आज में साधक को बहुत ही शक्तिशाली और तीव्र रतिसुन्दरी योगिनी साधना देने वाला हु इसको सिद्ध करके आप योगिनी की सिद्धि हासिल कर सकते हो,
तो चलिए विस्तार से जानते हे रतिसुन्दरी योगिनी साधना कैसे करते हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
साधक को चाहिए कि वह सर्वप्रथम रेशमी वस्त्र में योगिनी की प्रतिपूर्ति अंकित करे। ध्यान में देवी का जो स्वरूप कहा गया है,
उसी के अनुसार प्रतिमूर्ति बनानी चाहिए।
ध्यान का स्वरूप इस प्रकार है-
रतिसुन्दरी योगिनी स्वरों के समानवर्ण वाली गौरांगी तथा वायजेव, भाजयन्त, हार आदि सब प्रकार के अलंकारों से अलंकृत है। उनके दोनों नेत्र बिरे हुए कमल के समान सुन्दर है।
ध्यान के इस स्वरूप का निम्न श्लोक में वर्णन किया गया है-
सुवर्णा गोरागी साल जारभूषिताम् ।
नूपुरीगदहाराव्या रम्या च पुष्कर क्षणाम् ।।
इस प्रकार देवी स्वरुप का चिन्तन कर पाय, चन्दन एवं चमेली आदि के पुष्पों से पूजन कर, मूल मन्त्र का जप करना पाहिए।
मूल मन्त्र यह है-
ॐ ह्रीं आगच्छ रतिसुन्दरि स्वाहा।
इस मन्त्र का प्रतिदिन आठ सहस्त्र की संख्या में जप करना चाहिए।
तदुपरांत मूलमन्त्र से गूगल, धुप और दीप प्रदान करना चाहिए।
एक मास तक इस प्रकार जप करके महीने के अन्तिम दिन में फिर पूजन करना चाहिए और घी का दीपक, गन्ध, पुष्प, ताम्बुल निवेदित करके ‘रति सुन्दरी योगिनी’ के आगमन की प्रतीक्षा करनी चाहिए।जब तक देवी न आये, तब तक जप करना है। इस प्रकार साधक को दृढ़ प्रतिज्ञा जानकर योगिनी देवि रात्रिकाल में आती हैं। उन समय साधक को चाहिए कि वह चमेली के फूलों से रचित माला द्वारा भक्तिपूर्वक योगिनी का पूजन करे । उस स्थिति में देवी साधक से संतुष्ट होकर, उसे रति एवं भोज्य पदार्थ प्रदान कर सन्तुष्ट करती हैं तथा उसकी भायाँ (पत्नी) होकर अभिलाषित वर देती हैं। देवी साधक के समीप राषि व्यतीत कर प्रातःकाल के समय अपने वस्त्राभूषण त्याग कर चली जाती है, फिर साधक की भावानुसार प्रतिदिन आती-जाती बनी रहती है।
इस तरह साधक रतिसुन्दरी योगिनी साधना करके योगिनी की सिद्धि हासिल कर सकता हे.
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