छाया पुरुष सिद्धि

आज में इस पोस्ट में छाया पुरुष सिद्धि के बारे में सम्पूर्ण माहिती देने वाला हु, हमारी इस पोस्ट को पढ़कर आपको पता चल जायेगा की कैसे छाया पुरुष सिद्धि होती हे और उसकी क्या विधि हे वो पता चल जायेगा,

तो चलिए विस्तार से जानते हे छाया पुरुष सिद्धि कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

यह प्रयोग बड़ा ही विचित्र और बड़े ही काम का है। छाया पुरुष सिद्ध होने से मनुष्य उन समस्त अद्भूत कार्यों को कर सकता है।

जिसको कि लोग जादू के नाम से पुकारते हैं। हमने भूत प्रेत सम्बन्धी जिन घटनाओं का पहिले वर्णन किया है। वह सब छाया पुरुष सिद्धि से कुछ न कुछ सम्पर्क अवश्य रखते हैं।

छाया सिद्ध होने से मनुष्य की छाया उसके आधीन हो जाती हैं। वह जिस काम को कहता है वह छाया तुरन्त कर देती है। यदि इसके भीतर तनिक अधिक ध्यान से देखा जाय तो इसमें भी योग का तत्व अपना काम करता है। यदि तुम्हारे पास कोई तुम्हारा मित्र नियत समय पर आया करता हो। तो उस समय के होने पर तुरन्त ही तुम्हारे मित्र की याद आ जायेगी।

रात्रि को अपने मन में यह कहकर सोओ कि हम आज चार बजे उठेंगे। तो एक बार आपकी आंख चार बजे अवश्य ही खुल जायगी चाहे आप फिर आलस्य में आकर सो ही क्यों न जाओ। यह बात हमारे दिन रात अनुभव में आती है। इसी तत्व के आधार पर मनुष्य अपनी छाया को सिद्ध करता है।

छाया पुरुष सिद्धि

वास्तव में छाया सिद्ध नहीं होती। मनुष्य अपने जीव को ही सिद्ध करता है परन्तु चूंकि उसका प्रयोग छाया के साथ है और सिद्ध की सूरत भी अपनी जैसी होती है इसलिये उसको छाया पुरुष सिद्ध के नाम से ही पुकारते हैं। इस तसखीर हमजाद के ऊपर आज तक कितने ही ग्रन्थ लिखे गये हैं। लोग इस विद्या और प्रयोग के अभ्यासी बनने की बहुत बड़ी लालसा रखते हैं परन्तु चूंकि हर एक सुख के साथ दुख, शान्ति के साथ अशान्ति, तथा लाभ के साथ हानि का स्वाभाविक

सम्बन्ध है और चूंकि अधिक लाभप्रद कार्य के अधिक हानि कर होने की सम्भावना भी हो सकती है अतएव

इस प्रयोग के करने से लोग घबड़ाते हैं। वास्तव में बात तो यह है कि यही प्रयोग क्या, समस्त प्रयोगों

की यही अवस्था है। यदि किसी प्रयोग में भी स्थिरता, निर्भीकता तथा दृढ़ता से काम न लिया जाय तो हर

एक प्रयोग लाभ के बदले पूरी हानि पहुंचा सकता है। अतएव किसी भी प्रयोग में हाथ क्यों न डाला जाय मन को निश्चल रखने से ही यह समस्त आवश्यकीय गुण मनुष्य में उत्पन्न हो जाते हैं। छाया

पुरुष सिद्धि के प्रयोग में तो इस निश्चलता की विशेष आवश्यकता है क्योंकि तनिक भी भय करने या मन

के चलायमान होने से पागल या मृत्यु हो जाने का भय होता है अतएव इस प्रयोग को बहुत सावधानी

के साथ प्रारम्भ करना चाहिये ।

छाया पुरुष सिद्धि के कितने ही प्रयोग हैं। यदि कुल लिखे जायं तो इसी विषय पर एक पूरा ग्रन्थ

तैयार हो सकता है। यहां पर दो तीन प्रयोगों का देना ही यथेष्ट होगा। इस प्रयोग को मंगल के दिन से

प्रारम्भ करना अति उत्तम है। एक नीरव जंगल में जहाँ ध्यान बटाने का कोई विषय न हो दोपहर के

समय जाय और सूर्य की ओर दृष्टि जमाकर देखे  और पाच मिनिट पश्चात् आकाश की ओर देखे और

