आज में आपको चार पीठ कौन कौन से हे उसके बारे में बताने वाला हु, आप इस पीठ में मंत्र सिद्धि हासिल कर सकते हो, कोई भी साधना आपको सिद्ध करनी हो तो आप इस पीठ में जाकर करोगे तो आपको जल्द से जल्द सिद्धि हासिल हो सकती हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे चार पीठ कौन कौन से हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मन्त्र-सिद्धि के लिए चार पीठों का वर्णन जैन शास्त्रों में मिलता है-
श्मशानपीठ, शवपीठ, अरण्यपीठ और श्यामापीठ।
१.श्मशानपीठ-
भयानक श्मशानभूमि में जाकर मन्त्र की आराधना करना श्मशानपीठ है। अभीष्ट मंत्र की सिद्धि का जितना काल शास्त्रों में बताया गया है, उतने काल तक श्मशान में जाकर मंत्र साधना करना आवश्यक है। भीरू साधक इस पीठ का उपयोग नहीं कर सकता है। प्रथमानुयोग में आया है कि सुकुमाल मुनिराज ने णमोकार मंत्र की आराधना इस पीठ में करके आत्म सिद्धि प्राप्त की थी। इस पीठ में सभी प्रकार के मंत्रों की साधना की जा सकती है।
२.शवपीठ-
शवपीठ में कर्ण पिशाचिनि, कर्णेश्वरी आदि विद्याओं की सिद्धि के लिए मृतक कलेवर पर आसन लगाकर मंत्र साधना करनी होती है। आत्म साधना करने वाला व्यक्ति इस घृणित पीठ से दूर रहता है । वह तो एकान्त निर्जन भूमि में स्थित होकर आत्मा की साधना करता है।
३.अरण्यपीठ-
अरण्यपीठ में एकान्त निर्जन स्थान, जो हिंसक जन्तुओं से समाकीर्ण है, में जाकर निर्भय एकाग्र चित्त से मंत्र की आराधना की जाती है। निर्ग्रन्थ परम तपस्वी साधक ही निर्जन अरण्यों में जाकर पंच परमेष्ठी की आराधना द्वारा निर्वाण लाभ प्राप्त करते हैं। क्योंकि रोग-द्वेष, मोह, क्रोध, मान, माया और लोभ आदि विकारों को जीतने का एक मात्र स्थान अरण्य ही है। अत् एव महामंत्रों की साधना इसी स्थान पर यथार्थरूप से हो सकती है।
४.श्यामापीठ-
एकान्त निर्जन स्थान में षोडशी नवयौवना सुन्दरी को वस्त्ररहित कर सामने बैठ कर मंत्र सिद्ध करना एवं अपने मन को तिलमात्र भी चलायमान नहीं करना और ब्रह्मचर्यव्रत में दृढ़ रहना श्यामापीठ है। इन चारों पीठों का उपयोग मंत्र- सिद्धि के लिए किया जाता है। किन्तु णमोकार महामंत्र की साधना के लिए इस प्रकार के पीठों की आवश्यकता नहीं है। यह तो कहीं भी और किसी भी स्थिति में सिद्ध किया जा सकता है। यह णमोकार मंत्र समस्त द्वादशांग जिनवाणी का सार है , इसमें समस्त श्रुतज्ञान की अक्षर संख्या निहित है। जैन दर्शन के तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य, पर्याय, नय, निक्षेप, आस्रव, बन्ध आदि इस मंत्र में विद्यमान हैं और समस्त मंत्र शास्त्र की उत्पत्ति इसी महामंत्र से हुई है। समस्त मंत्रों की मूलभूत मातृकाएं इस महामंत्र में निम्न प्रकार से निहित (विद्यमान) हैं।
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं
णमो उव ज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ॥
अब आपको पता चल गया होगा चार पीठ कौन कौन से हे और अगर आप कोई बड़ी सिद्धि हासिल करना चाहते हो तो आप इस पीठ में जाकर सिद्धि हासिल कर सकते हो.
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