आज में आपके लिए उच्छिष्ट यक्षिणी साधना और औषधि उत्पादन यक्षिणी साधना लेकर आया हु,यक्षिणी साधना और उपासना करना बहुत ही कठिन माना जाता हे जो साधक पहले से ही कोई सिद्धि हासिल करके बैठा हे वो साधक ही यक्षिणी साधना और उपासना कर सकता हे,
यक्षिणी साधना करते समय आपको बहुत सारे अनुभव हो सकते हे लेकिन जो साधक निडर होकर साधना सम्पन्न करे साधना को पूर्ण करे उस साधक को ही सिद्धि मिल सकती हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे यक्षिणी साधना और उपासना कैसे की जाती हे और उसके निति नियम क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
अब विभिन्न तन्त्र ग्रन्थों से उद्धत कर, विभिन्न यक्षिरिणयों के साधन मंत्र और उनकी साधन-विधि का वर्णन किया जाता है। पाठ । भेद के अनुसार जिन यक्षिणियों के साधन-मंत्र और साधन-विधि में जो अन्तर है, उसे अलग-अलग प्रकार से पृथक्-पृथक् दे दिया गया है । पाठ-भेद से इसमें कई मन्त्र बार-बार प्रयुक्त हुए हैं। साथ ही साधन सम्बन्धी देसी भाषा के मंत्रों को भी इसी प्रकरण में सन्निविष्ट कर दिया गया है।
जिस किसी यक्षिणी का साधन करना हो, उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करे। मांस-रहित भोजन करे, पान खाना छोड़ दे, किसी का स्पर्श न करे यक्षिणी भैरव सिद्धि का, तथा निश्चिन्त होकर, एकान्त स्थान में मन्त्र का तब तक जप करे, जब तक सिद्धि प्राप्त न हो। जिन यक्षिणियों के साधन के लिए जिस स्थान पर बैठकर मंत्र जाप की विधि का वर्णन किया गया है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।
उच्छिष्ट यक्षिणी साधना
मंत्र
“ॐ जगत्त्रय मातृके पद्मनिभे स्वाहा।।
साधन विधि-
स्नानादि से पवित्र होकर अथवा अपवित्र अवस्था में, बैठे हुए अथवा लेटे हुए, चलते समय अथवा रुकते समय, उच्छिष्ट अवस्था में इस यन्त्र का बीस सहस्र जप करे तो ‘उच्छिष्ट यक्षिणी’ प्रसन्न होकर साधक को अन्न-वस्त्र से परिपूर्ण करती है।
औषधि उत्पादन यक्षिणी साधना
मंत्र
“ॐ ह्रीं सर्वते सर्वते श्रीं क्लीं सर्वोषिधि प्राणदायिनी नैऋत्यै नमो नमः स्वाहा।”
साधन विधि
इस मन्त्र का १००८ बार जप करके किसी औषधि को उखाड़ा जाय तो यक्षिणी की कृपा से वह रोगोन्मूलन में विशेष लाभप्रद सिद्ध होती है।
इस तरह साधक यक्षिणी साधना और उपासना करके यक्षिणी की सिद्धि हासिल कर सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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