आज में साधक मित्रो के लिए मृगाक्षी अप्सरा साधना लेकर आया हु जिसको सिद्ध करके आप मृगाक्षी की सिद्धि प्राप्त कर सकते हो, अप्सरा में इतनी शक्ति होती हे की वो अपने नृत्य और सुन्दरता से भगवान् को भी मोहित कर सकती हे, अप्सरा के नृत्य से पूरा इन्द्रलोक भी मोहित हो जाता था,
तो चलिए विस्तार से जानते हे मृगाक्षी अप्सरा साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
अप्सरा सिद्धि प्राप्त करना किसी भी दृष्टि से अमान्य और अनैतिक नहीं है। उच्चकोटि के योगियों, सन्यासियों, रुषियों और देवताओं तक अप्सराओं और किन्नरोंयो की साधना की है।
साधना रहस्य ज्ञात हो जाए तो यह काफी महत्वपूर्ण कार्य होगा।
वास्तव में देखा जाए तो साधनात्मक ग्रंथों में केवल अप्सरा साधना के विषय में वर्णन किसी भी साधना के विषय में जीवन है वहम्मूल है. उनके सूक्ष्म भेदों का वर्णन उनमें प्राय: समाविष्ट नहीं हो पाया है। इसका कारण मात्र इतना ही है कि प्राचीनकाल में अनेक विद्याएं केवल गुरु मुख से शिष्य में परावर्तित होती रही। उनको लिपिबद्ध करने के विषय में चिंतन ही नहीं किया गया। साथ ही यह भी कारण हो सकता है कि कुछ स्वार्थी प्रवृत्ति के व्यक्तियों ने साधना को पद्धतियों को केवल अपनी पारिवारिक सम्पत्ति ही समझा। कारण कुछ भी रहा हो लेकिन उससे हानि तो सर्व सामान्य की ही हुई। अप्सरा साधनाओं के साथ भी यही हुआ कि उन्हें अश्लीलता, ओपन, काम वासना का प्रवर्धन करने वाली साधनाएं समझ लिया गया जबकि वस्तु स्थिति तो इसके सर्वथा विपरीत है।
सुरति प्रिया एक अप्सरा का भी नाम है और अप्सराओं के एक वर्ग का भी नाम है। मृगाक्षी, इसी सुरति प्रिया वर्ग की शीर्षस्थ नायिका है। सुरति प्रिया का सीधा सा तात्पर्य है जो रति प्रिय हो। रति-प्रिय शब्द का यदि सामान्य अर्थ लगाएं तो वह वासनात्मक ही होगा किंतु इसी रतिप्रिय शब्द में ‘सु’लगा कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि ऐसी क्रीड़ा जो शालीन हो, सुसभ्य हो, आनंदमय हो और ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब साधक स्वयं शिष्ट, शालीन, सुसभ्य हो उसे वह कला आती हो कि कैसे किसी स्त्री से वासनात्मक बिम्बों को प्रकट किए बिना भी मधुर वार्तालाप किया जा सकता है, कैसे वह मधुर नोक-झोंक की जा सकती है जो किसी प्रेमी व प्रेमिका के मध्य सदैव चलती रहने वाली क्रीड़ा होती है।
मृगाक्षी तो सम्पूर्ण रूप से प्रेमिका ही होती है, मधुर ही होती है, अपने साधक को रिझाने की कला जानती है, उसे तनाव मुक्त करने के उपाय सृजित करती रहती है, उसे चिंतामुक्त बनाए रखने के प्रयास करती रहती है। तभी तो संन्यासियों के मध्य मृगाक्षी से अधिक लोकप्रिय कोई भी अप्सरा है ही नहीं। साधकों को यह जिज्ञासा हो सकती है कि कैसे एक ही अप्सरा अनेक-अनेक संन्यासि यों के मध्य उपस्थित रह सकती है? इसके प्रत्युत्तर के लिए ध्यान रखना चाहिए कि अप्सरा मूलतः देव वर्ग में आती है जो वर्ग अपने स्वरूप को कई-कई रूपों में विभक्त कर सकती है।
अप्सरा के माध्यम से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते है। यही नहीं परन्तु सिद्ध करने पर अप्सरा साधक के पूर्णत: वरावर्ती हो जाती है, और साधक को भी आज्ञा देता है, उस आज्ञा का वह तत्परता से पालन करती है। साधक के चाहने पर वह सुशरीर उपस्थित होती है, या सूक्ष्म रूप से साधक की आंखों के सामने वह हमेशा बनी रहती है। इस प्रकार सिद्ध की हुई अप्सरा” प्रिया” रूप में ही साधक के साथ रहती है।
मृगाक्षी का तात्पर्य मृग के समान भोली और सुन्दर आंखों वाली अप्सरा से है। जो सुंदर, आकर्षक, मनोहर, चिरयौवनवती और प्रसन्न चित अप्सरा है,और निरंतर साधक का हित चिंतन करती रहती है, जिसके शरीर से निरंतर पद्म गंध प्रवाहित होती रहती है,और जो एक बार सिद्ध होने पर जीवन भर साधक के वश में बनी रहती है।
साधन विधि
किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक अत्यन्त सुंदर सुसज्जित वस्त्र पहिन कर साधना स्थल पर बैठे। इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्र पहने जा सकते हैं, जो सुंदर हो, आकर्षक हों, साथ ही साथ अपने कपड़ों पर गुलाब का इत्र लगावे और कान में भी गुलाब के इत्र का फोहा लगा लें।
फिर सामने ही दो मालाएं रखें और उसमें से एक माला साधना के समय स्वयं धारण करे।
इसके बाद एक बाली से, जो कि लोहे की या स्टीलकीन हो, फिर उस थाली में निम्न मृगाक्षी अप्सरा यंत्र का निर्माण चांदी के तार से व चांदी की सालाका से या केसर से अंकित करें। फिर इस पात्र में पहले से ही सिद्ध किया हुआ,’दिव्य तेजस्वी मृगाक्षी अप्सरा महायंत्र’ स्थापित करें, जो कि पूर्ण मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित, चैतन्य और सिद्ध हो। इस यंत्र के चार कोनो पर चार बिन्दियां लगाएं और पात्र के चारों ओर चार घी के दीपक लगाएं, दीपक में जो भी डाला जाए, उसमें थोड़ा गुलाब का इत्र भी मिला दें, फिर पात्र के सामने पांचवां बड़ा सा दीपक घी का लगायें और अगरबत्ती प्रज्जवलित करें तथा इस मंत्र सिद्ध तेजस्वी “मृगाक्षी महायंत्र” पर २१ गुलाब के पुष्प निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए चढ़ाएं।
मंत्र
ॐ मृगाक्षी अप्सरायै वश्यं कुरु कुरु फट्।।
जब 21 गुलाब के पुष्प चढ़ चुकें तब प्रामाणिक और सही स्फटिक माला से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें, इस मंत्र जप में मुश्किल से दो पटे लगाते हैं।
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