आज में आपको गृहीत शत्रु मंत्र को त्याग करने की सरल विधि देने वाला हु और आप इस विधि का प्रयोग करके गृहीत शत्रु मंत्र को त्याग सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे गृहीत मंत्र को त्याग करने की विधि क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
यदि भूल से शत्रु मंत्र का अनुष्ठान आरंभ कर दिया हो तो उसके त्याग करने की विधि भी है। किसी उत्तम दिन में सर्वतोभद्रमण्डल में कलश की स्थापना करके मंत्र को उल्टा बोलते हुए कलश को जल से भरे। उस पर वस्त्र ढककर उसमें देवता का आह्वान न करें। फिर उसके सामने अग्निकुण्ड बनाकर उसमें अग्नि की प्रतिष्ठा करके ग्रहण किए हुए मूल मंत्र को उल्टा करके घी की एक सौ आठ आहुतियां देवें। फिर खीर और घी की दिक्पालों को बलि देवें। इसके पश्चात देवों के देव भगवान ऋषभदेव से निम्नलिखित शब्दों से प्रार्थना करें- “हे भगवान मुझ चंचल बुद्धि वाले ने मंत्र की अनुकूलता बिना विचार किये ही जो इस मंत्र को ग्रहण करके इसका पूजन किया है, इससे मेरे मन में क्षोभ हो रहा है। हे भगवान! आप कृपा करके मेरे मन के क्षोभ को दूर कीजिये। और मेरा उत्तम कल्याण करके मुझे अपनी निर्मल भक्ति दीजिये”। इस प्रकार प्रार्थना करके उस मंत्र को ताड़पत्र कपूर- अगर और चन्दन से उल्टा लिखकर पहले उसका पूजन करें और फिर उसको अपने सिर से बांधकर उस घड़े के जल से स्नान करें। उस कलश में फिर से जल भरकर उसके मुख में उस पत्र को डाल दें। फिर उस घड़े का पूजन करके उसको किसी नदी या तालाब में डालकर सच्चे सात साधुओं को आहार दान दें अथवा उत्तम श्रावक को भोजन करावें। इस प्रकार वह उस मंत्र के कष्ट से छूट जाता है।
इस तरह साधक गृहीत शत्रु मंत्र को त्याग करने की सरल विधि का अनुसरण करके गृहीत शत्रु मंत्र का त्याग कर सकता हे.
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