मानिनी यक्षिणी साधना

प्राचीन काल में मानिनी यक्षिणी की साधना युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए राजा महाराजा साधना करते थे,राज्य या प्रदेश की प्राप्ति के लिए मानिनी यक्षिणी की साधना होती हे और ये साधना करके उसमे सफल भी होते थे,

मानिनी यक्षिणी की साधना कैसे करते हे और उसका क्या विधि विधान हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे.

यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति  के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें  विविध  प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न  नामबारिणी  यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है। अतः  विभिन्न  कार्यों  की सिद्धि  एवं  विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए  तंत्र   शास्त्रियों  द्वारा विभिन्न  यक्षिणियों  के  साधन  की  क्रियाओं  का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति  यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक  काल  से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे  अभिलषित वर  अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।

अब विभिन्न तन्त्र  ग्रन्थों  से  उद्धत  कर, विभिन्न यक्षिरिणयों के  साधन मंत्र और उनकी  साधन-विधि का वर्णन किया जाता है। पाठ ।  भेद  के  अनुसार जिन यक्षिणियों के साधन-मंत्र  और साधन-विधि में जो अन्तर है, उसे अलग-अलग प्रकार से पृथक्-पृथक् दे दिया गया है । पाठ-भेद से इसमें कई  मन्त्र बार-बार   प्रयुक्त  हुए  हैं। साथ   ही साधन    सम्बन्धी देसी    भाषा   के   मंत्रों   को   भी   इसी  प्रकरण   में  सन्निविष्ट कर दिया गया है।

जिस  किसी  यक्षिणी  का  साधन करना हो, उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी  स्वरूप   का    ध्यान   करे।   मांस-रहित  भोजन  करे,  पान  खाना  छोड़   दे,  किसी  का  स्पर्श   न  करे    यक्षिणी भैरव   सिद्धि   का,   तथा  निश्चिन्त होकर,   एकान्त  स्थान   में  मन्त्र   का   तब   तक जप   करे,  जब   तक सिद्धि  प्राप्त    न    हो।   जिन  यक्षिणियों  के   साधन   के   लिए  जिस   स्थान    पर  बैठकर   मंत्र   जाप की विधि का  वर्णन  किया गया  है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।

मानिनी यक्षिणी साधना

मंत्र

“ॐ ऐं  मानिनी  ह्रीं  एो  हि  सुन्दरी हंस  हंसमिह संगमह स्वाहा।”

साधन विधि-

इस मन्त्र को चौराहे पर बैठकर १२५००० जपने  तथा लाल कमलों का  घी के साथ दशांश हवन  करने  से ‘मानिनी यक्षिणी’ प्रसन्न  होकर  साधक  को  दिव्य खड्ग प्रदान करती है,  जिसके द्वारा वह  राज्य  को प्राप्त कर लेता है।

इस तरह साधक मानिनी यक्षिणी की साधना करके अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे पर ध्यान ये रहे की इसका गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए वरना आपकी सिद्धि नष्ट हो जाएगी.

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