यक्षिणी बहुत प्रकार की होती हे इसके कार्य उसको सिद्ध करने की विधि अलग अलग होती हे कई यक्षिणी सात्विक साधना से सिद्ध होती हे तो कई यक्षिणी तामसिक साधना से सिद्ध की जाती हे, आज में आपको अमृता यक्षिणी साधना कैसे करते हे उसकी विधि बताऊंगा,
यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न नामबारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है। अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषानों को पूर्ति के लिए तंत्र शास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधना की क्रियाओं का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।
तो चलिए विस्तार से जानते हे अमृता यक्षिणी साधना कैसे करते हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मंत्र-
“ॐ ह्रीं चण्डिके हंसः ह्रीं क्लीं स्वाहा ।”
साधन विधि-
इस साधना को किसी भी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ कर पूर्णिमा तक जब तक चन्द्रमा दिखाई दे तब तक करना चाहिए । इस सम्पूर्ण अवधि में एक लाख मंत्र का जप करना चाहिए।
इसके फल स्वरूप अमृता नामक यक्षिणी साधक को अमृत देकर चिरजीवी बना देती है- ऐसा तंत्र शास्त्रों का कथन है।यक्षिणी डराने के लिए कई बार रूप बदलकर सामने प्रगट होती हे पर साधना को बिच में खंडित करे बिना ही साधना शुरू रखनी हे जब आप यक्षिणी की साधना करो तब किसी योग्य गुरु का मार्गदर्शन लेकर ही करे या अपने इष्टदेव की आज्ञा लेकर ही साधना का प्रारम्भ करे और रक्षा मंत्र से सुरक्षा घेरा अवश्य बना ले,
इस तरह आप अमृता यक्षिणी साधना करके अमृता यक्षिणी को सिद्ध कर सकते हो.
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