आज में इस पोस्ट के जरिये षटकिन्नरी साधना देने वाला हु इस साधना को सिद्ध करके साधक एक साथ ६ किन्नरी की सिद्धि हासिल कर सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे षटकिन्नरी साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
१ मनोहारिणी किन्नरी २ सुभगा किन्नरी ३ विशाल नेत्रा ४ सूरतप्रिया किन्नरी ५ सुमुखी किन्नरी ६ दिवाकरमुखी किन्नरी
मनोहारिणी किन्नरी साधन
मंत्र
“ॐ मनोहारिणी हो”
साधन विधि-
साधक को चाहिए कि वह किसी पर्वत के शिखर पर बैठकर उक्त मन्त्र का पाठ सहस्त्र की संख्या में जप करे । जप समाप्त हो जाने पर नीलगाय के मांस से पूजन कर गूगल की धूप देकर पुनः जप करना चाहिए। इस विधि से साधन करने पर अर्ध रात्रि के समय ‘मनोहारिणी किन्नरी’ साधक के समीप आती है।
साधक को चाहिए कि वह उसे देखकर भयभीत न हो। जब किनरी आकर कहे-“तुम मुझे क्या आग्ना देते हो ?” उस समय साधक उत्तर दे-“तुम मेरी पत्नी हो जाओ। यह सुनकर किन्नरी साधक की भार्या होना स्वीकार कर लेती है तथा साधक को अपनी पीठ पर चढ़ाकर स्वर्ग का दर्शन कराती है और उसे भोजन तथा अन्य अभिलाशीत वस्तुएँ प्रदान करती है।
सुभगा किन्नरी साधन
“ॐ सुभगे स्वाहा”
साधन विधि –
साधक को चाहिए कि वह व्रत रखकर पर्वत, वन अथवा देव मन्दिर में बैठकर उक्त मन्त्र का दस सहस्त्र जप करे।
इसके फलस्वरूप ‘सुभगा किन्नरी’ साधक के समीप जाकर अपने हाथों से उसकी सेवा करती है तथा उसकी पत्नी बनकर, उसे प्रति- दिन स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है।
विशालनेत्रा किन्नरी साधन
ॐ विशाल नेत्रे स्वाहा”
साधन विधि-
रात्री काल में नदी के तट पर जाकर उक्त मन्त्र का सहस्त्र की संख्या में जप करे तथा किन्नरी का विधिवत् पूजन कर उपर्युक्त मन्त्र का पुन:बार जप करें तो रात्रि के अन्त में विशालनेत्रा किन्नरी’ साधक के समीप आकर, उसकी पत्नी होकर, प्रतिदिन प्रसन्न हृदय से आठ स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है तथा उसकी सब इच्छा को पूरा करती है।
सुरतप्रिया किन्नरी साधन
“ॐ सुरतप्रिये स्वाहा”
साधन विधि-
रात्रि के समय किसी नदी के संगम-स्थल पर जाकर उक्त मन्त्र का आठ सहस्त्र की संख्या में जप करे। जप के अन्त में पहले दिन ही सुरतप्रिया किन्नरी’ शीघ्रता पूर्वक साधक के समीप आकर अपनी दिव्य मूर्ति प्रदर्शित करती है। दूसरे दिन इसी प्रकार जप के अन्त में उपस्थित होकर, साधक के सामने बैठकर बात करती है और तीसरे दिन इसी प्रकार जप के अन्त में आकर साधक की पत्नी होना स्वीकार करती है तथा उसे प्रतिदिन दिव्य वस्त्र एवं आठ स्वर्ण-मुद्रा प्रदान करती है। साथ ही साधक की समस्त मना-भिलाषा को पूर्ण करती है।
समुखी किन्नरी साधन
मंत्र
” ॐ सुमुखि स्वाहा”
साधन विधि
साधक को चाहिए कि वह प्रतिदिन पर्वत के शिखर पर चढ़कर मांसाहार प्रदान पूर्वक उक्त मन्त्र का दस सहस्त्र की संख्या में जप करे। जप के अन्त में ‘सुमुखी किन्नरी’ साधक के समीप आकर मौनभाव से उसका चुम्बन और आलिंगन करती है।
तदुपरान्त प्रसन्न होकर उसकी पत्नी बन जाती है और साधक को प्रतिदिन उत्तम भोज्य पदार्च तथा आठ स्वर्ण-मुद्रा प्रदान करती है।
दिवाकरमुखी किन्नरी साधन
मंत्र
“ॐ दिवाकरमुखी स्वाहा
साधन विधि-
साधक को चाहिए कि वह रात्रि के समय पर्वत के शिखर पर बैठकर उक्त मन्त्र का दस सहस्त्र संख्या में जप करे।तदुपरान्त ‘दिवाकर मुखी किन्नरी का विधिपूर्वक पूजनकर, पुनरवार आठ सहस्र की संख्या में मन्त्र का जप करे तो ‘दिवाकरमुखी किन्नरी प्रसन्न होकर साधक के समिप आती है और उसकी पत्नी बन जाती है। तत्पश्चात् वह प्रतिदिन कोई न कोई अभिलाषित वस्तू, आठ स्वर्ण मुद्रा और अनेक रसयुक्त भोज्य पदार्थ आदि साधक को प्रदान करती है।
इस तरह साधक षटकिन्नरी साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे और उसके आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे.
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