आज में इस पोस्ट में उर्वशी अप्सरा साधना की सम्पूर्ण विधि देने वाला हु आप इस विधि का अनुसरण करके उर्वशी अप्सरा की सिद्धि हासिल कर सकते हो, उर्वशी अप्सरा साधना करके आप हर प्रकार के तंत्र कार्य आसानी से कर सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे उर्वशी अप्सरा साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे, एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा उसके प्रति आकृष्ट हो गए थे जिसके चलते उसकी ताल बिगड़ गई थी। इस अपराध के कारण इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मृत्यु लोक में रहने का शाप दे दिया था। मृत्यु लोक में पुरुरवा और उर्वशी कुछ शर्तों के साथ पति-पत्नी बनकर रहने लगे। दोनों के कई पुत्र हुए। इनके पुत्रों में से एक आयु के पुत्र नहुष हुए। नहुष के ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख पुत्र थे। इन्हीं में से ययाति के यदु, तुर्वसु, द्रुहु, अनु और पुरु हुए। यदु से यादव और पुरु से पौरव हुए। पुरु के वंश में ही आगे चलकर कुरु हुए और कुरु से ही कौरव हुए। भीष्म पितामह कुरुवंशी ही थे।यही उर्वशी एक बार इन्द्र की सभा में अर्जुन को देखकर आकर्षित हो गई थी और इसने इन्द्र से प्रणय-निवेदन किया था, लेकिन अर्जुन ने कहा- ‘हे देवी! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं.।’ अर्जुन की ऐसी बातें सुनकर उर्वशी ने कहा- ‘तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं अतः मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम १ वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।’.. इस तरह उर्वशी के संबंध में सैकड़ों कथाएं पुराणों में मिलती हैं।
किसी भी अप्सरा की साधना चार रूपों में की जा सकती है। मां, बहन, पत्नी और प्रेमिका के रूप में साधना सम्पन्न करना श्रेष्ठ माना गया है। विश्वामित्र ने प्रेमिका रूप से तंत्र की रचना की और इसी तंत्र के माध्यम से उर्वशी को अपने आश्रम में आने के लिए बाध्य किया और उसे अद्वितीय नृत्य करना पड़ा। उर्वशी को सिद्ध कर निम्न लाभ प्राप्त किए जाते है-
१.जब भी चाहे उर्वशी को प्रत्यक्ष बुलाए और उसका नृत्य देखे।
२.उर्वशी का प्रेमिका रूप में उपयोग करे, उसके साथ रमण करे।
३.उर्वशी के माध्यम से मनोरंजन करें।
४.उर्वशी के द्वारा अतुलनीय धन, वैभव प्राप्त करे।
५.उर्वशी के द्वारा चिरयौवन प्राप्त कर जीवन का पूर्ण आनन्द उपभोग करे।
६. उर्वशी को सिद्ध कर उन पदार्थों और भोगों को प्राप्त करे जो उसके मन की आकांक्षा होती है।
विश्वामित्र के बाद उनके शिष्य भूरिश्रया, चिन्मय, देवसुत, गंधर्व, और यहां तक कि देवी विश्रवा और रलप्रभा ने भी उर्वशी सिद्ध कर जीवन के सम्पूर्ण भोगों का भोग किया। गोरखनाथने भी इस साधना के माध्यम से चिरयौवन प्राप्त किया और गोरखपुर में उन्होंने हजारों शिष्यों के सामने सदेह उर्वशी को बुलाकर अद्वितीय नृत्य सम्मान करवाया इतिहास साक्षी है कि स्वामी शंकराचार्य ने इसी साधना को सम्पन्न कर अपने शिष्य पदम पादको अतुलनीय वैभव का स्वामी बना दिया, यहीं नहीं परन्तु मंडन मित्र से शास्त्रार्थ के दिनों में शंकराचार्य ने उर्वशी को तंत्र के माध्यम से उसे अपने सामने बुलाकर उससे काम कला की वे बारीकियां समी जो सन्यासी होने की वजह से उनके लिए असंभव थी, इसी साधना के बल पर आज से सौ साल पहले स्वामी विशुद्धानंद जी ने बनारस में नवमुण्डी आश्रम में अभिनय नृत्य कराकर अंग्रेजों को आश्चर्य चकित कर दिया था, और उस समय के तत्कालीन कलेक्टर लासिम ने तो कहा था,कि उसने अपनी जिन्दग में ऐसी सुंदरी नहीं देखी, वह अचानक आई और जो नृत्य उसने किया वह आश्चर्यचकित करने वाला था।
