शक्ति का महत्त्व

५१ शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ जिसका नाम कामाख्या शक्तिपीठ आज में आपको विस्तार से कामाख्या शक्तिपीठ के बारे में बताने वाला हु, शक्ति का महत्त्व और उसकी साधना आराधना कैसे की जाती हे उसके बारे में विस्तार से बताने वाला हु,

‘कामाख्या तन्त्र’  के अनुसार साधना और जपादि का मूल  ‘शक्ति’  है। ‘शक्ति’ ही जीवन का मूल है और वही  ‘इह-लोक’ एवं  ‘परलोक’ का  मूल है। धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष का मूल भी ‘शक्ति’ ही है। ‘शक्ति’ को जो कुछ  दिया  जाता  है,  वह देवी को अर्पीत होता है। जिन उद्देश्यों से दिया जाता है।

वे सभी सफल होते हैं। ‘शक्ति’ के बिना कलि-युग में जो  अर्चन  करता या करवाता है, वह नरक में जाता है।

शक्ति का महत्त्व

गुरु-तत्त्व:-

‘कामाख्या  तन्त्र’ के अनुसार सदा-शिव ही गुरुदेव हैं। महा-काली  से  युक्त वे देव सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं। मनुष्य-गुरु  ‘गुरुदेव’  नहीं  हैं, उनकी भावना मात्र हैं। मन्त्र  देनेवाला  अपने शिरस्थ कमल में गुरु का जो ध्यान करता है, उसी ध्यान को वह शिष्य के शिर में उपदिष्ट  करता  है।  इस  प्रकार  यह स्पष्ट है कि मनुष्य  में  ‘गुरुदेव’  की  भावना  रखना मूर्खता है।    मनुष्य-‘गुरु’ मात्र मार्ग दिखानेवाला है, स्वयं ‘गुरु-देव’ नहीं हैं।

ज्ञान की श्रेष्ठता:-

‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार ‘ज्ञान’ से श्रेष्ठ कुछ नहीं है। ‘ज्ञान’ के  लिए  ही देवता की उपासना की जाती है।

मुक्ति-तत्त्व:-

‘कामाख्या  तन्त्र’  के अनुसार ‘मुक्ति’ चार प्रकार की है-

१. सालोक्य,

२. सारूप्य,

३. सायुज्य और

४. निर्वाण।

‘सालोक्य  मुक्ति’  में इष्ट-देवता के लोक में निवास करने  का  सौभाग्य  मिलता  है, ‘सायुज्य’ में साधक इष्ट-देवता-जैसा  ही  बन  जाता  है, सायुज्य में वह इष्ट-देव की ‘कला’ से युक्त हो जाता है और ‘निर्वाण मुक्ति’ में मन का इष्ट में लय हो जाता है।

मुख्यत:  ‘आसुरी  व्यक्तित्व’ का लोप होना  ही  ‘मुक्ति’  है।  ‘मुक्ति  देवी’— सनातनी हैं, विश्व-वन्द्या  हैं,  सच्चिदानन्द-रूपिणी  परालम्बा हैं और  सभी की अभीष्ट कामनाओं की पूर्ति करती हैं।

साधक माता की सिद्धि हासिल करके शक्ति का महत्त्व क्या हे वो जान सकता हे और माता कामाख्या क्या चीज़ हे वो जान सकता हे.

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