साधक मित्र श्री कामाक्षायाष्टक का पाठ करके माता कामाख्या का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे, साधक को दिन में एक बार इसका पाठ अवश्य करना चाहिए, श्री कामाक्षायाष्टक का पाठ साधक अगर ब्रह्म मुर्हुत में करता हे तो उसको ज्यादा फायदा होता हे इसलिए हो सके तो इसका पाठ ब्रह्म मुर्हुत में ही करे,
श्री कामाक्षायाष्टक
एक समय यज्ञ दक्ष कियो तब न्योत सबै जग के सुर डारो। ब्रह्म सभा बिच माख लग्य तेहि कारण शंकर को तजिडारो। रोके रुके नहिं दक्ष सुता, बुझाय बहू विधि शंकर हारो। तेरो है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।।। संग सती गण भेज दिये, त्रिपुरारि हिये मँह नेक विचारो। राखे नहीं संग नीक अहै जो रुके तो कहूँ नहिं तन तजि डारो। जाय रुकी जब तात गृहे तब काहु न आदर बैन उचारो। नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो ।2। मातु से आदर पाय मिली भगिनी सब व्यंग मुस्काय तात न पूछ्यो बात कछू यह भेद सती ने नहीं विचारो । उचारो। जाय के यज्ञ में भाग लख्यो पर शंकर भाग कतहुँ न निहारो नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।3। तनक्रोध बढ्यो मनबोध गयो, अपमान भले सहि जाय हजारो। जाति निरादर होई जहाँ तहँ जीवन धारन को धिक्कारो। देह हमार है दक्षके अंश से जीवन ताकि सो मैं तजि डारो। नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।4। अस कहि लाग समाधि लगाय के बैठि भई निश्चय उर धारो। प्रान अपान को नाभि मिलय उदानहिं वायु कपाल निकारो। जोग की आग लगी अब ही जरि छार भयो छन में तन सारो। बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।5। हाहाकार सुन्यो गण शंभु तो जग विध्वंस सबै करि डारो। जग्य विध्वंसि देखि मुनि भृगु मंत्र रक्षक से सब यज्ञ सम्हारो। वीरभद्र करि कोप गये और दक्ष को दंड कठिन दै डारो। नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।6। दुखकारन सतीवश कांधे पे डार के विचरत है शिवजगत मंझारो। नाम तेरो बास करें काज सक्यो तब देव गये और श्रीपति के ढिंग जाय पुकारो। विष्णु ने काटि किये शव खण्ड गियो जो जहाँ तहँ सिद्धि बिद्यरो। नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।7। योनि गिट्यो कामाख्या थल सों, बन्यो अतिसिद्ध न जाय संभारो। सुर तीन दिना जब मासिक धर्म में देवि निहारो। कहत गोपाल सो सिद्ध है पीठ जो माँगत है मिल जात सो सारो। नाम तेरो बड़ा है जग में करुणा करके मम कष्ट निवारो।8।
दोहा-
लाल होई खल तीन दिन, जब देवि रजस्वला होय।
मज्जन कर नर भव तरहि, जो ब्रह्म हत्यारा होय।।।
कामाख्या तीरथ सलिल, अहै सुधा सम जान।
कह गोपाल सेवन करूं, खान, पान, स्नान ।2।
भक्ति सहित पदिहै सदा, जो अष्टक को मूल।
तिनकी घोर विपत्ति हित, शरण तुम्हारि त्रिशूल 13 ।
कामाख्या जगदम्बिके, रक्षहु सब परिवार।
भक्त ‘गिरि’ पर कृपा करि, देहु सबहिं सुख डार।4।
इस तरह साधक श्री कामाक्षायाष्टक का पाठ करके माता की कृपा दृष्टी पा सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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