ये यक्षिणी हे उसकी एक खास अलग खासियत हे क्योकि ये यक्षिणी सिर्फ वशीकरण करने में माहिर हे अगर कोई साधक वशीकरण करना चाहता हो या वशीकरण सीखना चाहता हो तो उसको वशीकरण यक्षिणी साधना करनी चाहिए,
वशीकरण यक्षिणी साधना एक बार सिद्ध हो गई तो ये यक्षिणी पलक ज़पकते ही आपका कार्य कर देती हे,साधक को कुछ खास नियम का पालन करना जरुरी हे क्योकि इसका गेर-उपयोग करोगे या जहा तहां इसका प्रयोग करोगे तो आपकी साधना निष्फल भी हो सकती हे,
हमारे भारत देश में प्राचीन काल से यक्षिणी की पूजा और साधना होती आ रही हे,खुदाई में भी कई जगहों पर यक्षिणी की मूर्ति मिलती रहती हे इसका ये संकेत हे की प्राचीन काल में भी यक्षिणी की सिद्धि सब करते थे,
मंत्र-
“ॐ द्वार देवतायै ह्रीं स्वाहा ।”
यक्षिणी साधना के कुछ नियम
१)दारू और मांस से दूर रहे
२)पराई स्त्री से दूर रहे
३)यक्षिणी की साधना एकांत जगह पर करे
४)यक्षिणी की साधना माता,बहेन और पत्नी के रूप करनी चाहिए.
५)साधना के दरमियान आपको कुछ अनुभव और विचित्र आवाजे भी सुनाई देगी पर साधना को खंडित ना करे.
साधन विधि–
वशीकरण यक्षिणी की साधना प्रारम्भ करने से पहले अपने इष्ट देव का स्मरण करे क्योकि इष्ट देव की आराधना करने से साधना में आने वाले संकट इष्ट की कृपा से समाप्त हो जाते हे,
नदी के तट पर, पवित्र होकर बैठे तथा इस मंत्र का ५१००० जप करके दशांश गूगल तथा घी का हवन करे तो वशीकरण यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित वर देती है। इस हवन की भस्म जिस स्त्री के शरीर से लगा दी जाय, वह वशीभूत हो जाती है।
आपने हवन किया हे उसकी भस्म लेकर एक त्राम्बे के पात्र में रख दे जब इसका प्रयोग करना हो तब उसमें से थोड़ी भस्म निकालकर ५१ बार अभिमंत्रित करे और जिसका वशीकरण करना हे उस स्त्री पर लगादे ऐसा करने से वो स्त्री आपकी तरफ आकर्षित हो जाएगी और आपकी हर बात मानने को राजी हो जाएगी,
इस तरह साधक वशीकरण यक्षिणी साधना करके वशीकरण कार्य कर सकता हे.
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