आज में साधक मित्रो के लिए शक्तिशाली कामख्या कवच लेकर आया हु इसका जाप साधक को दिन में एक बार अवश्य करना चाहिए और पाठ के समय साधक को लोबान का धुप करना चाहिए,
कामख्या कवच
ॐ कामाख्या कवचस्य मुनिर्वृहस्पतिः स्मृतः।
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुप्छन्द इष्यते।।
विनियोगः सर्वसिद्धौ तंच शृण्वन्तु देवताः। शिरः कामेश्वरि देवी कामाख्या चक्षुषी मम।।
शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा। कण्ठे पातु महामाया हृदि कामेश्वरि पुनः।। कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः। त्रिपुरा पाश्वर्योः पातु महामाया तु मेहने। गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम्। जानुनीः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जंघयोः।। महामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा। केशे कोटेश्वरी पातु नासायां पातु दीर्घिका।।
(शुभगा) दन्तसंघाते मातंग्यवतु चांगयोः। बाह्वोमा ललिता पातु पाण्योस्तु वनवासिनी॥ विन्धयवासिन्यंगुलीषु श्रीकामा नखकोटिषु। रोमकूपेषु सर्वेषु गुप्तकामा सदावतु।।
पादांगुलिपाणिभागे पातु मां भुवनेश्वरी। जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्ठाभ्यन्तरेऽवतु।।
पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठरान्तरे। सामिन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्खिद्वन्तरेऽवतु।।
ककारस्त्वचि मां पातु रकारोस्थिषु सर्वदा। लकारः सर्वनाडिषु ईकारः सर्वसन्धिषु॥
चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुमज्जासु सन्ततम्। पूर्वस्यां दिशि चाग्नेय्यां दक्षिणे नैऋते तथा।।
वारुणे चैव वायव्यां कौवरे हरमन्दिरे। अकाराद्यास्तु वैष्णवा अष्टौ वर्णास्तु मंत्रगाः।।पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुद्भवविवृद्धये। ऊर्ध्वाधः पातु सततं मान्तु सेतुद्वयं सदा।। नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मंत्रगोचरे। नवस्वरास्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः।।
वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम्। नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च।।
तत् सेतु सततं पाता क्रव्याझ्यो मान्निवारकौ। नमः कामेश्वरी देवी महामायां जगन्मयीम्।।
या भूत्वा प्रकृतिर्नित्यं तनोति जगदायतम्। कामाख्यामक्षमाला भयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां।।
श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुंकुमापीतवर्णाम्। ज्ञानध्यानप्रतिष्ठा मतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या।।
मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विद्ध्यैरतिस्थाम्। मध्ये मध्यस्थ भागे सततविनमिता भावहारावली या लीला लोकस्य कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्तरूपैकनमा।। विद्या विद्यकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकी वरास्या। नित्यं पायात् पवित्राणववरकरा कामपूर्लेश्वरी नः इति हरः कवचं तनुकेस्थितं शमयति व्यतिक्रम्य शिवे यदि। इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः।।
इतीदं कवचं यस्तु कामाख्यायाः पठेद् बुधः। सुकृत् तं तु महादेवी तनु व्रजति नित्यदा।।
नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्याद्भ्यो भयं तथा। नाग्नितों नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः।।
दीर्घायुर्बहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः। आवत्तवान् शतं देवी मन्दिरे मोदते परे।।
यथा तथा भवेद् बद्धः संग्रामेन्यत्र वा बुधः। तत्क्षाणदेव मुक्तः स्यात् स्मरणात् कवचस्य तु।।
इस तरह साधक कामख्या कवच का पाठ करके माता कामख्या का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे.
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