जाप का फल

आज में यहाँ एक ऐसे विषय पे चर्चा करूँगा ऐसे मुद्दे पे चर्चा करूँगा की ये पोस्ट सभी साधक मित्र के लिए कारगर साबित होने वाली हे,मुझे बहुत मसेज और ईमेल आते हे की गुरूजी मेने एक महिना साधना की कोई कहता हे मेने ३ महिना साधना की मंत्र सिद्ध नहीं हुआ साधना सफल नहीं हुई इसका कारण क्या हे वो हमें बताइए,आज में उस कारण के बारे में बताऊंगा,अगर आप सही विधि विधान से साधना नहीं करोगे तो आपको जाप का फल नहीं मिलता,

तो चलिए विस्तार से जानते हे जाप का फल कब नहीं मिलता उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

मंत्र  जाप का फल कब नहीं मिलता, यह कई कारणों पर निर्भर करता है, जैसे कि आपकी भावना, निष्काम भाव से किया गया जाप, नियमितता, और अन्य आवश्यक अंशों पर। मंत्रजाप का सही तरीका और सम्पूर्ण विधि विधान निम्नलिखित है:

जाप का फल

मंत्र का चयन:

सबसे पहले, आपको एक मंत्र का चयन करना होगा जिसे आप जाप करना चाहते हैं. यह मंत्र आपकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त होना चाहिए.

उपयुक्त स्थान चयन:

आपको एक शांत, पवित्र और अप्रत्यक्ष स्थान चुनना चाहिए जहां आप मंत्रजाप कर सकते हैं.

आसन:

एक सुखासन या पादमासन का आसन चुनें जिससे आप सुख से बैठ सकें.

संध्या काल:

मंत्रजाप को संध्या काल में करना अधिक फलकारी माना जाता है।

माला:

एक माला का उपयोग करके मंत्रजाप करें। माला की बीड़ियों की संख्या मंत्र के अनुसार होनी चाहिए.

ध्यान:

मंत्र को मन में स्थिर रूप से रखें और ध्यानपूर्वक जप करें, अन्य चिंताओं से मुक्त रहें.

नियमितता:

मंत्रजाप को नियमित रूप से करें, समय-समय पर इसे छोड़कर नहीं.

भावना:

मंत्रजाप को निष्काम भाव से करें, और भगवान की ओर अपने मन और दिल को दिल से लगाएं.

प्राणायाम:

मंत्रजाप के पहले और बाद में कुछ देर तक गहरी सांस लें और उसे ध्यानपूर्वक छोड़ें।

संकल्प:

मंत्रजाप करते समय  अपने मन में एक संकल्प बनाएं कि आप क्या प्राप्त करना चाहते हैं या किस मार्ग पर बढ़ना चाहते हैं।

ध्यान और नियमितता के साथ मंत्रजाप करने से आप आध्यात्मिक फल प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन यह मानव के अदृष्ट पर भी निर्भर करता है। आपको सांत्विक और निष्काम भाव से मंत्रजाप करने का प्रयास करना चाहिए, और ध्यान में रहने के बावजूद अद्भुत फल का इंतजार करना चाहिए, जो समय के साथ आपको मिल सकता है।

जो  श्रावक  जप करते समय प्रमादी होकर ऊंघते हैं, नींद का झोंका लेते हैं अथवा बार-बार उबासी लेते हैं या  किसी  प्रकार  का  प्रमाद  करते हैं उनका जाप करना  न  करने  के  समान है और जो कोई अपने हृदय में उद्वेग व चंचलता रखता हुआ जप करता है अथवा  माला के मेरुदंड को उल्लंघन कर जप करता है  अथवा  जो  उंगली  के नख के अग्रभाग से जप करता है उसका वह सब जप निष्फल होता है। लिखा भी  है  व्यग्रचिन्तेन  यज्जत-  यज्जत  मरुलंघने। नरवाग्रेण  च  यज्जप्तं  तज्जप्तं  निष्फलं  भवेत्।

जाप करने का विधान

मोक्ष  प्राप्ति  के  लिए  अंगूठे  से  जपना चाहिये, औपचारिक  कार्यों  में  तर्जनी से, धन और सुख की प्राप्ति  के  लिये  मध्यमा से, शान्ति कार्यों के लिये अनामिका  ऊंगली  से,  आव्हानन के  लिये कनिष्ठा से  शत्रु ,नाश के लिये तर्जनी से, धन संपदा के लिये मध्यमा  से, सर्व कार्य की सिद्धि के लिये कनिष्ठा से जाप  करना  चाहिये  एवं  अंगूठे  पर माला रखना चाहिये।

इस तरह साधक अगर विधि विधान से जाप करे तो जाप का फल मिलता हे और मंत्र सिद्धि प्राप्त होती हे.

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