अप्सरा साधना की सम्पूर्ण विधि में आज आपको बताने वाला हु साधक मित्र रम्भा अप्सरा साधना से रम्भा अप्सरा की सिद्धि हासिल कर सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे रम्भा अप्सरा साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
साधना आरम्भ करने से पहले आप नहा धोकर अच्छे कपडे पहन खुद को शुद्ध और पवित्र कर लें. उसके बाद आप पीले रंग के आसन पर बैठ जाएँ और पूर्व दिशा की तरफ मुंह करें. ध्यान रहें कि आप अपने पास फूलों की २ मालायें अवश्य रखें और जब अप्सरा आयें तो एक उसे पहना दें, दूसरी माला को वो आपको पहनाएगी. आप अगरबत्तियां और १ घी के दीपक जलाएं. अपने सामने खाली स्टील की प्लेट को रखना बिलकुल ना भूलें. अब आप गुलाब की पंखुडियां लेते हुए अपने दोनों हाथों को जोड़ें और “
मंत्र
ॐ रम्भे आगच्छ पूर्ण यौवन नमस्तुते ”
मंत्र का जप करें. हर मंत्र के बाद आप कुछ पंखुड़ियों को स्टील की प्लेट में डालें. आपको कम से कम १०८ बार इस मंत्र का जाप करना है. स्टील की थाली कुछ देर बाद पंखुड़ियों से भर जायेगी. आप उस पर अप्सरा माला रख दें।
इसके बाद आपको गुलाबी कपडे को बिछाकर उस पर सौंदर्य गुटिका,साफल्य मुद्रिका और राम्भोत्किलन यंत्र को स्थापित करना है. अब आप उनका पंचोपचार पूजन करें. आप सारी सामग्री पर इत्र छिड़कना बिलकुल ना भूलें. अब आप गुलाबी रंग के चावलों के साथ यन्त्र की पूजा करें और निम्नलिखित मन्त्रों का जाप करें।
रम्भा अप्सरा
रम्भा:
प्रमुख ११ अप्सराओं में प्रधान अप्सरा रंभा के कई कारनामें हैं। रम्भा अपने रूप और सौन्दर्य के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थी।
यही कारण था कि हर कोई उसे हासिल करना चाहता था। रामायण काल में यक्षराज कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। रावण ने रम्भा के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था जिसके चलते रम्भा ने उसे शाप दिया था कि ‘जा, जब भी तू तुझे न चाहने वाली स्त्री से संभोग करेगा, तब तुझे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ेगा।’
माना जाता है कि इसी शाप के भय से रावण ने सीताहरण के बाद सीता को छुआ तक नहीं था। महाभारत’ में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है। स्वर्ग में अर्जुन के स्वागत के लिए रम्भा ने नृत्य किया था। उस वक्त ऊर्वशी भी थीं जो अर्जुन पर मोहित हो गई थी।एक बार विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलवाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा लेकिन ऋषि इन्द्र का षड्यंत्र समझ गए और उन्होंने रंभा को हजार वर्षों तक शिला बनकर रहने का शाप दे डाला। सवाल यह उठता है कि अपराध को इंद्र ने किया था फिर सजा रंभा को क्यों मिली? हालांकि वाल्मीकि रामायण की एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण द्वारा यह ऋषि के शाप से मुक्त हुई थीं। लेकिन स्कन्द पुराण के अनुसार इसके उद्धारक ‘श्वेतमुनि’ बताए गए हैं, जिनके छोड़े बाण से यह शिलारूप में कंमितीर्थ में गिरकर मुक्त हुई थीं।
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