फिर अपने साये पर दृष्टि जमाये और साथ ही “ओं श्री माधवाभ्याम नम:” मन्त्र का पांच हजार जप करे परन्तु जप इस प्रकार से करे कि दृष्टि चलायमान न होने पावे। बस यही प्रयोग नित्य प्रति नियत समय

पर करे। अपने इस प्रयोग के सम्बन्ध में न तो किसी

से कुछ कहे और न किसी पर अपने मत का प्रकाश

करे। इस प्रयोग अभ्यासी अत्यन्त परहेजगार, पवित्र

और सत्यभाषी होना चाहिये। तथा भोजन स्वल्प तथा

हल्का और एक समय करे, मांस, मदिरा, का प्रयोग

न करे। रात्रि को कम सोवे । अभ्यासी को अभ्यास

करते-करते जब कई दिन हो जावेंगे तो उसको आकाश

पर किसी प्रकार की छाया सी दीख पड़ेगी परन्तु

अभ्यासी को चाहिये कि वह अभ्यास को बराबर

करता रहे यहां तक कि जब उसको वह साया आसमान

पर स्पष्ट दिखलाई देने लगे। उस समय अभ्यासी

को अनेक प्रकार की भयानक घटनायें प्रतीत होंगी।

तथा भीषण सूरतें दिखलाई पड़ेगी। परन्तु अभ्यासी

को बड़े साहस तथा सन्तोष से काम लेना चाहिये,

स्थिरता निर्भीकता तथा दृढ़ता को कदापि हाथ से न जाने देना चाहिये अन्यथा इससे या तो अभ्यासी के

प्राणों पर आ बनेगी और या सदैव के लिये ऐसा

पागल हो जायेगा। कि जिसकी चिकित्सा असम्भव

ही होगी। यदि अभ्यासी इन भयानक बातों को पार

कर गया तो उसको अपने अभ्यास में सफलता प्राप्त

करने में तनिक भी संदेह न रह जायेगा। चालीस दिन

के अभ्यास में आकाश में दृष्टि आने वाला साया

अभ्यासी की सूरत बनकर उसके सम्मुख आकर खड़ा

होगा और उससे आज्ञा चाहेगा। अभ्यासी को उस

समय निर्भीकता के साथ अपना आज्ञापालक बना

लेना चाहिये। इसके पश्चात् अभ्यासी जब इच्छा

करेगा वही साया उसका काम तुरन्त कर देगा।

अन्य प्रयोग भी इसी प्रकार के हैं। रात्रि को

चन्द्रलोक में ही यह प्रयोग किया जा सकता है

परन्तु चूंकि चन्द्रालोक न्यूनाधिक होता रहता है

अतएव इस प्रयोग में सफलता प्राप्त नहीं होती

और यदि होती भी है तो बहुत कठिनता के साथ।

बाकी बातें एक ही हैं। हां, यदि रात्रि में यह किया

जाय कि एक नीरव कमरे में जहां किसी अन्य के

आने की सम्भावना न हो लैम्प जलाओ और उसकी ओर पीठ करके खड़े हो और अपने साये पर दृष्टि

जमाओ। और इस कार्य में सफलता प्राप्त करो।

इनके अतिरिक्त और भी बहुत से प्रयोग हैं जिन

को हिन्दू और मुसलमान सिद्धों ने अपने-अपने ढंग

पर लिखा है। बातें दोनों की एक ही हैं। एक ने

संस्कृत का मन्त्र दे दिया तो दूसरे ने कुरान शरीफ

की कोई आयत रखदी या किसी ने कहा कि अमुक

ओर को मुंह करके खड़े हो या अमुक ओर को

लैम्प रखो परन्तु जहां तक देखा गया है तत्व इनका

एक ही है जिसको ऊपर वर्णन कर दिया गया है।

छाया पुरुष सिद्धि से मनुष्य को कितनी सिद्धियां

प्राप्त होती हैं यदि उनका वर्णन किया जाय तो पूरी

एक पुस्तक तैयार हो सकती है। यहां केवल इतना

ही लिख देना पर्याप्त है कि संसार में कोई बात

ऐसी नहीं जो उसकी क्षमता के बाहर हो परन्तु

अभ्यासी को इस शक्ति का दुरुपयोग न करना चाहिये,

इस तरह आप छाया पुरुष सिद्धि करके छाया पुरुष की सिद्धि हासिल कर सकते हो.

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