आज इस पोस्ट में हम यक्षिणी की साधना और यक्षिणी साधना के नियम के बारे में चर्चा करेंगे, में आपके लिए चिञ्चिपिशाची यक्षिणी साधना और पद्मकेशी यक्षिणी साधना लेकर आया हु दोनों को सिद्ध करने की विधि अलग हे और सिद्धि के बाद काम करने की क्षमता भी अलग हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे यक्षिणी साधना के नियम और उसके विधि विधान के बारे में,
जिस किसी यक्षिणी का साधन करना हो, उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करे। मांस-रहित भोजन करे, पान खाना छोड़ दे, किसी का स्पर्श न करे यक्षिणी भैरव सिद्धि का, तथा निश्चिन्त होकर, एकान्त स्थान में मन्त्र का तब तक जप करे, जब तक सिद्धि प्राप्त न हो। जिन यक्षिणियों के साधन के लिए जिस स्थान पर बैठकर मंत्र जाप की विधि का वर्णन किया गया है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।
चिञ्चिपिशाची यक्षिणी साधना
मन्त्र
“ॐ क्रीं चिञ्चिपिशाचिनि स्वाहा।”
साधन विधि
नील वर्ण के भोजपत्र के ऊपर गोरोचन, केशर और दूध से अष्टदल कमल बनाए। फिर प्रत्येक दल पर माया बीज लिखकर मस्तक पर धारण करे। यन्त्र के स्वरूप को नीचे की ओर प्रदर्शित किया गया है । इसी के अनुसार बना ले। मन्त्र को मस्तक पर धारण करने के उपरान्त मंत्र का सवा लाख जाप करे।
इस प्रकार सात दिन तक यत्नपूर्वक जप करने से ‘चिञ्चिपिशा- ची यक्षिणी’ साधक पर प्रसन्न होकर स्वप्न में भूत, भविष्यत् के सब वृत्तान्त को कह देती है।
पद्मकेशी यक्षिणी साधना
मन्त्र
ॐ ह्रीं पद्म्केशी कनकवती स्वाहा ।
साधन विधि
मन्त्री गन्धर्व के घर जाकर २१ दिन तक देवी की पूजा करके प्रतिदिन १०००० मन्त्र का जप करे। रात्रि में भोजन करे तथा एकाग्रचित्त से रहे तो ‘पद्यकेशी यक्षिणी’ प्रसन्न होकर, अर्द्धरात्रि के समय साधक को दर्शन देती है और उसकी कामना पूर्ण करती है ।
इस तरह साधक यक्षिणी साधना के नियम का पालन करके और विधि विधान का अनुसरण करके यक्षिणी की सिद्धि हासिल कर सकता हे.
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