामरूप है वास तुम्हारो। जहँ ते मन नंहि टरत है टरो।। ऊँचे गिरि पर करहुँ निवासा। पुखहु सदा भगत मन आसा।। रीद्धि सिद्धि तुरतै मिलि जाई। जो मन ध्यान धरै मनलाई।।
जो देवी का दर्शन चाहे। हृदय बीच याही अवगाहे ।।
प्रेम सहित पण्डित बुलावावे। शुभ मुर्हत निश्चित विचरावे।। अपने गुरु से आज्ञा लेकर। यात्रा विधान करे निश्चय धर।। पूजन गौरि गणेश करावे। नाब्दीमुख भी श्राद्ध जिमावे।। को बाँयें व पाछे कर। गुरु अरु शुक्र उचित रहने पर।। शुक्र जब सब ग्रह होवें अनुकूला। गुरु पितु मातु आदि सब हूला।।
नौ ब्राह्मण बुलवाय जिमावे। आशीर्वाद जब उनसे पावे।। सबहिं प्रकार शकुन शुभ होई। यात्रा तबहिं करे सुख होई।। जो चह सिद्धि करन कछु भाई। मंत्र लेइ देवी कहँ जाई।। आदरपूर्वक गुरु बुलावे। मंत्र लेन हित दिन ठहरावे।। शुभ मुहूर्त में दीक्षा लेवे। प्रसन्न होई दक्षिणा देवे।। का नमः करे उच्चारण। मातृका न्यास करे सिर धारण।। षडंग न्यास करे सो भाई। माँ कामक्षा धर उर लाई।। देवी मंत्र करे मन सुमिरन। सन्मुख मुद्रा करे प्रदर्शन ।। जिससे होई प्रसन्न भवानी। मन चाहत वर देवे आनी।। जबहिं भगत दीक्षित होइ जाई। दान देय ऋत्विज कहँ जाई।।
विप्रबंधु भोजन करवावे। विप्र नारि कन्या जिमवावे ।। दीन अनाथ दरिद्र बुलावे। धन की कृपणता नहीं दिखावे।। एहि विधि समझ कृतारथ होवे। गुरु मंत्र नित जप कर सोवे ।। देवी चरण का बने पुजारी। एहि ते धरम न है कोई भारी।। सकल रीद्धि-सिद्धि मिल जावे। जो देवी का ध्यान लगावे ।।
तू ही दुर्गा तू ही काली। माँग में सोहे मातु के लाली।। वाक् सरस्वती विद्या गौरी। मातु के सौहें सिर पर मौरी।। क्षुधा, दुरत्यया, निद्रा तृष्णा। तन का रंग है मातु का कृष्णा।। कामधेनु सुभागा और सुन्दरी। मातु अंगुलिया में है मुंदरी।। कालिरात्रि वेदगर्भा धीश्वरि। कंठमाला माता ने ले धरि।।
तृषा सती एक वीरा अक्षरा। देह तजी जनु रही नश्वरा।। स्वरा महा श्री चण्डा। मातु न जाना जो रहे पाखण्डी।। महामारी भारती आर्या। शिवजी की ओ रही भार्या ।। पद्मा, कमला, लक्ष्मी, शिवा। तेज मातु तन जैसे दिवा।। उमा, जयी, ब्राह्मी भाषा। पुरवंहि भगतन की अभिलाषा।। रजस्वला जब रूप दिखावे। देवता सकल पर्वतहिं जावें।। रूप गौरि धरि करहिं निवासा। जब लग होइ न तेज प्रकाशा।। एहि ते सिद्ध पीठ कहलाई। जउन चहै जन सौ होई जाई।।
जो जन यह चालीसा गावे। सब सुख भोग देवि पद पावे।। होहिं प्रसन्न महेश भवानी। कृपा करहु निज जन अस वानी।।
दोहा-
कहें गोपाल सुमिर मन, कामाख्या सुख जग हित माँ प्रगटत भई, सके न कोऊ खानि।। खानि। नाम बड़ा!!
साधक मनोकामना पूर्ति हेतु भी कामाख्या चालीसा का पाठ कर सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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