आज में साधक मित्रो के लिए रत्नमाला अप्सरा साधना लेकर आया हु, जो शक्ति देव को भी मोहित करने की क्षमता रखती हे उसको हम अप्सरा बोलते हे, अप्सरा की सिद्धि करके साधक तंत्र विधा कर सकता हे और तांत्रिक भी बन सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे रत्नमाला अप्सरा साधना कैसे की जाती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं तथा मंदिर में साधन किया जाता है।
मंत्र-
‘ॐ श्री ह्रीं रत्नमाले आगच्छागच्छ स्वाहा।’
रत्नमाला अप्सरा साधना
कोई भी अप्सरा जहाँ एक ओर से सिद्ध होने के पश्चात साधक को अपने यौवन, सौन्दर्य से आह्लादित करती है वहीं उसे पूर्ण पौरुष देने के साथ-साथ धन-द्रव्य- आभूषण आदि से भी तृप्त करती ही है। अप्सरा के इसी धन द्रव्य दायक वरदायक प्रभाव में सर्वोत्कृष्ट नाम है रत्नमाला अप्सरा। जो अपने नाम के ही अनुरूप साधक को विविध प्रकार के द्रव्य, मणि, आभूषण एवं सौन्दर्य-विलास की सामग्रियां स्वेच्छा से उपलब्ध कराती ही रहती है। यदि इस साधना को आकस्मिक धन प्राप्ति की साधना भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। यूं देखा जाए तो रत्नमाला की जीवन में प्रेमिका रूप में प्राप्ति स्वयं किसी क्या कोष-प्राप्ति से कम नहीं, क्योंकि उसके अंग प्रत्यंग से झलक रही होती है जो सैकड़ों मुक्ता मणियों की आभा, वह उससे साधक का तन-मन किसी क्या अपूर्व प्रकाश से भर देने में समर्थ नहीं होती है?
रत्नमाला अप्सरा साधना को किसी भी शुक्रवार अथवा सोमवार की रात्रि में सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए साधक के पास एक रत्नमुक्ता तथा मणिमाला होनी आवश्यक होती है। साधक स्वयं अपनी इचानुसार वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे तथा सामने किसी पात्र में रत्नमुक्ता रख, उसका पूजन इत्र, चंदन, अक्षत, पुष्प, एवं सुगंधित अगरबत्ती से करें। (चाहे तो दीपक भी लगा सकते हैं। इसके पश्चात दत्तचित्त भाव से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप मणिमाला से सम्पन्न करे।
मंत्र
ॐ श्री ही रत्नमाला ही श्री ॐ
मंत्र जप के पश्चात रात्रि विश्राम साधना स्थल पर ही सम्पन्न करें। यह मात्र एक दिवसीय साधना है अत: साधक अगले दिन समस्त साधना सामग्रियों को विसर्जित कर दें तथा अपनी नित्य की जप माला से उपरोक्त मंत्र का आगे भी २१ दिन तक (रात्रि में) मंत्र जप करते रहें तो अत्युत्तम कहा गया है। जीवन में मनोवांछित भोग, द्रव्य, ऐश्वर्य प्राप्ति के साथ-साथ यह सौन्दर्य प्राप्ति की भी श्रेष्ठ साधना है। इस साधना को साधिका ओं द्वारा सम्पन्न करने के संदर्भ में विशेष महत्व कहा गया अतुलनीय, अवर्णनीय रूप-लावण्य की साम्राज्ञी अप्सराओं के कुछ नाम सभी लोग जानते हैं, जैसे रम्भा व उर्वशी। अप्सराएं इन्द्र लोक में रहती हैं तथा प्रसन्न होने पर दिव्य रसायन देती हैं। जिससे व्यक्ति स्वस्थ, शक्तिशाली व लंबी आयु प्राप्त करता है। लोकों में भ्रमण करवातीं हैं। राज्य प्रदान करती हैं। सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। भोग, ऐश्वर्य, वस्त्रालंकार प्रदान करती हैं। मित्र की भांति रहती हैं। मुख्य अप्सराएं ८ हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
१. शशि अप्सरा, २. तिलोत्तमा अप्सरा, ३. कांचन माला अप्सरा, ४. कुंडला हारिणी अप्सरा, ५. रत्नमाला अप्सरा, ६. रंभा अप्सरा, 7. उर्वशी अप्सरा, ८. भूषणि अप्सरा।
इनका मुख्य कार्य देवताओं का मनोरंजन करना होता है। ये देवताओं के जैसी ही शक्ति संपन्न होती हैं। शाप व वरदान देने में सक्षम होती हैं।
इस तरह साधक रत्नमाला अप्सरा साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे.
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