शत्रु नाश के लिए शत्रु का भय दूर करने के लिए आज में शत्रु संहारक महा भैरव स्त्रोत लेकर आया हु इस स्त्रोत का पाठ और सिद्धि से शत्रु का नाश कर सकते हो और शत्रु का संहार कर सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे शत्रु संहारक महा भैरव स्त्रोत का पाठ कैसे करे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
विकट परिस्थिति, शत्रुभय, दुर्भाग्य एवं प्रेतबाधा आदि दुःखों के शमन हेतु भगवान् भैरव की उपासना सुप्रसिद्ध है। भगवान् शिव ने जगत् के कल्याण हेतु अपने अंश से कई रुद्रों की रचना की है। ग्यारह रुद्र एवं अष्ट भैरव प्रमुख कहे गये हैं। प्रस्तुत भैरव स्तोत्र विशेष घातक एवं प्रभावशाली है। जिसके समुचित प्रयोग से शत्रु कुल सहित महाविनाश को प्राप्त होता है। कहा जाता है कि जिस महात्मा ने अपने शत्रुओं के विनाश हेतु इस स्तोत्र की रचना कर इसका प्रयोग किया था, उसका प्रबल प्रभाव १५१ वर्षों से आज भी है। शत्रुओं के संहार के अतिरिक्त वह गांव आज भी वीरान है। अपने प्राण संकट में आने पर अथवा अन्य किसी विकट परिस्थिति में ही इस प्रकार के उग्र प्रयोग करने की अनुमति शास्त्रों में है। सामान्य स्थिति में प्रयोग करने पर साधक का ही अहित होता है। इस प्रकार के उग्र प्रयोगों का अधिकारी एक विशिष्ट साधक ही हो सकता है, साधारण मनुष्य नहीं।
दुरुपयोग के भय से प्रयोग विधि नहीं दी जा रही है। गुरुमुख से विधि जानें। प्रयोग करते समय नित्य शान्ति पाठ एवं कर्म अवश्य करें।
शत्रु संहारक स्त्रोत
हन हन दुष्टन को, प्राणनाथ हाथ गहि, पटकि मही-तल मिटाओ सब शोक को। हमें जो सतावे जन, काम-मन- वाक्यन ते, बार बार तिनको पठाओ यमलोक को। वाको घर मसान करौ संसत श्रृगाल रौवें, रुधिर कपाल भरो उर शूल चोक को। भैरो महाराज! मम काज आज एही करौ, शरण तिहारो वेग माफ करो चूक भलभल करे ओ विपक्षी पक्ष, आपनो टरे ना टारे, काहू दण्ड रावरो। घेरिघेरि छलिन छकाओ, छिति छल माहिं बचे नाही, नातीपूत सहित स पाँवरौ। हेरिहेरि निन्दक सकल निरमूल करो, चूसि लेहु रुधिर रस धारो शत्रु सागरो। झपटि-झपटि झूमि-झूमि काल दण्ड मारो, जाहि यमलोक वैरि वृन्द को विदा करो। ।।2।। को। ||1|| के त्रिशूल झपटि के सारमेय पीठ पै सवार होहु, दपटि दबाओ तिरशूल देर ना करो। रपटि-रपटि रहपट एक मारो, नाथ! नाक से रुधिर गिरै, मुण्ड से व्यथा करो। हरषि निरिखि यह काम मेरो, जल्दी करो सुनि के कृपानिधान भैरोजी! कृपा करो। हरो धनदार-परिवार, मारो पकरिके, बचै सौ बहि जाइ नदी नार जा भरो। ।।3।। जाहि जर-मूर से रहे न वाके बंस कोई, रोइ रोइ छाती पीटै, करै हाइ-हाइ के। रोग अरु दोष कर, प्राणी विललाइ, वाके कोई न सहाइ लागै, मरै धाइ-धाइ के। खलन खधारि, दण्ड देहु दीनानाथ! मैं तो परम अनाथ, दया करो आइ-आइ के। जनम-जनम गुन गाइ के बितैहों दिन, भैरो महाराज! वैरी मारो, जाइ-जाइ के। ||4|| रात-दिन पीरा उठै, लोहू कटिकटि गिरे, फार के करेजा ताके बंस में समाइ जा। रिरिकि-रिरिकि मरे, काहू को उपाय कछू लागै नाहीं एको जुक्ति, हाड़माँस खाइजा। फिरत-फिरत फिरि आवै, चाहे चारों ओर यंत्र मंत्र तंत्र को प्रभाव विनसाइ जा। भैरो महाराज! मम काज आज एहि करौ, शत्रुन के मारि दुःख दुसह बढ़ाइ जा। ।।