किसी भी व्यक्ति को अगर उसका शत्रु हद से ज्यादा हेरान करने लगे और किसीकी ना सुने तो उसको सबक सिखाना जरुरी हे, आज में आपको शत्रु नाश उपाय लेकर आया हु आप इस उपाय को करके शत्रु का नाश कर सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे शत्रु नाश उपाय के बारे में और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
यदि आप भी अपने शत्रुओं से परेशान हैं तो अमावस्या के दिन ये उपाए करें और अपने शत्रुओं से मुक्ति पायें।
एक सफ़ेद कागज़ पर भैरव मंत्र जपते हुए काजल से शत्रु या शत्रुओं के नाम लिखें और उनसे मुक्त करने की प्रार्थना करते हुए एक छोटी सी शहद की शीशी जो की किसी भी पंचारे की दुकान से मिल जाएगी में ये कागज़ मोड़ के डुबो दें व् ढक्कन बंद कर किसी भी भैरव मंदिर या शनि मंदिर में गाड़ दें। यदि संभव न हो तो किसी पीपल के नीचे भी गाड़ सकते हैं। कुछ दिनों में शत्रु स्वयं कष्ट में होगा और आपको छोड़ देगा।
मंत्र जप पूरी प्रक्रिया के दौरान करते रहना होगा। अर्थात नाम लिखने से लेकर गाड़ने तक।
मंत्र:
ॐ क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा।
ॐ न्यायागाम्याय शुद्धाय योगिध्येयाय ते नम:।
नम: कमलाकांतय कलवृद्धाय ते नम:।
शत्रुओं से छुटकारा पानेका प्रयोग:-
इस प्रयोग से एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो सात बार तक प्रयोग कर सकते हैं।
ये प्रयोग शनी, राहु एवं केतु ग्रह पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चौमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर निम्न श्लोक से उनका ध्यान कर 21 बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले।
फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21-21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज़ में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा।
फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।
ध्यान :-
ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम मुण्डमालं महेशम्।
दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिंखडगपाशाभयानि।।
नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।
दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद किंकिणी नुपुराढ्यम।।
मन्त्र:-
ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।
विधि:-
यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।
दोनों न हों तो पूरी क्रिया घर में दक्षिण मुखी बैठ कर भैरव जी का पूजन कर उनके समक्ष कर लें और दीपक मध्य रात्रि में किसी चौराहे पर रख आएं। चौराहे पर भी ये प्रयोग कर सकते हैं। चौराहें पर करें तो चुपचाप बिना पीछे देखे घर लौट आएं हाथ मुंह धोकर ही घर में प्रवेश करे।
यदि एक बार में शत्रु पूर्णतः शांत न हो तो 7 बार तक एक एक हफ्ते बाद कर सकते हैं।
उपर्युक्त प्रयोग शत्रु के उच्चाटन हेतु भी कर सकते हैं पर उसमे बत्ती मदार के कपास की बनेगी और दीपक शत्रु के मुख्य द्वार के सामने जलाना होगा।
इस तरह साधक शत्रु नाश उपाय करके अपने शत्रु का नाश कर सकता हे और दुश्मन से छुटकारा पा सकता हे.
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