महानंदा यक्षिणी साधना

आज हम इस पोस्ट के जरिये महानंदा यक्षिणी की साधना सिखाने वाला हु,यक्षिणी की साधना मुख्यतः धन की प्राप्ति,पत्नी की प्राप्ति और सुखमय जीवन जीने के लिए की जाती हे,जो साधक निडर होकर साधना करता हे वो ही साधक यक्षिणी की साधना कर सकता हे,

तो चलिए विस्तार से जानते हे महानंदा यक्षिणी साधना कैसे की जाती हे और उसके निति नियम क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे.

यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति  के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें  विविध  प्रकार  की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न  नामबारिणी  यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों  को मान्यता है। अतः  विभिन्न  कार्यों  की सिद्धि  एवं  विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए  तंत्र   शास्त्रियों  द्वारा विभिन्न  यक्षिणियों  के  साधन  की  क्रियाओं  का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति  यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक  काल  से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे  अभिलषित  वर  अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।

अब से  कुछ सौ वर्ष  भारतवर्ष  में यक्ष-पूजा  का  अत्यधिक प्रचलन था। अब भी उत्तर भारत के कुछ भागों  में ‘जखैया’  के  नाम से यक्ष-पूजा  प्रचलित है। पुरातत्त्व  विभाग द्वारा  प्राचीन काल में निर्मित यक्षों की  अनेक प्रस्तर  मूर्तियों की खोज की जा चुकी है। देश  के  विभिन्न   पुरातत्त्व संग्रहालयों  में  यक्ष  तथा यक्षिणियों  की  विभिन्न प्राचीन  मूर्तियाँ  भी   देखने  को  मिल  सकती हैं। कुछ लोग  यक्ष  तथा  यक्षिणियों  को  देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं  और उसी प्रकार उनका पूजन तथा आराधनादि भी करते हैं ।इनकी संख्या सहस्रों में हैं।

महानंदा यक्षिणी साधना

मन्त्र-

ऐं ह्रीं महानन्दे भीषणे ह्रीं ह्र स्वाहा।

साधन विधि-

तिराहे पर बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख  जप  करे तथा दशांश घी एवं गूगल का होम करे तो ‘महानन्दा यक्षिणी’   प्रसन्न  होकर   साधक  को   विचित्र    सिद्धि प्रदान करती है।

इस तरह साधक महानंदा यक्षिणी साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे,जब ग्रहण काल हो या नर्कचतुर्दशी हो तब साधक को उपर्युक्त मंत्र की २१ माला करनी चाहिए ताकि मंत्र जागृत रहे.

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