5।। झट-झट पेट चीर, चीर के बहाइ देह, भूत औ पिशाच पीवें रुधिर अघाइ कै। रटि-रटि कहत सुनत नाहीं, भूतनाथ! तुम बिनु कवन सहाय करै आइ कै। भभकि-भभकि रिपु तन से रुधिर गिरे, चभकि-चभकि पिओ कुकुर लिआइ कै। ह हरि-हहरि हिआ फा टै सब शत्रून को, सुनहु सवाल हाल कासो कहैं जाइ कै। ।।6।। जरै ज्वर जाल काल भृकुटि कराल करो, शत्रुन की सेखि देखि जात नहीं नेक हूँ। तेरो है विश्वास, त्रास एको नहीं काहू केर लागत हमारे, कृपा दृष्टि कर देख हूँ। भैरो! उनमत्त ताहि कीजिये, उनमत्त आज गिरै जम ज्वाल नदी जल्दी से फेंक हूँ। यम कर दूत जहाँ भूत सम दण्ड मारै, फूटे शिर, टूटे हाड़, बचै नाहिं एक हूँ। 11711 हवकि हवकि मांस काटि दाँतन से, बोटि बोटि वीरन के, नवो नाथ खाइ जा। भूत-वेताल ववकारत, पुकार करै, आज नर रुधिर पर वहै आइ जा। डाकिनी अनेक डडकारें, सब शत्रुन के रुधिर कपाल भरि-भरि के पिआई जा। भैरो भूतनाथ! मेरो काज आज एहि करो, दुर्जन के तन-धन अबही नसाइ जा। 18 ।। शत्रुन संहार आज, अष्टक बनाए आज, षट-जुग ग्रह शशि सम्वत में सजि के। फागुन अजोरे पाख, वाण तिथि, सोमवार पढ़त जो प्रातः काल उठि नींद तजि कै। शत्रुन संहार होत, आपन सब काज होत, सन्तन सुतार होत, नातीपूत रजि कै। कहै गुरुदत्त तीनि मास, तीनि साल महँ, शत्रु जमलोक जैहै बचिहै न भजि कै। 119।।
अन्त में क्षमायाचना करते हुए दीपदान प्रदान करें।
शत्रु संहारक भैरव स्तोत्र
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटा शेखरम् चन्द्रबिम्बम्।। दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं। पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1।। रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्। घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।। कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।2।। लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं। धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।। रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्। नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3।। वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्। खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्। मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ।।4।। खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्। क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम्।। हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं। बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।5।। ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहन प्रभो! भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु महर्षि!!
भगवान भैरव शिव के स्वरूप हैं। वे कलियुग की बाधाओं का शीघ्र निवारण करने वाले देवता माने जाते हैं। खासतौर से प्रेत व तांत्रिक बाधा के दोष उनके पूजन से दूर हो जाते हैं। संतान की दीर्घायु हो या गृहस्वामी का स्वास्थ्य, भगवान भैरव स्मरण और पूजन मात्र से उनके कष्टों को दूर कर देते हैं। भगवान भैरव के पूजन से राहु-केतु शांत हो जाते हैं। उनके पूजन में भैरव अष्टक और भैरव कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे शीघ्र फल मिलता है। साथ ही तांत्रिक व प्रेत बाधा का संकट टल जाता है।
इस तरह साधक शत्रु संहारक महा भैरव शाबर स्त्रोत का पाठ करके शत्रु का नाश कर सकता हे.
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