छिन्नमस्ता माता दस महाविधा में आती हे और बहुत ही बड़ी शक्ति मानी जाती हे छिन्नमस्ता की खासियत ये हे की ये शक्ति हरकोई तांत्रिक क्रिया करने में माहिर मानी जाती हे ऐसा कोई कार्य नहीं हे जो माता छिन्नमस्ता से ना होता हो,माता छिन्नमस्ता की साधना करने से पूर्व छिन्नमस्ता ध्यान करना जरुरी हे फिर साधना का प्रारम्भ कर सकते हे,
छिन्नमस्ता (Chinnamasta) तांत्रिक देवी मां दुर्गा की एक अद्भुत स्वरूप हैं जिन्हें अक्सर जगदम्बा, वज्रेश्वरी, वज्रदेवी या वैद्यनाथी भी कहा जाता है। छिन्नमस्ता ध्यान करने से एक व्यक्ति मां की कृपा, शक्ति और अनंतता के साथ उनके सामर्थ्य को प्राप्त कर सकता है। छिन्नमस्ता का ध्यान करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
स्थान चुनें:
ध्यान करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनें, जहां आप निर्जनता और शांति का अनुभव कर सकते हैं। एक पूजा कक्ष या ध्यान कक्ष का उपयोग करना उपयुक्त हो सकता है।
आसन का चयन करें:
सुखासन (योगिक आसन), पद्मासन (लॉटस पोज) या वज्रासन (डायमंड पोज) जैसे योगिक आसन चुनें। यह आपको स्थिरता और ध्यान केंद्रित करने में मदद करेंगे।
संकल्प बनाएं:
ध्यान शुरू करने से पहले, अपने मन में छिन्नमस्ता देवी की स्थिति और आपके ध्यान के उद्देश्य का संकल्प बनाएं।
आंखों को बंद करें:
आंखें ढंकें और मन को शांत और एकाग्र रखें।
श्वास ध्यान करें:
अपने श्वास को ध्यान दें और अनुयायी हों। आप श्वास को “सो हं” के साथ अंतर्मन में ध्यान दे सकते हैं, जो आपको मां छिन्नमस्ता की प्रत्येक श्वास के साथ जोड़ेगा।
मंत्र जप करें:
“ॐ छिन्नमस्तायै नमः” या “ॐ ह्रीं क्लीं छिन्नमस्तायै नमः” जैसे मंत्र का जप करें। इस मंत्र का नियमित रूप से जप करना आपको मां छिन्नमस्ता की कृपा और आनंद को प्राप्त करने में मदद करेगा।
ध्यान और समाप्ति:
इस ध्यान सत्र को लगभग 15-30 मिनट तक जारी रखें। इसके बाद, आहिस्ता से अपनी आंखें खोलें और ध्यान को समाप्त करें।
छिन्नमस्ता के ध्यान में नियमितता और अनुयायी रहना महत्वपूर्ण है। यह आपको मां की कृपा और आनंद को प्राप्त करने में सहायता करेगा। पूर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ ध्यान करने से छिन्नमस्ता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सकते हैं।
छिन्नमस्ता ध्यान
प्रत्यालीढपदां सदैव दधतीं छिन्नं शिरः कत्रिकाम् ।
दिग्वस्त्रां स्वकबन्धशोणितसुधाधारां पिबन्ती मुदा ॥
नागाबद्धशिरोमणि त्रिनयनां हृद्युत्पलालंकृताम् ।
रत्यासक्तमनोभवोपरि दृढां ध्यायेज्जवासन्निभाम् ।।
दक्षे चातिसिता विमुक्तचिकुरा कत्रि तथा खपरं।
हस्ताभ्यां दधती रजोगुणभवा नाम्नापि सा वणिनी॥
देव्याच्छिन्नकबन्धतः पतदसृग्धारां पिबन्ती मुदा।
नागाबद्धशिरोमणिर्मनुविदा धेया सदा सा सुरैः॥
बामे कृष्णतनुं तथैव दधती खड्गं तथा खप्परं ।
प्रत्यालीढपदा कबन्धविगलद्रक्तं पिबन्ती मुदा ।
सैषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं क्षमा तामसी।
शक्तिःसापि परात्परा भगवती नाम्ना परा डाकिनी॥
इस तरह साधना करने से पहले माता छिन्नमस्ता ध्यान किया जाता हे फिर साधना का प्रारम्भ किया जाता हे.
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