भगवान शिव को तांत्रिक शक्ति माना जाता हे और इसके आगे हर तांत्रिक शक्ति कोई भी देवी शक्ति इसके आगे नत मस्तक रहती हे, हर तंत्र की काट शिव कर सकता हे और हर कार्य करने की क्षमता भगवान् शिव में हे, आज में आपको भगवान शिव का षडाक्षरी मंत्र देने वाला हु इस मंत्र को सिद्ध करके आप भगवान् शिव की कृपा दृष्टी पा सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे भगवान शिव का षडाक्षरी मंत्र कैसे सिद्ध करे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
ॐ नमः शिवाय’ की सम्पूर्ण विधि साधको के हितार्थ यहां पर में दे रहा हूँ।
आसन पर बैठकर सर्वप्रथम अपने गुरूदेव का ध्यान एवं पूजन करें, उसके पश्चात गणेश जी का ध्यान एवं पूजन करें। यह पूजन आप मानसिक रूप से भी कर सकते हैं। इसके पश्चात भगवान शिव का ध्यान करें एवं धूप, दीप फल फूल आदि से पूजन करें। इसके पश्चात संकल्पानुसार जप करें।
इस मंत्र का १२५००० जप रूद्राक्ष की माला से करना है, जिसे आप ११ अथवा २१ दिन में कर सकते है। इसके पश्चात दशांश होम, तर्पण, मार्जन करना चाहिए एवं ११ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए ।
इस विधि से आपको जीवन भर अनुष्ठान करने है, एक अनुष्ठान करके रूक नही जाना है, लगातार करते रहना है। आप देखना जीवन में कैसे आपको आनन्द मिलता है।
जो लोग अनुष्ठान करने में सक्षम नहीं हैं वो नियमित रूप से ५१ माला इस मंत्र की करें।
शिव के साथ शक्ति की एवं शक्ति के साथ शिव की उपासना अवश्य होती ही इसलिए अपने गुरूदेव से शक्ति मंत्र भी अवश्य प्राप्त करें एवं उसका यथा सम्भव जप करें।
मन्त्र-
ॐ नमः शिवाय।।
ध्यानम्
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रवतम् ।
रत्नाकल्पोजवलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणै व्याघ्रकृति वसानम्।
विश्वाधं विश्वववीणं निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करें।
विनियोग-
अस्य मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः, पंक्ति छन्द, ईशान देवता, के बीजाय, नमः शक्तये, शिवायेति कीलकाय, सदाशिव प्रसन्नार्थे जपे।।
विनियोगः
ऋष्यादिन्यासः
ॐ वामदेवऋषये नमः शिरसि।
पंक्ति छन्दसे नमः मुखे।
ईशान देवतायै नमः हृदि।
के बीजाय नमः गुझे।
नमः शक्तये नमः पदयोः।
शिवायेति कीलकाय नमः नाभी।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे
षडङ्गन्यास
ॐ के अगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः।
में मध्यामाभ्यां नमः।
ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐवां कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
के ये करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
अङ्गन्यास
केहृदयाय नमः
हैन शिरसे स्वाहा
है में शिखायै वषट्
शिं कवचाय हुम्।
है वो नेत्रत्रयाय वौषट।
है अस्त्राय फट्।।
आज के युग में मनुष्य ऐसी साधनाओं की खोज में रहता है जो उसे तुरन्त फल प्रदान करे वह महामानव बनना चाहता है जिसके इशारे पर पूरा संसार चले, ऐसी सिद्धियां प्राप्त करना चाहता है जिनसे वह जब चाहे जिसको चाहे भस्म कर दे, जिसको चाहे वश में कर ले, सम्पूर्ण भविष्य का ज्ञान उसे हो जाये और पूरा संसार उसके आगे नतमस्तक रहे । ऐसी सिद्धियां पाने के लिए वो इधर उधर भटकता है। नये-नये गुरूओ के पास जाता है, नयी-नयी पुस्तकें खरीदता है। एक दो महीना नये मंत्र का जप करता है और जब कुछ हासिल नहीं होता तो फिर किसी नयी साधना को करना प्रारम्भ कर देता है। इस तरह कई वर्ष बीत जाते हैं और कुछ हाथ नही आता।
इस संसार के कुछ नियम होते हैं और उन्ही नियमों के तहत आपको फल प्राप्त होता है, केवल आपके चाहने से कुछ नही होता । सभी सिद्धियां भगवद कृपा से प्राप्त होती हैं इनके लिए आपको अलग से कुछ करने की आवश्यकता नही है। जो व्यक्ति सिद्धियों के पीछे भागता है उसे वो कभी प्राप्त नही होती और जिसका लक्ष्य परमात्म प्राप्ति है सभी सिद्धियां उसके आगे नतमस्तक रहती हैं। यहां मेरा उद्देश्य आपको समझाना है कि कोई भी सिद्धि भगवद कृपा से ही मिलती है और गुरु कृपा से ।यदि यह मिलनी होगी तो आपको मिलकर ही रहेगी इसके लिए दर दर भटकने की और तुच्छ साधनाओं को करने की कोई आवश्यकता नही है। उच्च कोटि की निष्काम साधना से सर्वप्रथम आपके जो पाप कर्म है उनका नाश होता है और आप जन्म-मरण के बंधनो से मुक्त हो जाते हैं। सब कुछ आपको बिना चाहे ही मिल जायेगा इसलिए मेरा आपको परामर्श है कि आप केवल उच्च कोटि की निष्काम उपासना ही करें जैसे शिव साधना एवं उनके विभिन्न अवतार, शक्ति उपासना ( दस महाविद्या, दुर्गा, काली, प्रत्यगिरा, गायत्री आदि ), भगवान विष्णु एवं उनके विभिन्न अवतार ।
इस तरह साधक भगवान शिव का षडाक्षरी मंत्र सिद्ध करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर सकता हे और उसके आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे.
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