शिव अघोर साधना

एक ऐसी शक्ति जिसके आगे हर शक्ति नतमस्तक हो जाती हे एक ऐसी शक्ति जो किसी भी तंत्र की काट आसानी से कर सकती हे और एक ऐसी शक्ति जो पलक जपकते ही वशीकरण को अंजाम दे सकती हे उस शक्ति का नाम हे शिव और आज में इस पोस्ट के जरीये शिव अघोर साधना देने वाला हु और आप इस साधना को करके शिव की सिद्धि हासिल कर सकते हो,

तो चलिए विस्तार से जानते हे शिव अघोर साधना कैसे की जाती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

भगवान  शिव  नित्य और अजन्मा हैं। इनका आदि और  अन्त न होने से वे अनन्त हैं। इनके समान न कोई  दाता  है,  न तपस्वी,  न ज्ञानी है, न त्यागी, न वक्ता  है और न ऐश्वर्यशाली। भगवान सदाशिव की महिमा का  गान कौन कर सकता है? भीष्म पितामह के  शिवमहिमा  बताने के सम्बन्ध में प्रार्थना करने पर भगवान  श्रीकृष्ण ने भी  यही कहा – ‘हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), इन्द्र और महर्षि आदि भी शिवतत्त्व जानने में असमर्थ  हैं, मैं उनके कुछ गुणों का ही व्याख्यान करता हूँ।’

ऐसी  स्थिति में हम जैसे तुच्छ जीव शिव-तत्त्व के बारे में क्या कह सकते हैं। परन्तु एक सत्य यह भी है कि आकाश अनन्त है, सृष्टि में कोई भी  पक्षी ऐसा नहीं जो आकाश का अन्त पा ले, फिर भी  वे  अपनी सामर्थ्यानुसार आकाश में उड़ान भरते हैं;  उसी  तरह  हम भी अपनी बुद्धि के अनुसार उस अनन्त  शिवतत्त्व  के  बारे  में  लिखने का प्रयास करेंगे । भगवान  शिव  के विविध नाम हैं। भगवान शिव  के  प्रत्येक नाम में, नाम के गुण, प्रयोजन और तथ्य भरे पड़े हैं।

हमारे हिन्दू धर्म में त्रिदेवों अर्थात भगवान  ब्रह्मा,  विष्णु  व  शंकर  का  अपना एक विशिष्ट  स्थान  है और इसमें भी भगवान शंकर का चरित्र  जहाँ  अत्यधिक  रोचक हैं, वहीं यह पौराणिक कथाओं में अत्यधिक गूढ रहस्यों से भी भरा हुआ है।

पौराणिक कथाओं में भगवान शिव को विश्वास  का  प्रतीक  माना  गया है, क्योंकि उनका अपना  चरित्र  अनेक  विरोधाभासों से भरा हुआ है। जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि  शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल  नहीं  खाता,  क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं  के  स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं।  यही  नहीं  भगवान शिव  को कुबेर का स्वामी माना जाता है, जबकि वे स्वयं कैलाश पर्वत पर बिना किसी  ठौर-ठिकानों  के यूँ ही खुले आकाश के नीचे निवास  करते  हैं। कहने  का तात्पर्य है कि भगवान शिव  का  स्वभाव  शास्त्रों में वर्णित उनके गुणों से जरा  भी   मेल   नहीं   खाता  और इतने अधिक विरोधाभासों  में,  किसी भी व्यक्ति की शिव के प्रति आस्था,  उसके अपने विश्वास के आधार पर ही टिकी हुई  है,  इसलिए सभी  कथाओं में भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है।

