जब कोई साधक तांत्रिक क्रिया करना चाहता हो या कोई बड़ी साधना करना चाहता हो तो उसको आसन का उपयोग करना अनिवार्य होता हे,साधना के अनुसार आसन का प्रयोग किया जाता हे जेसी साधना वेसा आसन,जब आसन का प्रयोग होता हे तब आसन ग्रहण मंत्र का जाप किया जाता हे फिर आसन का उपयोग होता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे आसन ग्रहण मंत्र का जाप कैसे होता हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मंत्र
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय।
इस मंत्र का अर्थ है:
ओम्, मुझे अशाश्वत से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।
यह मंत्र साधना के दौरान आपको मन को ध्यान में एकाग्र करने में मदद करेगा और आध्यात्मिक अनुभव को गहराई देगा। इसे आप अपनी साधना सत्रों में प्रतिदिन जप सकते हैं।
ध्यान देने योग्य है कि यह मंत्र साधना के समय एकाग्रता और शांति के साथ जपा जाना चाहिए। ध्यान एवं साधना के लिए आप एक योग गुरु या आध्यात्मिक गुरु की मार्गदर्शन ले सकते हैं ताकि आपको सही तकनीक और अनुभव के लिए निर्देश मिल सके।
मंत्र
ॐ ह्रीं अहं निःसहि हूँ फट् दर्भासने उपविशामि।
आसन रखते समय आप उपर्युक्त मंत्र का भी जाप कर सकते हो उपर्युक्त मंत्र का 25 बार जाप करके आपको आसन रखना हे,
आसन ग्रहण मंत्र की बात करें, यह एक आध्यात्मिक प्रयोग होता है जो साधक को अपने मन को स्थिर करने और ध्यान में समर्पित होने के लिए मदद करता है। यह मंत्र साधना के पहले या उसके दौरान आसन रखने के समय जाप किया जाता है। आसन ग्रहण मंत्र के द्वारा आप अपने मन को शांत करने और आध्यात्मिक अनुभव के लिए तैयार कर सकते हैं।
आसन ग्रहण मंत्र को जाप करते समय आप अपने मन को एकाग्र करें और विश्रामपूर्वक बैठें। इसके बाद निम्नलिखित मंत्र को मनसाथ या उच्चारण करें,
इस तरह साधक आसन ग्रहण करते समय इस मंत्र का प्रयोग कर सकता हे और फिर आसन ग्रहण कर सकता हे,
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