आज में साधक मित्रो के लिए पृथ्वी का गढ़ा धन देखने का प्राचीन मंत्र लेकर आया हु जिसका प्रयोग करके साधक पृथ्वी का गढ़ा धन देख सकता हे,हमारे भारत वर्ष की धरती पर कई सारे युद्ध हुए पृथ्वी में जहा पानी था वहा पर्वत की रचना हो गयी और जहा पर्वत था वहा पानी आ गया बहुत सारे फेरफार हो गए,पूरी नगरी,गाँव शहर पानी में डूब गए इसका मतलब ये हे की पृथ्वी के अन्दर आज भी गढ़ा धन मोजूद हे पर इसका पता नहीं हे किसीको कहा पे धन हे,पृथ्वी के अन्दर बहुत सारा धन हे पर अभी तक इसे कोई निकाल नहीं पाया हे,
आज में आपको ऐसे प्राचीन मंत्र दूंगा जिसका प्रयोग करके आप पृथ्वी में गढ़ा धन आसानी से देख सकते हो,तो चलिए विस्तार से जानते हे पृथ्वी का गढ़ा धन देखने का इस मंत्र का प्रयोग कैसे होता हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
मंत्र
लाल पूंछ की बामनी ताको पकरि मंगाया।
तिहि कालोही लीजिये और मैनसिल लाय ॥
दोनों को मिलवाय के आंजे आंखिन माहिं।
धन दीखे भूखा धरा और गढ़ा तिहि नाहिं।।
तथा
काली मुर्गी ले इकरंगी जिहि का काला मांस।
जिहि की चर्बी नैनन में आंजे मूधन दीखे तास ॥
तथा
काली गैया दूध लाय जिव्हा पर
अरु वाको घृत लाय दोऊ नैनन में
जहां होय धन गढ़ा दबा दृष्टि में आवे।
तिथि नक्षत्र शुभ होय तवै यह जतन करावे ॥
पृथ्वी का गढ़ा धन जाने
जहां पृथ्वी को खोदिये वास कमल की आय
तहां गढ़ा धन जानिये खोदी काढ़ि ले ताय ॥
इस तरह साधक पृथ्वी का गढ़ा धन देखने के लिए हमारे दिए गई मंत्र का प्रयोग करके पृथ्वी का गढ़ा धन देख सकता हे,मंत्र के अन्दर ही विधि हे इसको सोच समजकर साधक को प्रयोग करना हे.
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