भगवान शिव के अनेकों स्वरूप हैं और उनका हर स्वरूप निराला है। उनकी पूजा किसी भी  समय  कीजिए, अनुभूतियाँ तो ऐसी-ऐसी मिलेगी कि सम्पूर्ण जीवन उनके गुणगान करने में ही निकल जाएगा। ऐसा  समय आज तक शिवभक्तों के जीवन में  नहीं आया होगा, जिस दिन उन्हें शिव कृपा प्राप्त ना  हुई  हो। आज  एक दिव्य साधना दे रहा हूँ, जो मेरी   ही   नहीं   बल्कि बहुत-से शिवभक्तों द्वारा अनुभूत की गई साधना है और एक बात, इस साधना को   किए बिना चाहे कितना भी महाविद्या साधना कर  लीजिए,  प्रत्यक्ष अनुभूतियाँ शीघ्र नहीं मिलेगी। इसलिए “अघोरेश्वर शिव साधना”  प्रत्येक साधक के जीवन   में   लक्ष्य-प्राप्ति  की  ओर बढ़ने का एक आसान- सा  मार्ग  है। जिसने  अघोरत्व  प्राप्त कर लिया,  वह तो जीवन मे सब कुछ प्राप्त कर लेता है अन्यथा  जीवन  जीने का हर एक अन्दाज़ व्यर्थ ही इच्छा पूर्ति हेतु गँवा देता है।

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ नया और  अद्भुत  करने का लक्ष्य होता है। कुछ नहीं तो कैरियर,  कारोबार  या  सफल  व्यक्तित्व का उद्देश्य अवश्य रहता है। निरन्तर प्रयास के साथ-साथ लक्ष्य साधने की कोशिश और चीवटता बनी रहे, इसके लिए यदि अघोर शिव साधना की जाए तो चमत्कारी लाभ निश्चित  है। मान्यता  है कि प्रत्येक साधक के लिए लक्ष्य  साधने का यह आसान जरिया है। यह साधना वैदिक या शाबर मन्त्र से की जा सकती है।

इस  साधना  से सभी प्रकार के ग्रह दोषों  से  मुक्ति  मिलती है, सभी साधनाओं में पूर्ण सफलता  मिलती  है, सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों से सुरक्षा  प्राप्त  होती है। अगर पुराना कोई मन्त्र-तन्त्र दोष  किसी  साधक  के  जीवन में हो, चाहे वह इस जन्म का हो या पूर्वजन्म का हो तो वह भी समाप्त हो जाता है। चाहे साबर मन्त्र हो, वैदिक हो या अघोर मन्त्र हो, इन सभी में इस साधना को सम्पन्न करने के पश्चात पूर्ण सफलता मिलती है।

साधना के समय शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी महसूस होगी, ऐसे समय में घबराना मत और साधना को अधूरा नहीं छोड़ना है। ऐसे समय में दुर्गन्ध  या डरावनी आवाज़ आ सकती है तो यह भी आपकी  साधना  में  सफलता  के  लक्षण हैं,  जिसे आपको महसूस करना है। इस साधना के माध्यम से भोले  बाबा  अपने  भक्तों  को स्वप्न में दर्शन भी प्रदान करते हैं और आशीर्वाद भी।

साधना विधान:-

इस  साधना  को सम्पन्न करने का सर्वाधिक उपयुक्त  समय शिवकल्प ही है, अतः आप इसे  शिवकल्प में ही सम्पन्न करें। यदि यह सम्भव न  हो तो इसे श्रावण मास में किसी भी सोमवार से शुरू किया  जा सकता है, लेकिन यदि इसे शिवकल्प और महाशिवरात्रि के अवसर पर सम्पन्न किया जाए तो यह अत्यधिक श्रेष्ठ माना गया है।

यह साधना रात्रि के १० बजे के बाद प्रारंभ  करनि  चाहिए। इस  साधना में आसन-वस्त्र काले  रंग के उत्तम होते हैं, परन्तु यदि आपके पास उपलब्ध  न  हो  तो,  जो  भी  उपलब्ध हो, उसे ही इस्तेमाल करें। ईशान दिशा की ओर साधक का मुख रहेगा,  माला  रुद्राक्ष  या  काले  हकीक की हो। इस साधना  में  पारद शिवलिंग की आवश्यकता होती है और उसी पर यह साधना सम्पन्न की जाती है। यदि आपके  पास  पारद  शिवलिंग नहीं है तो फिर जिस शिवलिंग  का  पूजन  आप  करते हैं,  उसी पर यह साधना सम्पन्न करें।

