प्राचीन मंगलाष्टक

आज में आपको प्राचीन मंगलाष्टक के फायदे और उसका पाठ कैसे करे उसके बारे में बताने वाला हू, इस मंगलाष्टक का पाठ करके साधक सर्व रोग से मुक्ति पा सकता हे, सर्व कार्य की सिद्धि कर सकता हे और अपने शरीर की रक्षा कर सकता हे,

साधक को भगत को इस प्राचीन मंगलाष्टक का पाठ सुबह ब्रह्ममुर्हुत में उठकर एक बार अवश्य करना चाहिए ये पाठ आपको कम से कम ४१ दिन तक अवश्य करना चाहिए,

प्राचीन मंगलाष्टक

मंगलाष्टक

अर्हन्तो  भगवन्त  इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धीश्वराः,

आचार्या  जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः।

श्री   सिद्धान्तसुपाठका   मुनिवराः  रत्नत्रयाराधकाः,

पञ्चैते  परमेष्ठिनः  प्रतिदिनं, कुर्वन्तु  ते मङ्गगलम् ॥१॥

श्रीमन्नाम  -सुरा- सुरेन्द्र- मुकुट,  प्रद्योत- रत्नप्रभा,

भास्वत्पादनखेन्दवः  प्रवचनाम्भोधीन्दवः स्थायिनः ।

ये  सर्वे  जिन-सिद्ध-सूर्यनुगता-स्ते  पाठकाः  साधवः,

स्तुत्या योगिजनैश्च पञ्चगुरवः, कुर्वन्तु ते मङ्गगलम् ॥२॥

सम्यग्दर्शन-   बोध-  वृत्तममलं,  रत्नत्रयं   पावनं,

मुक्ति  श्री – नगराधिनाथ –  जिनपत्युक्तोपवर्गप्रदः।

धर्मः सूक्तिसुधा  च चैत्यमखिलं, चैत्यालयं ऋयालयः,

प्रोक्तं च  त्रिविधं चतुर्विधममी, कुर्वन्तु ते मङ्गगलम् ॥३॥

नाभेयादिजिनाः   प्रशस्त-वदनाः,  ख्याताश्चतुर्विंशतिः,

श्रीमन्तो  भरते  श्वर-प्रभृतयो,  ये चक्रि णो द्वादश।

ये विष्णु-प्रतिविष्णु लाङ्गलधराः, सप्तोत्तरा विंशतिस्,

त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिषष्टि-पुरुषाः, कुर्वन्तु ते मङ्गगलम् ॥४॥

देव्यऽष्टौ च जयादिका द्विगुणिता विद्यादिका देवता,

श्री तीर्थकर  मातृकाश्च  जनका यक्षाश्च यक्ष्यश्तथा।

द्वात्रिंशत् त्रिदशाधिपास्तिथिसुरा दिक्कन्यकाश्चाष्टधा।

दिक्पालादश चेत्यमी  सुरगणाः कुर्वन्तु ते मङ्गगलम् ॥५॥

ये  सर्वोषध-ऋद्धयः  सुतपसा,  वृद्धिंगताः  पञ्च ये,ये

ये     चाष्टांग-     महानिमित्तकुशला,     चाष्टौ विधच्चारिणः।    पञ्चज्ञानधरास्त्रयोपि   बलिनो,  ये बुद्धिबडीश्वराः, सप्तैते सकलार्चिता मुनिवराः, कुर्वन्तु ते मङ्गगलम्  ॥६॥  ज्योतिय॑न्तर-  भावनामरगृहे,  मेरी कुलाद्री स्थिताः,  जम्बू-शाल्मलि-चैत्य- शाखिषु  तथा, वक्षार रूप्यादिषु । इष्वाकार-गिरी च  कुंडल-नगे, द्वीपे च नंदीश्वरे, शैले ये मनुजोत्तरे  जिनगृहाः,  कुर्वन्तु ते मङ्गगलम् ॥७॥ कैलासे वृषभस्य निवृतिमही , बोरस्य पावापुरे,   चम्पायां   वसुपूज्यसजिनपतेः, सम्मेदशैले हताम् । शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरे, नेमौश्वरस्याहतो,

निर्वाणावनयः  प्रसिद्धविभवाः,  कुर्वन्तु  ते मङ्गगलम् ॥८॥  सो  हारलता- भवत्यसिलता,  सत्पुष्पदामायते,

सम्पद्येत  रसायनं  विषमपि,  प्रीतिं  विधत्ते रिपुः।

देवा  यान्ति  वशं  प्रसन्नमनसः,  किं वा बहु बूमहे,

धर्मादेव  नभोपि  वति  नगैः, कुर्वन्तु  ते मङ्गगलम् ॥९॥ यो गर्भावतरोत्सवो  भगवतां, जन्माभिषकोत्सबो,

यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो, य:  केवलज्ञानभाक् ।

यः   कैवल्यपुर-प्रवेश-महिमा,  सम्पादितः  स्वर्गिभिः,

कल्याणानि च तानि पञ्च सततं, कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ॥१०॥  इत्थं  श्री  जिन- मङ्गलाष्टकमिदं,  सौभाग्य-सम्पत्कर,    कल्याणेषु    महोत्सवेषु     सुधियस्, तीर्थकराणामुषः ।   ये  भृणन्ति पठन्ति तैश्च सुजन, धर्मार्थ-कामान्विता,   लक्ष्मीराश्रयते   व्यपाय- रहिता, निर्वाण लक्ष्मीरपि ॥११॥

इस तरह साधक प्राचीन मंगलाष्टक का पाठ करके अनगिनत फायदे का लाभ उठा सकता हे आप खुद इसका अनुभव कर सकते हो.

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