नाभिदर्शना अप्सरा

आज में एक ऐसी अप्सरा की साधना दूंगा आपको इस अप्सरा ने भगवांन  को भी अपने यौवन से मंत्र मुग्ध कर दिया था इस अप्सरा का नाम हे नाभिदर्शना अप्सरा , भगवान् भी इसका यौवन देखकर मोहित हो गया था, साधक को  नाभिदर्शना अप्सरा साधना पत्नी के रूप में  करना हे और जिंदगी भर उसको  पत्नी के रूप  में ही रखना हे,

तो चलिए विस्तार से जानते हे नाभिदर्शना अप्सरा साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

साधना  ग्रंथों  में नाभिदर्शना  के  बारे  में जो कुछ मिलता  है  उसके  अनुसार नाभिदर्शना, षोडश वर्षीय अत्यन्त सुकुमार और सौन्दर्य की सम्राज्ञी है। उसका सारा  शरीर कमल से भी ज्यादा नाजुक और गुलाब से  भी  ज्यादा सुंदर  है, उसके  सारे शरीर से धीमी धीमी खुशबू  प्रवाहित  होती रहती है, जो कि उसकी उपस्थिति  का भान कराती रहती है. इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए केश और चन्द्रमा की  तरह लम्बी  बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा  शरीर  एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है, और इसे  इन्द्र का वरदान प्राप्त है, कि जो भी इसके सम्पर्क  मैं  आता  है, वह पुरुष, पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है।

उसके शरीर का काया कल्प हो जाता है, और पौरुष  की दृष्टि से  वह अत्यन्त प्रभावशाली बन  जाता  है।  और  फिर  नाभिदर्शना अप्सरा को विविध  उपहार  देने  का  शौक है। जो पुरुष इसके सम्पर्क  में आता है, उसे यह हीरे, मोती, स्वर्ण मुद्राओं से  एवं विविध उपहारों से सिक्त कर देती है, जीवन भर  उस  पुरुष  के  अनुकूल रहती हुई  वह उसका प्रत्येक मामले  में  मार्गदर्शन करती रहती है, मातृत्व की  तरह विपरिष भोजन कराती है, प्रेमिका की तरह सुख एवं आनन्द की वर्षा करती रहती है।

नाभिदर्शना अप्सरा साधना

यह एक दिन की साधना है, और कोई भी साधक इस साधना  को  सिद्ध कर सकता है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि को यह साधना सिद्ध की जा सकती है।

इस  साधना  को सिद्ध करने के लिए थोड़े बहुत धैर्य की  जरूरत  है,  क्योंकि  कई  बार  पहली  बार में सफलता  नहीं भी मिल पाती, तो साधक को चाहिए, कि  वह इसी  साधना को दूसरी बार या तीसरी बार भी  सम्पन्न  करें,  परंतु  अगले  किसी भी शुक्रवार

साधना  समय  यह  साधना  रात्रि को कर सकते है और  साधक  चाहे  तो  अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर इस साधना को सम्पन्न कर सकता है।

किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक सुंदर, सुसज्जित वस्त्र पहने, इसमें यह जरूरी नहीं है कि  साधक  धोती ही पहिने, परन्तु उसको जो वस्त्र प्रिय  हो,  उस  वस्त्र उसके शरीर पर खिलते हो, या जिन  वस्त्रों  को  पहिनने  से वह सुन्दर लगता हो,

वे  वस्त्र धारण कर साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठे।

बैठने से पूर्व अपने  वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र  का  छिडकाव  करे पहले से ही दो सुंदर गुलाब की मालाएं लाकर अलग पात्र में रख दें। यदि गुलाब की  माला उपलब्ध  ना  हो  तो किसी भी प्रकार के पुष्पों की माला लाकर रख सकता है। फिर   सामने   एक  रेशमी  वस्त्र  पर  अद्वितीय ‘नाभिदर्शना  महायंत्र’ को स्थापित करें और केसर से उसे तिलक करें। यंत्र  के  पीछे नाभिदर्शना चित्र’ को फ्रेम  में  मढ़  कर  रख  दें,  और सामने सुगन्धित अगरबत्ती  एवं  शुद्ध  धूत का दीपक लगाएं। इसके बाद  हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि अमुक गोत्र, अमुक  पिता  का  पुत्र, अमुक  नाम  का  साधक, नाभिदर्शना  अप्सरा  को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह ही सुख,आनंद एवं ऐश्वर्य प्रदान  करे। इसके बाद नाभिदर्शना अप्सरा माला से निम्न मंत्र  जप सम्पन्न करें। इसमें माला मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए। हो  सकता है इसमें तीन या चार घंटे लग सकते है।

अगर  बीच  में घुंघरू की आवाज आए या किसी का स्पर्श  हो  तो  साधक  विचलित  न हो और अपना ध्यान  न  हटाएं,  परन्तु  ५१ माला मंत्र जप एकाग्र चित्त हो कर सम्पन्न करें। इस  साधना में जितनी ही  ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी। ५१ माला पूरी होते होते जब यह अद्वितीय अप्सरा  घुटने  से घुटना सढाकर बैठ जाए, तब मंत्र जप  पूरा  होने  के  बाद  साधक अप्सरा माला को स्वयं  धारण  कर  लें, और  सामने रखी हुई गुलाब माला उसके गले में पहेना दें।

ऐसा  करने  पर नाभिदर्शना अप्सरा भी सामने रखी हुई  दूसरी  माला  उठा कर साधक के गले में डाल देती है।

तब  साधक  नाभिदर्शना अप्सरा से वचन ले ले कि जब  भी अप्सरा  माला से एक माला मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने सु-शरीर उपस्थित होना है, और मैं  जो  चाहूं  वह मुझे प्राप्त होना चाहिए तथा पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा को उल्लंघन न हो।

तब  नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ  रखकर  वचन देती है और जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी।

इस  प्रकार  साधना  को  पूर्ण  समझें,  और साधक अप्सरा  के  जाने  के बाद उठ खड़ा हो। साधक को चाहिए  कि  वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा  और  किसी के सामने स्पष्ट न करे, क्योंकि साधना ग्रंथों में ऐसा ही उल्लेख किया गया हे।

नाभिदर्शना अप्सरा

मंत्र

ॐ श्री नाभिदर्शना अप्सरा प्रत्यक्ष श्री में फट्।।

उपरोक्त  मंत्र  गोपनीय है, साधना सम्पन्न होने पर नाभिदर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने गोपनीय स्थान पर  रख दें, और अप्सरा चित्र को भी अपने बोक्स में रख  दें।  गले में जो अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें।

जिससे  कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके।

जब  साधक  को भविष्य में नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने  की  इच्छा हो, तब  उस  महायंत्र के सामने अप्सरा  माला  से  उपरोक्त मंत्र की एक माला मंत्र जप कर लें।

अभ्यास  होने  के  बाद  तो  यंत्र  या  माला  की आवश्यकता  भी  नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही अप्सरा प्रत्यक्ष प्रकट हो जाती है।

इस तरह साधक नाभिदर्शना अप्सरा साधना करके उसकी सिद्धि प्राप्त कर सकता हे.

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