कोई भी साधना हो इसमें मंत्र साधक के लक्षण और गुरु के लक्षण पर सब होता हे अगर इनमे से किसी एक का लक्षण अच्छे नहीं हे तो साधना में कभी सफलता नहीं मिलती,
साधना में मंत्र साधक के लक्षण और गुरु के लक्षण कैसे होने चाहिए उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मंत्र साधना और गुरु के लक्षण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं जब आप योग, तांत्रिक या ध्यान साधना जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया कर रहे होते हैं। यहां मंत्र साधक के लक्षण और गुरु के लक्षण के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए जा रहे हैं:
मंत्र साधक के लक्षण:
श्रद्धा:
मंत्र साधना में श्रद्धा और आस्था का महत्वपूर्ण स्थान होता है। साधक को मंत्र में विश्वास होना चाहिए और उसे सचमुच अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
साधना के लिए समर्पण:
मंत्र साधक को साधना के लिए समर्पित रहना चाहिए। वह नियमित रूप से मंत्र जाप और ध्यान करना चाहिए, और साधना के लिए समय निकालना चाहिए।
आत्म-निग्रह:
साधक को अपने इंद्रियों पर निग्रह रखना चाहिए और उनकी नियंत्रण में रहना चाहिए।
शांति और उत्थान:
मंत्र साधना के द्वारा साधक को मानसिक और भौतिक शांति, और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त होता है।
गुरु के मार्गदर्शन:
मंत्र साधक को गुरु के मार्गदर्शन और उपदेश का पालन करना चाहिए। गुरु साधक को मंत्र का सही तरीके से जाप करने और ध्यान करने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।
गुरु के लक्षण:
आध्यात्मिक ज्ञान:
गुरु को आध्यात्मिक ज्ञान की गहरी समझ होनी चाहिए। वह मंत्र और ध्यान के सिद्धांतों को समझते हैं और साधक को उनका सही मार्गदर्शन करते हैं।
उपास्य और आदर्णीय:
गुरु को साधक के लिए उपास्य और पूजनीय होना चाहिए। साधक को अपने गुरु का आदर करना चाहिए और उनके शिक्षानुसार चलना चाहिए।
प्रेम और स्नेह:
गुरु को अपने शिष्यों के प्रति प्रेम और स्नेह होना चाहिए। वे अपने शिष्यों की साधना में सहयोग करते हैं और उनके प्रगति का ध्यान रखते हैं।
आदर्श:
गुरु को अपने शिष्यों के लिए एक आदर्श प्रतिपुष्ट होना चाहिए। वे अपने जीवन के माध्यम से आदर्श सिखाते हैं और शिष्यों को सही मार्ग पर चलाते हैं।
मार्गदर्शन:
गुरु का मुख्य कार्य मार्गदर्शन करना होता है। वे साधक को मंत्र साधना और ध्यान के लिए सही तरीके से मार्गदर्शन करते हैं और उनकी साधना को सफल बनाने में मदद करते हैं।
गुरु के लक्षण
अथातः संप्रवक्ष्यामि मंत्रिलक्षणमुत्तमम्।
यो मंत्रादिविधौ प्रोक्तस्सज्जातीयस्त्रिवर्णभृत्॥
रत्नत्रयधनः शूरः कुशलो धार्मिकः प्रभुः।
प्रबुद्धाखिलशास्त्रार्थः, परार्थनिरतः कृती॥
शांतः कृपालु निर्द्वषः, प्रपन्नः शिष्यवत्सलः।
षट्कर्म कर्मवित्साधु, सिद्धविद्यो महायशाः ॥
सत्यवादी जितासूर्यो, निरासो निरहंकृतिः।
लोकज्ञः सर्वशास्त्रज्ञो, तत्वज्ञो भावसंयुतः ॥
अर्थ-
मंत्र सिद्ध कराने वाले गुरु में निम्नलिखित लक्षण होने चाहिये। वह बीजाक्षरों को बनाने और मंत्रों को शुद्ध करने में समर्थ हो। वह बीजकोष, मंत्र व्याकरण और मंत्र सामान्य विधान का अच्छा ज्ञान रखने वाला हो। उत्तम वर्ण वाला, साहसी, धार्मिक, सब शास्त्रों का अर्थ जानने वाला, दूसरों का उपकार करने में आनंद मानने वाला, कृतज्ञ, शान्त, कृपालु, चतुर, शिष्यों से प्रेम करने वाला, लोक को पहचानने वाला, यशस्वी, तेजस्वी, सत्यवादी, ईर्ष्या रहित, अभिमान न करने वाला और द्वेष रहित पुरुष ही मंत्रों को सिद्ध कराने में गुरु बन सकता है।
शिष्य के लक्षण
दक्षो जितेन्द्रियो मौनी, देवताराधनोद्यतः ॥
निर्भयो निर्मदो मंत्री, जपहोमरतः सदा।
धीरः परिमिताहारः, कषायरहितः सुधी॥
सुदृष्टि विंगतालस्यः, पाप भीरु दृढ, व्रतः।
शीलोपवाससंयुक्तो, धर्मदानादितत्परः॥ मंत्राराधनशूरो धर्म दयास्व गुरु विनयशीलयुतः । मेधा विगतनिद्रः प्रशस्तचित्तोभिमानरतः ॥ देवजिनसमयभक्तः सविकल्पः सत्वाक विदग्धाश्च । वाक्पटुरपगतशंकः शुचिरामना विगतकामः ॥ गुरुभणितमार्गवर्ती प्रारब्धस्यांतदर्शनोयुक्तः। बीजाक्षरावधारी शिष्यः स्यात्सद्गुणोपेतः॥
इस पोस्ट को पढ़कर आपको समज में आ गया होगा मंत्र साधक के लक्षण कैसे होने चाहिए और गुरु के लक्षण कैसे होने चाहिए.
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