कामाख्या रक्षा मंत्र

कोई भी आप बड़ी तांत्रिक साधना करना चाहते हो तो पहले आपको सुरक्षा मंत्र से सुरक्षा घेरा बनाना जरुरी होता हे आज में आपको कामाख्या रक्षा मंत्र देने वाला हु इस मंत्र का प्रयोग करके आप अपने देह की रक्षा कर सकते हो,

तो चलिए विस्तार से जानते हे कामाख्या रक्षा मंत्र कैसे सिद्ध होता हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

कामाख्या रक्षा मंत्र

मन्त्र:-

ॐ  नमो  कामरु कामाख्या देवी कहाँ जाने को हुआ मेरा  मन आत्मरक्षा बंदि होऊ सावधान सिर हाथ में दहंत  और  बंधन  गर्दन पेट पीठ बंधन और बंधन चरण अष्टांग  बाँधू मनसा के वरदान करा सके उमा के  बान  कामाख्या वह होऊ अमर आदेश हाडी दासी चंडी को दुहाई।।

विधि

यह मा कामाख्या देवी का  मन्त्र है। यह मन्त्र शरीर की रक्षा के लिए अति उत्तम हे।इसे कन्ठस्त  करके  अपने  घर  के  बाहर निकलते समय इस मंत्र का ७ बार जाप करना चाहिए।

संक्षिप्त पूजा विधि-

साधक  सर्वप्रथम  समर्थ  गुरु  से  दीक्षा ग्रहण कर साधना  सम्बन्धित  समस्त आवश्यक जानकारी एवं विधान प्राप्त कर ले। तत्पश्चात् शुभकाल में स्नानादि कर शुद्धवस्त्र धारणकर कार्यानुसार दिशा की ओर मुख कर  आसन  पर  भगवती  के समक्ष बैठ जाये। श्री कामाख्या  प्रतिमा  अथवा  यंत्र  का  अभाव हो त भगवती  दुर्गा, गौरी, काली, पार्वतीजी अथवा शिवलिंग के  समक्ष  कामाख्याजी की साधना सम्पन्न की जा सकती है। दीपक प्रज्जवलित करते हुए भगवान भैरव का  ध्यान  करें  एवं साधना में निर्विघ्नता के लिये उनसे  प्रार्थना  करें।  अक्षत्  पुष्प चढ़ायें तथा जल

से हाथ धो लें। अब मुखशुद्धि के लिये निम्न मंत्रों से आचमन करें-

ॐ केशवाय नमः।

ॐ माधवाय नमः।

ॐ नारायणाय नमः।

तत्पश्चात् हाथ धोयें-

हृषीकेशाय नमः।

इसके  बाद  देह एवं स्थान शुद्धि हेतु निम्न मंत्र के द्वारा अपने चारों ओर जल छिड़के-

ॐ  अपवित्रः  पवित्रो  वा  सर्वावस्थां  गतोपि  वा।

यः  स्मरेत्  पुण्डरीकाक्षं  स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।

इसके  बाद आसन के नीचे पूर्वादिक भाग में त्रिकोण मण्डल बनाकर निम्न मंत्रों द्वारा पृथ्वी आसन पूजन करें-

ॐ ही आधारशक्तये नमः,

ॐ कूर्मायै नमः,

ॐ अनन्ताय नमः,

ॐ पृथिव्यै नमः।

तत्पश्चात्  उस  त्रिकोण  का  स्पर्श करते हुए भूमि प्रार्थना करें-

पृथ्वि!  त्वया  धृतालोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्।।

मंत्रोच्चारण  के साथ भूमि व आसन पर पुष्प-अक्षत अर्पित  कर  धूप दीपक दिखाये। तदोपरान्त गुरु एवं गणेश  का ध्यान  व  पूजन  करते हुए भगवती के आंचल में बैठकर साधनारम्भ करें।

कामाख्या मंत्र विनियोग-

ॐ अस्य श्री कामाख्या मंत्रस्य परमेष्ठि ऋषिः, गायत्री छन्दः,  त्रिपुराख्या देवता मम सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे

विनियोगः।

बीजमंत्र  से  षडंगन्यास कर भगवती का ध्यान करें-

ध्यानम्-

अतिसुललितवेशां हास्यवक्त्रां त्रिनेत्रां, जितजलदसुकान्ति पटट्वस्त्रांप्रकाशाम्। अभयवरकराळ्यां रत्नभूषतिभव्याम्, सुरतरुतलपीठे रत्नसिंहासनस्थाम्।। हरिहरविधिवन्द्यां शुद्धबुद्धिस्वरूपाम्, मदनशरसमाक्तां कामिनी कामदात्रीम्। निखिलजनविलासां कामरूपां भवानीम्, कलिकलुषनिहन्त्री योनिरूपां भजामि।।

ध्यानोपरान्त साधक सामर्थ्यानुसार उत्तम सामग्रियों द्वारा  भक्तिभाव  से भगवती का पूजन करें। स्थूल सामग्रियों के अभाव में भगवती का मानसिक भाव से पूजन करें।

मानसपूजन-

ॐ  लं  पृथ्वी  तत्त्वात्मकं  गन्धं समर्पयामि नमः।

ॐ  हं  आकाश  तत्त्वात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः।

ॐ   यं   वायु  तत्त्वात्मकं  धूपं  घ्रापयामि  नमः।

ॐ  रं  अग्नि   तत्त्वात्मकं  दीपं  दर्शयामि  नमः।

ॐ  वं  अमृततत्त्वात्मकं  नैवेद्यं  निवेदयामि नमः।

ॐ  सौं  सर्वतत्त्वात्मकं  ताम्बूलं  समर्पयामि नमः।

पूजन उपरान्त इस दृढ़ भावना के साथ कि- मेरे गुरु, मंत्र  और  देवता से श्रेष्ठ कोई नहीं हैं और मेरा मंत्र अवश्य सिद्ध होगा, जपारम्भ करें।

बीजमंत्र-

‘क्षौ।

त्र्यक्षर मंत्र-

‘त्रीं श्रीं त्री।

मूलमंत्र

‘क्षौं ॐ ॐ वषट् छ ।’

षड्क्षर मंत्र-

‘ॐ कामाक्ष्यै नमः।’

शत्रु नाशन मंत्र-

‘ॐ नमः कामाक्ष्यै अमुकस्य हन हन स्वाहा।’

श्री कामाख्या गायत्री-

‘ॐ कामाक्ष्यै विद्महे भगवत्यै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात्।

इस तरह आप कामाख्या रक्षा मंत्र से अपनी शरीर की रक्षा कर सकते हो उपरी बाधा से और नकारात्मक उर्जा से अपने शरीर की रक्षा कर सकते हो.

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