आज में आपको जया यक्षिणी की साधना और उसकी उपासना कैसे होती हे उसके बारे में बताने वाला हु,यक्षिणी कई सारी प्रकार की होती हे और उसकी साधना पद्धति भी अलग अलग होती हे,
साधक अगर यक्षिणी को सिद्ध कर लेता हे तो वो साधक के हर कार्य करती हे और उसकी रक्षा भी करती हे,वेसे तो यक्षिणी हर तन्त्र क्रिया करने में माहिर हे पर साधक को ध्यान ये रखना हे की उससे गलत कार्य ना करवाए वरना आपका ही बुरा हो सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे जया यक्षिणी की उपासना साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
“यक्षिणी” एक प्रकार की आकर्षण शक्तियों वाली अद्भुत परी होती है, और इसके लिए शाबर मंत्र का उपयोग न केवल अविवाहित पुरुषों द्वारा किया जा सकता है, बल्कि यह विशेष ध्यान और आदरणीयता की आवश्यकता होती है। मंत्रों का अपवाद नहीं करना चाहिए और उनका गलत उपयोग नहीं करना चाहिए।
शाबर मंत्र अधिकांश भारतीय धार्मिक पाठ्यक्रमों में अध्ययन के लिए होते हैं और उनका गलत उपयोग नहीं करना चाहिए। यदि आपके पास यक्षिणी साधना का वास्तविक और धार्मिक उद्देश्य है, तो आपको गुरु के मार्गदर्शन में जाना चाहिए और उनके सिखाए गए मार्ग पर चलना चाहिए।
मन्त्र-
ॐ ह्रीं ह्रीं नमो नमःजये हूँ फट्।
साधन विधि-
अमावस्या से प्रारम्भ करके दूसरी अमावस्या तक इस मन्त्र का प्रतिदिन पाँच हजार की संख्या में जप करना चाहिए। जप की क्रिया किसी एकान्त स्थान में या शून्य शिव मन्दिर में बैठकर करनी चाहिए।
जप समाप्त होने पर अर्द्धरात्रि के समय जया’ नामक नायीका साधक के समक्ष प्रकट होकर उसे अभिलाषित वर प्रदान करती है।
इस तरह साधक जया यक्षिणी की उपासना और साधना करके उसकी सिद्धि प्राप्त कर सकता हे और दुसरो के और अपने दुखो का निवारण कर सकता हे.
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