आज के इस आधुनिक समय में हर रोग का उपचार आसानी से हो जाता हे पर कई ऐसे असाधारण रोग हे जिसका उपचार करना असंभव हे चाहे कितना भी पैसा खर्च कर लो,जब आपको कही भी जाकर सारवार करते हो और आपको रहत नहीं मिलती हे तो आपको अवश्य तंत्र का सहारा लेना चाहिए में आपको यहाँ नेत्रपीड़ा निवारक मंत्र की साधना बताउंगा जिसकी मदद से आप अपने रोग का और दुसरे का रोग का इलाज कर सकते हो,
नीतिकारों का कथन है, “सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानम्”, अर्थात मनुष्य के शरीर में नेत्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग हैं। बिना नेत्रों के संसार में अंधेरा ही
अंधेरा है। इसलिए नेत्रों की सुरक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है।
बहुत से ऐसे रोग अकस्मात हो जाते हैं, जिनका तत्काल उपचार न कराया जाए तो दृष्टि-दोष उत्पन्न हो सकता है। दृष्टि जा भी सकती है। निम्नलिखित शाबर मंत्रों का प्रयोग अनेक प्रकार के नेत्र विकारों को दूर करने में सक्षम है।
पहला मंत्र
ॐ नमो राम का धनुष लक्ष्मण का बाण आंख दर्द करेतो लक्ष्मण कुमारकी आण।
कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को श्मशान में जाकर उपर्युक्त मंत्र का दस माला जप करके मंत्र सिद्ध कर लें। अब जब किसी की आंख में दर्द–कष्ट हो, तो आंखों से नीम की हरी डाली को स्पर्श करके तथा मंत्र को पढ़ते हुए सात बार झाड़ दें। तुरंत आराम हो जाएगा।
दूसरा मंत्र
ॐ अंगाली, बंगाली अताल पताल गर्द मर्द अदार कटार फट् फट् कट् कट् ॐ हुं हुं ठः ठः।
रविवार अथवा मंगलवार के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर, एकांत में शुद्धता- पूर्वक उपर्युक्त मंत्र का एक माला जप करें। फिर आम की लकड़ी की अग्नि में,
हवन-सामग्री द्वारा एक सौ आठ आहुतियां देकर मंत्रसिद्धि करें। जिस किसी को नेत्र-व्याधि हो, उसे सामने बैठाकर मंत्र को पढ़ते हुए सिर से पांवों तक इक्कीस बार झाड़ा करें। इससे हर प्रकार की नेत्र व्याधि का शमन हो जाएगा।
तीसरा मंत्र
ॐ झलमल जहर भरी तलाई अस्ताचल पर्वत से आयी जहां बैठा हनुमंता जायी फूटै नपके न करे पीड़ा मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा सत्यनाम आदेशगुरु को।
दीपावली की रात्रि में इस मंत्र को एक सौ आठ बार पढ़कर सिद्ध कर लें।
आवश्यकता के समय नीम की टहनी से मात्र ग्यारह बार झाड़ा देने से नेत्रों की पीड़ा दूर होती है।
इसी तरह नेत्रपीड़ा निवारक मंत्र से नेत्र के रोग को ठीक किया जाता हे.
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