संकट मोचन पाठ

अगर किसी व्यक्ति पर घोर संकट आ जाये महा मुसीबत आ जाये तब उसको संकट मोचन का पाठ करना चाहिए इस संकट मोचन का पाठ करके मनुष्य आनेवाले संकट से बच सकता हे, इस संकट मोचन का पाठपको दिन में एक बार अवश्य करना चाहिए,

संकट मोचन पाठ

संकट मोचन पाठ

बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।

ताहि सो त्रास भयो जग को,  यह संकट  काहु सो जात न टारो ।

देवन आनि  करी  विनती   तब   छाँड़ि  दियो रवि कष्ट निवारो

को नाहिं जानत है जग में,  कपि  संङ्कट  मोचन नाम तिहारो।

बालि की त्रास कपीस  बसै, गिरि  जात  महा  प्रभु पंथ निहारो ।

चौकि  महा  मुनि  साप  दियो  तब  चाहिय  कौन विचार विचारो ।

कै द्विज रूप  लिवाय  महाप्रभु  सो  तु  दास  के सोक निवारो ।

अंगद के संङ्ग लेन गये सिय,  खोज  कपीस  यह बैन उचारो।

जीवत ना बचिहौ हमसों जु, बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।

हेरि थके  तट  सिंधु  सबै  तब,  लाय  सिया  सुधि प्राण उबारो ।

रावनत्रास दई सिवको, सब राक्षसि सों कहि  सोक निवारो।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो।

चाहत सीय अशोक  सो  आगि  सुदै  प्रभु  मुद्रिका सोक निवारो।

बान लग्यो उर लछिमन के  तब  प्रान  तजे  सुत रावन मारो ।

लै गृह बैद्य सुखेन समेत,  तबै गिरि  द्रोन  सुबीर उपारो।

आनि  सजीवन  हाथ  दई  तब,  लक्षिमन  के  तुम प्रान उबारो।

रावन जुद्ध अजान कियो तब, नाग  की फाँस  सबै सिर डारो ।

श्री रघुनाथ समेत सबै दल, माँहि भयो यह संकट भारो।

आनि खगेस तवै हनुमान जु बन्धन काटि सुत्रास निवारो । बन्धु समेत जब  अहिरावन,  लै  रघुनाथ पताल सिधारो ।

देविहि पूजि भली विधि सौं, बलि देऊँ  सबै  मिलि मन्त्र विचारो।

जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन  सैन्य  समेत संहारो ।

काज किये बड़ देवन के तुम बीर महा प्रभु  देखि विचारो।

कौन सो संकट मोर गरीब  को,  जो   तुमसे   नहिं जात है टारो ।

बेगि हरो हनुमान  महाप्रभु, जो कुछ संकट    होय हमारो

॥दोहा ।

लाल   देह  लाली    लसे,   अरु  धरि   लाल   लंगूर

बज्र देह दानव  दलन, जय  जय  जय  कपिसूर ।।

संकट मोचन स्तोत्रम्

काहे बिलम्ब करो अञ्जनी-सुत सङ्कट  बेगि  में होहु सहाई ।

नहिं जप जोग न ध्यान करो तुम्हरे पद  पङ्कज में सिर नाई ।

खेलत  खात  अचेत  फिरौं  ममता  मद  लोभ  रहे तन छाई ।

हेरत पन्थ रहो निसि वासर कारन कौन  विलम्ब लगाई।

काहे बिलम्ब करो अञ्जनी सुत सङ्कट  बेगि  में होहु सहाई ।

जो अब आरत होइ पुकारत राखि लेहु यम  फाँस बचाई ।

रावन गर्व हने दस मस्तक घेरि  लंगूर  की  कोट बनाई ।

निशिचर मारि विध्वंस कियो घृत लाइ  लंगूर  में लंक जराई ।

जाइ पताल  हने  अहिरावण,  देविहिं  टारि  पाताल पठाई ।

वै भुज काह  भये  हनुमन्त लियो  जिहि  ते सब सन्त   बचाई ।  औगुन  मोर  क्षमा    करु  साहेब जानिपरी भुज की प्रभुताई ।