मूल  साधना से पूर्व सामान्य गुरु पूजन  करें एवं  गुरु मन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से अघोरेश्वर शिव साधना सम्पन्न करने  हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

तदुपरान्त संक्षिप्त गणेश पूजन करें और किसी भी गणेश मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर  भगवान  गणपतिजी  से  साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

क्योकि यह एक तान्त्रिक मन्त्र साधना  है। इसलिए  इस साधना में दिग्बन्धन और सुरक्षा  घेरा  बनाना आवश्यक है। इसके लिए दाहिने हाथ में सरसों के दाने लेकर “रं” बीज मन्त्र का १०८ बार  उच्चारण  करते  हुए अभिमन्त्रित कर लें। इन अभिमन्त्रित  सरसों  के दानों को बाएँ हाथ से थोड़े-थोड़े  लेकर  निम्न  मन्त्र  का  उच्चारण करते हुए क्रमशः दसों दिशाओं में फेंकते जाएं।

॥ ॐ वज्रक्रोधाय महादन्ताय दश दिशो बन्ध-बन्ध हूं फट् स्वाहा॥

इसके  बाद  आसन के चारों ओर कील  या  लोहे  की धारदार वस्तु से “ॐ रं अग्नि-प्राकाराय  नमः”   मन्त्र  का  उच्चारण  करते  हुए गोलाकार  घेरा  बना  लेना  चाहिए,  जिससे आपकी अदृश्य शक्तियों से रक्षा होगी।

तत्पश्चात महामृत्युंजय मन्त्र का उच्चारण  करते हुए भस्म और चन्दन को मिलाकर अपने मस्तक पर तिलक लगाएं।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

इसके बाद पारद शिवलिंग का सामान्य  पूजन  भस्म  मिश्रित चन्दन, अक्षत, पुष्प आदि  से  करके  भोग में कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करें।

फिर मन्त्र  जाप  से  पूर्व  हाथ जोड़कर  भगवान  अघोरेश्वर  शिव की निम्नानुसार स्तुति करनी चाहिए।

प्रार्थना:-

जय  शम्भो  विभो  अघोरेश्वर  स्वयंभो  जयशंकर।

जयेश्वर  जयेशान  जय जय जय  सर्वज्ञ कामदम्॥

इस साधना में काली हकीक माला  या रु द्राक्ष की माला से अघोरेश्वर शिव मन्त्र का  २१ माला जाप किया जाता है। मन्त्र इस प्रकार है।

शिव अघोर साधना

मन्त्र :-

॥  ॐ   ह्रां   ह्रीं   हूं अघोरेभ्यो सर्वसिद्धिं देहि-देहि अघोरेश्वराय हूं ह्रीं ह्रां ॐ फट् ॥

मन्त्र  जाप  के  उपरान्त भी उपरोक्तानुसार प्रार्थना करना आवश्यक है। अतः पुनः हाथ जोड़कर भगवान अघोरेश्वर शिव की स्तुति (प्रार्थना) करें।

इस प्रकार प्रार्थना (स्तुति) करने के बाद  एक  आचमनी  जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप भगवान अघोरेश्वर शिवजी को समर्पित कर दें।

यह साधना नित्य ग्यारह दिन तक  करनी चाहिए, ताकि सर्व कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो और  आपको  भोले  बाबा शिव शंकर का आशीर्वाद प्राप्त  हो।  अन्तिम  दिन  साधना समाप्ति के बाद पाँच बिल्वपत्र, दुग्ध युक्त जल, अक्षत (चावल), गन्ध, वस्त्र, पुष्प,  लड्डू का भोग, दक्षिणा मूल मन्त्र बोलकर चढ़ाएं।

इस तरह साधक शिव अघोर साधना करके भगवान् शिव की सिद्धि हासिल कर सकता हे और भगवान् शिव साधक की हर मनोकामना पूर्ण करता हे.

यह भी पढ़े

शिव वशीकरण 

दिवालन साधना

लोना चमारी साधना

आशो महेतारानी साधना

यक्षिणी साधना

 

 

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here