उर्वशी साधना कोई भी साधक सम्पन्न कर सकता है। शास्त्रों के अनुसार भी उर्वशी की साधना पत्नी या प्रेमिका के रूप में ही सम्पन्न करनी चाहिए।
साधना विधि
यह साधना ४१ दिन की है, किसी भी पूर्णमासी की रात्रि से यह साधना प्रारम्भ की जाती है, घर के किसी कोने में सफेद आसन बिछाकर उत्तर की तरफ मुंह कर बैठ जाए सामने घी का अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलित करे और स्वयं पानी में गुलाब का थोड़ा सा इत्र मिलाकर स्नान कर स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण कर आसन पर बैठ जाए, और सामने उर्वशी यंत्र और चित्र रखकर मोती की माला से मंत्र जप करे।
मंत्र
॥ॐ श्री क्ली आगच्छ स्वाहा।।
मंत्र जप समाप्ति के बाद उसी स्थान पर सो जाएं।
इन दिनों में बहार किसी से बात ना करे, औरत कमरे से बाहर रहे।
केवल शौचादि क्रिया करने के लिए बाहर जा सकता है। सातवें दिन निश्चय ही घुंघरू की मधुर आवाज सुनाई देती है. मगर साधक को चाहिए कि वह अविचलित भाव से मंत्र जप करता रहे। इक्कीस वें दिन बिल्कुल ऐसा लगेगा कि जैसे अपूर्व सी सुगन्ध फैल गई है. इसके बाद नित्य ऐसी सुगन्ध और ऐसा आभास होगा।
३६ वें दिन बिल्कुल ऐसा लगेगा कि जैसे कोई अद्वितीय सुन्दरी आसन के पास आकर बैठ गई है मगर साधक अविचलित न हो और मंत्र जप करता रहे,
४१ वें दिन साधक की परीक्षा आरम्भ होती है, और वह शरीर उपस्थित होकर साधक की गोदी में बैठ जाती है, फिर भी साधक को चाहिए कि वह न तो विचलित हो और न कामोत्तेजक हो।और वह अपूर्व श्रृंगार कर साधक से सट कर बैठ जाएगी और पूछेगी कि मेरे लिए क्या आज्ञा है, तब साधक कहे कि मेरी पत्नी बन प्रेमिका की तरह ही रहो ,तब वह सिद्ध हो जाती है, और जीवन भर सुख,काम, द्रव्य प्रदान करती रहती है।
यह आजमाया हुआ तंत्र है, और अपने आप में प्रामाणिक सिद्ध प्रयोग है, एकबार सिद्ध करने पर फिर जीवन में बार-बार प्रयोग करने की जरूरत नहीं रहती, इस साधना में तीन बातें आवश्यक है-
- साधनाकाल में ४१ दिन तक किसी से भी कुछ भी न बोले।
- साधना के बाद उर्वशी सिद्ध होने पर पर-स्त्री गमन न करे।
- उर्वशी तंत्र सिद्ध होने पर उसके साथ रमण करे,जो कुछ भी चाहे प्राप्त करे, पर द्रव्य का दुरुपयोग न करे।
यह साधना आज भी जीवित है, और वर्तमान में भी कई तांत्रिकों ने इसे सिद्ध कर रखा है। वस्तुत: यह जीवन की एक अद्भुत और पूर्ण सुखोपभोग देने वाली सौन्दर्यमयी साधना है, जिसे सिद्ध करने में शास्त्रीय दृष्टि से भी किसी प्रकार का बन्धन या दोष नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से देखने पर यह साधना लम्बी प्रतीत होती है किंतु इसके मंत्र पर ध्यान दें तो यह अन्य साधना की अपेक्षा सरल कही जा सकती है। साथ ही महर्षि विश्वामित्र के द्वारा प्रतीत होने के कारण इसकी प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध है।
इस तरह आप उर्वशी अप्सरा साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकते हो और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हो.
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