कन्चंनकुण्डली एक नायिका हे इसकी खासियत यक्षिणी जैसी हे, कन्चंनकुण्डली की सिद्धि प्राप्त करना बहुत मुश्किल कार्य हे इसकी लगातार पूजा और साधना करनी पड़ती हे,मन में दृढ संकल्प लेकर साधना का प्रारम्भ करने से कन्चंनकुण्डली नायिका सिद्ध होती हे, कन्चंनकुण्डली साधना सात्विक और तामसिक दोनों तरीके से हो सकती हे,
कन्चंनकुण्डली साधना हो सके तो किसी योग्य गुरु की देखरेख में करे या किसी तांत्रिक का मार्गदर्शन लेकर साधना का प्रारम्भ करे,बिना गुरु के साधना का प्रारम्भ ना करे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे कन्चंनकुण्डली साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मंत्र
“ॐ लोलनि पहाडहासिनि सुमुखिः कन्चंनकुण्डलीनि खे छ च क्षे हु।।
साधन विधि-
गोबर को एक पुतली बनाकर एक वर्ष तक पाचादि द्वारा कन्चंनकुण्डली नामक नायीका का पूजन और उस मन्त्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। तिराहे पर स्थित बरगद वृक्ष की जड़ में बैठकर, रात्रि के समय गुप्त भाव से इस मन्त्र का जप करना चाहिए। जप समाप्त हो जाने पर कन्चंनकुण्डली नामक नायीका साधक के वशीभूत होकर, उसे इचित वर प्रदान करती है।
इस नायिका सिद्ध हो जाने के बाद आप कोई भी क्रिया आसानी से कर सकते हो अगर आपने इसकी साधना तामसिक क्रिया से की हे तो आप बड़ी से बड़ी तंत्र क्रिया का काट आसानी से कर सकते हो,आज कल अघोरी लोग और तांत्रिक लोग इसका उपयोग वशीकरण में ज्यादा करते हे और कोई भी सवाल का जवाब ये कान में आकर दे जाती हे,
कन्चंनकुण्डली साधना करके आप षट कर्म आसानी से कर सकते हो,कोई भी सिद्धि आप हासिल करो पर इसका गलत उपयोग कदापि ना करे अगर किसी भी शक्ति का गलत उपयोग करोगे तो आपके साथ ही गलत होगा,
इस तरह साधक कन्चंनकुण्डली साधना करके इसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे और उसको सिद्ध कर सकता हे.
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