तिलोत्तमा अप्सरा

मनोकामना पूर्ति के लिए साधक अप्सरा की साधना करता हे और मुख्यतः अप्सरा की सिद्धि पत्नी के रूप में की जाती हे अगर साधक अप्सरा की साधना पत्नी के रूप में करता हे तो अप्सरा साधक का साथ कभी नहीं छोडती और सुख दुःख में साधक के साथ खडी रहेती हे, आज में आपको तिलोत्तमा अप्सरा साधना देने वाला हु इसकी साधना करके आप तिलोत्तमा की सिद्धि हासिल कर सकते हो,

तो चलिए विस्तार से जानते हे तिलोत्तमा अप्सरा साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

तिलोत्तमा:

तिलोत्तमा   स्वर्ग   की  परम  सुंदर  अप्सरा  है।

तिलोत्तमा की कई कथाएं पुराणों में मिलती है उन्हीं में  से  एक कथा यह है कि हिरण्यकशिपु के वंश में निकुंभ  नामक  एक असुर उत्पन्न हुआ था, जिसके सुन्द और उपसुन्द नामक दो पराक्रमी पुत्र थे। उनके तप  से  प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने को कहा। दोनों असुरों ने ब्रम्हा जी से अमरत्व का वर मांगा  लेकिन  ब्रह्माजी  ने इसे देने से इनकार कर दिया।ऐसे में दोनों भाइयों ने आपस में विचार विमर्श किया। दोनों ने सोचा कि वे हम दोनों  में बहुत प्रेम है  और हम आपस में  कभी  लड़ते नहीं है। उनको पूर्ण  विश्वास  था  कि  वे  कभी  भी एक दूसरे के खिलाफ  कुछ भी नहीं करेंगे। इसीलिए यही सोचकर उन्होंने  ब्रह्माजी से कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि  एक-दूसरे को छोड़कर इस त्रिलोक में उन्हें कोई भी  नहीं  मार  सके।  ब्रह्मा   ने  कहा- तथास्तु।

बस फिर क्या था दोनों भाइयों सुन्द और उपसुन्द ने त्रिलोक्य  में  अत्याचारों करने शुरू कर दिए जिसके चलते  सभी  ओर  हाहाकार मच गया। ऐसी विकट स्थिति  जानकर ब्रह्मा ने दोनों भाइयों को आपस में लड़वाने  के  लिए  तिलोत्तमा  नाम की अप्सरा की सृष्टि  की।  ब्रह्मा  से  आज्ञा पाकर तिलोत्तमा ने सुन्न और  उपसुन्द  के निवास स्थान विन्ध्य पर्वत की ओर प्रस्थान किया। एक दिन तिलोत्तमा को दोनों भाइयों  ने टहलते हुए और गाते हुए देखा और दोनों ही  उसे  देखकर  सुधबुध खो बैठे। जब उन्होंने सुध संभाली  तब  सुन्द  ने  उपसुन्द  से  कहा कि यह अप्सरा  आज  से  मेरी  पत्नी  हुई। यह सुनते ही उपसुन्द भड़क गया और उसने कहा नहीं तुम अकेले ही  यह  निर्णय  कैसे  ले सकते हो। पहले इसे मैंने देखा  है  अत:  यह मेरी अर्धांगिनी बनेगी।बस फिर क्या था।  दोनों ही भाई जो बचपन से ही एक दूसरे के लिए जान देने के लिए तैयार रहते थे अब वे एक दूसरे की  जान लेने के लिए लड़ने लगे। बहुत समय तक  उनमें  लड़ाई चली और अंतत: वे एक दूसरे के हाथों  मारे  गए।. उल्लेखनीय है कि दुर्वासा ऋषि के शाप  से  यही  तिलोत्तमा  बाण  की पुत्री हुई थी। अष्टावक्र ने भी इसे शाप दिया था।

तिलोत्तमा  अप्सरा  का स्थान समस्त अप्सराओं में वरिष्ठ क्रम में आता है। किंतु वरिष्ठ से यहाँ तात्पर्य आयु से नहीं वरना उस दिव्यता  और  सौन्दर्य  की पराकाष्ठा से है जिसके कारण   उसकी  साधना  विधि  को  प्राप्त  करना अत्यधिक  दुष्कर कार्य  माना गया है। उर्वशी प्रभृति शशिदेव्या,  मृगाक्षी,  रम्भा,  में  तिलोत्तमा  का एक विशिष्ट  स्थान रहा है तथा मुख्य रूप से यह केवल इन्द्र के दरबार में ही अपने नृत्य का कौशल प्रदर्शित करने  वाली  अप्सरा के रूप में, साधनात्मक ग्रंथों में वर्णित,  कथित  है,  लेकिन  वह साधक ही क्या जो चुनौती  न  ले  सके  और तंत्रात्मक प्रकृति की इस साधना को  सम्पन्न करने से पूर्व यह आवश्यक है। साधक के मन में प्रबल चुनौती का भाव हो। चुनौती के  आधार पर ही सम्पन्न की गई तंत्र साधनाओं में तीव्रता से सफलता मिलती है।

इस  प्रयोग को सम्पन्न करने के इच्छुक साधक के लिए  आवश्यक  है  कि  उसके  पास ताम्र पत्र पर अंकित  अप्सरा यंत्र तथा स्फटिक माला हो। साधक पीले वस्त्र पहनकर पूर्व की ओर मुख करके इस यंत्र पर केसर से ऊपर ‘तिलोत्तमा’ एवं उसके नीचे अपना नाम  लिख  कर  स्फटिक  माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप सम्पन्न करे।

तिलोत्तमा अप्सरा

मंत्र

ॐ  ह्रीं  ह्रीं  तिलोत्तमा  अप्सरायै आगच्छ आगच्छ नमः।।

मंत्र  जप  के  पश्चात  यथा  सम्भव सभी साधना सामग्रियों  को  शीघ्रातिशीघ्र  किसी  स्वच्छ सरोवर अथवा  नदी  में  विसर्जित  कर  दें  तथा  अपनी अनुभूतियों  को केवल गुरुदेव के समक्ष (प्रत्यक्ष रूप से अथवा पत्र के  माध्यम से) ही व्यक्त करें।

इस  साधना  की अपने इष्ट मित्रों आदि से चर्चा न करें,  इससे  प्रभाव में न्यूनता आती है। यदि साधक चाहे तो  आगे भी इस मंत्र की नित्य एक माला मंत्र जप  सम्पन्न  करता रह सकता है। इससे सिद्धि को स्थायित्व  प्राप्त  होता  है।  पौरुष  प्राप्ति एवं पूर्ण गृहस्थ सुख की यह अनुपम साधना है।

इस तरह साधक तिलोत्तमा अप्सरा साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे और उसके आशीर्वाद प्राप्त कर सकता हे.

यह भी पढ़े

चुडेल साधना

चौकी बाँधने का मंत्र

देवी शक्ति को जागृत करे 

बंधन तोड़ने का मंत्र

पीर साधना

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here