धन,वैभव और स्त्री की प्राप्ति के लिए साधक मातंगी यक्षिणी की साधना करता हे,जिस भी व्यक्ति की शादी नहीं होती या शादी में रूकावट बनती हे उस व्यक्ति को स्त्री की प्राप्ति के लिए मातंगी यक्षिणी की साधना करनी चाहिए,
साधना के साधारणतया नियम माने जाते हैं तथा विशिष्ट प्रयोगों में यंत्र प्राप्त कर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर आवश्यक वस्तुएं, जो हर किसी देवी की अलग-अलग होती हैं, का प्रयोग किया जाता है।
यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न नामबारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है। अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए तंत्र शास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।
अब से कुछ सौ वर्ष भारतवर्ष में यक्ष-पूजा का अत्यधिक प्रचलन था। अब भी उत्तर भारत के कुछ भागों में ‘जखैया’ के नाम से यक्ष-पूजा प्रचलित है। पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्राचीन काल में निर्मित यक्षों की अनेक प्रस्तर मूर्तियों की खोज की जा चुकी है। देश के विभिन्न पुरातत्त्व संग्रहालयों में यक्ष तथा यक्षिणियों की विभिन्न प्राचीन मूर्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं। कुछ लोग यक्ष तथा यक्षिणियों को देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं और उसी प्रकार उनका पूजन तथा आराधनादि भी करते हैं ।इनकी संख्या सहस्रों में हैं।
मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं मातंगेश्वर्यै नमः।
साधन विधि-
अपने घर में दीपक के सामने बैठ कर उक्त मन्त्र का १००००० जप करके दशांश राल का हवन करने से ‘मातंगी यक्षिणी’ प्रसन्न होकर साधक को स्त्री, राजलक्ष्मी, महिषी एवं अश्वादि वस्तुएँ प्रदान करती है ।
इस तरह साधक मातंगी यक्षिणी की साधना करके उसकी कृपा पा सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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