मंत्रो के दस कर्म

आज में आपको मंत्र के बारे में बहुत गहेराइ से बताने वाला हु मंत्र क्या हे कैसे काम करता हे और मन्र सिद्धि कैसे हासिल होती हे उसके बारे में बात करने वाला हु,तंत्र साधना में मंत्रो के दस कर्म होते हे,वो दस कर्म क्या हे वो आप इस पोस्ट को पूरा पढ़कर समज सकते हो,

तो चलिए विस्तार से जानते हे मंत्रो के दस कर्म क्या हे और उसका अर्थ क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

मंत्रो के दस कर्म

१. शान्ति-

जिस  मंत्र  से  रोग,  ग्रह  पीड़ा, उपसर्ग  शान्ति व भयशमन हो उसे शान्ति कर्म कहते हैं।

२. स्तंभन-

जिस  मन्त्र  के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीवों की गति, हलन- चलन का निरोध हो, उसे स्तंभन कर्म कहते हैं।

३. मोहन-

जिस मन्त्र के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी मोहित हों, उसे मोहन या सम्मोहन कहते हैं। मेस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म आदि प्रायः इसी के अंग है।

४. उच्चाटन-

जिस  मन्त्र  के  प्रयोग  से मनुष्य, पशु-पक्षी अपने स्थान से  भ्रष्ट  हो, इज्जत, मान-सम्मान खो दें उसे उच्चाटन कर्म कहते हैं।

५. वशीकरण-

जिस  मंत्र  के प्रयोग से अन्य व्यक्ति या प्राणी को वश  में  किया  जा  सके फिर साधक जो जैसा कहें सामने  वाला  या  प्राणी वह वैसा करें उसे वश्यकर्म

कहते हैं।

६.आकर्षण-

जिस मंत्र  के द्वारा दूर रहने वाला मनुष्य, पशु-पक्षी आदि  अपनी  तरफ  आकर्षित  हौं, अपने निकट आ जायें, उसे आकर्षण कर्म कहते हैं।

७.मुंभण-

जिस  मन्त्र  के द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी प्रयोग करने वाले की सूचनानुसार कार्य करें उसे मुंभण कर्म कहते हैं।

८.विद्वेषण-

जिस मन्त्र के द्वारा दो मित्रों के बीच फूट पड़े, संबंध टूट जाये उसे विद्वेषण कर्म कहते हैं।

९.मारण-

जिस  मन्त्र के द्वारा अन्य जीवों को मृत्यु हो जाय उसे मारण कर्म कहते हैं।

१०.पौष्टिक-

जिस मन्त्र  के  द्वारा  धन, धान्य,  सौभाग्य, यश व कौर्ति आदि में वृद्धि हो उसे पौष्टिक कर्म कहते हैं।

इस तरह मंत्र में दस कर्म होते हे और वो कैसे कार्य करता हे वो आप समज गए होंगे.

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