भवन अघार बिना घृत दीपक टूटि परो यम त्रास दिखाई

काहि पुकार करो यहि औसर भूलि गई जिय  की चतुराई ।

गाढ़ परे  सुख  देत  तुहीं प्रभु रोषित देखि के जात डेराई ।

छाड़े हैं माता पिता परिवार पराई गही  शरणागत आई ।

जन्म  अकारथ   जात  चले  हनुमान  बिना   नर्हि कोठ सहाई

मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी भवसागर  पार  लगाओ गोसाई ।

पूज  कोऊ  कृत  काशी  गयो  मह  कोऊ  रहे  सुर ध्यान लगाई।

जानत शेष महेश गणेश  सुदेश सदा  तुम्हरे  गुन गाई ।

और  अवलम्ब  न   आस   छुटै   सब   त्रास    छुटे हरिभक्ति दृढ़ाई ।

सन्तन  के  दुख  देखि  सह  नहिं  जान  परि बड़ी वार लगाई ।

एक अचंभो लखो हिय में कछु कौतुक  देखि  रहो नहिं जाई ।

कहुँ ताल मृदंग बजावत गावतजात महादुख बेगि नसाई ।

मूरित  एक    अनूप    सुहावन   का    बरणो     वह सुन्दरताई ।

कुञ्चित केश कपोल बिराजत  कौन  कली    बिच भौर लुभाई ।

गरजै घनघोर घमण्ड घटा बरसै जल अमृत देखि सोहाई ।

केतिक क्रूर  बसे  नभ  सूरज  सूरसती  रहे  ध्यान लगाई ।

भूपन  भौन  विचित्र  सोहावन गैर  बिना  बर  बेनु बजाई ।

किंकिन  शब्द  सुनै  जग  मोहित  हीरा  जड़े   बहु झालर लाई ।

सन्तन के  दुख  देखि  सको  नहिं  जान परि बड़ी बार लगाई ।

सन्त  समाज  सबै  जपते  सुरलोक  चले  प्रभु  के गुण गाई ।

केतिक   क्रूर   बसे  जग  में  भगवन्त  बिना  नहिं कोऊ सहाई ।

नहिं  कछु  वेद  पढ़ो  नहिं  ध्यान  धरो   बनमाहि इकन्तहि जाई ।केवल  कृष्ण  भज्यो   अभिअन्तर धन्य गुरू जिन पन्थ दिखाई ।

स्वारथ  जन्म  भये  तिनके    जिन्हको    हनुमन्त लियो अपनाई ।

का बरणो करनी तरनी जल मध्य पड़ी  धरि पार लगाई

जाहि जपै  भव  फन्द  करें  अब  पन्थ  सोई  तुम देहु दिखाई

हेरि  हिये  मन  में  गुनिये  मन  छूटि  गयो जिय काह समाई ।

साँस चले पछितात सोई तन जात चले  अनुमान बड़ाई ।

यह जीवन जन्म है थोड़े दिना   मोहिं  का  करिहै यमत्रास दिखाई।

काहि कहै कोऊ व्यवहार करै  छलछिद्र  में  जन्म गवाँई ।

रे  मन  चोर  तू  सत्य  कहा अब का  करिहँ  यम त्रास दिखाई ।

जीव दया करु साधु की सङ्गत लेहि   अमर  पद लोक बड़ाई ।

रहा न औसर जात चले भजिले  भगवन्त धनुर्धर राई ।

काहे बिलम्ब करो अञ्जनीसुत संडूट बेगि में होहु सहाई ।

उपर्युक्त संकट   मोचन का पाठ साधक  को   हर संकट से बचाता हे, इसका  पाठ दिन में एक बार जरुर करना चाहिए,पाठ के दरमियान  गूगल  का धुप जरुर करे।

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