किसी भी क्रिया करने से किसी भी चीज का स्तम्भन हो जाये यानि की उसका बंधन हो जाये उसको हम तंत्र की भाषा में स्तम्भन कहते हे,देव देवी को बांधना,किसी शक्ति को बांधना, डाकिनी शाकिनी को बांधना,भुत प्रेत को बांधना ये सब क्रिया स्तम्भन क्रिया में आता हे,षट कर्म में से एक कर्म स्तम्भन कर्म हे,अगर साधक के पास स्तम्भन क्रिया हे तो किसी भी चीज़ को आसानी से बाँध सकता हे, कई कई तांत्रिक तो ऐसे हे जो पशु पक्षी को भी बाँध देते हे जब तक उसका प्रभाव नाबूद ना हो तब तक वो कुछ नहीं कर पाते,आज इस पोस्ट में हम आसन स्तम्भन मंत्र के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे,
इस मंत्र को सिद्ध करके साधक आसन का स्तम्भन कर सकता हे.
मंत्र
ॐ नमः दिगम्बराय ‘अमुकं’ आसनं स्तंभनं कुरु कुरु स्वाहा।
आसन स्तम्भन मंत्र को सिद्ध करने का विधान
इस मंत्र का जप श्मशान भूमि में किया जाता है। यह आवश्यक नहीं कि मंत्र सिद्धि रात में ही की जाए, दिन में भी इसकी सिद्धि की क्रिया की जा सकती है। इस मंत्र का एक हजार आठ बार जप करके, चिता की अग्नि में एक सौ आठ बार नमक (साबुत) से आहुति देने से मंत्रसिद्धि हो जाती है। मंत्र में ‘अमुकं’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम बोलना चाहिए, जिसके आसन का स्तंभन करना है।
प्रयोग के समय थोड़ा जल हाथ में लेकर और उस पर ग्यारह बार मंत्र पढ़कर आसन पर फेंकने से आसन का स्तंभन हो जाता है।
आसन स्तम्भन मंत्र की सिद्धि मिल जाने के बाद इसका कही भी गलत उपयोग ना करे जिस जगह पर ऐसा लगे की आसन स्तम्भन की जरुरत हे वहा ही इस मंत्र का उपयोग करे,और इस मंत्र को जागृत रखने के लिए किसी ग्रहण काल या किसी शुभ पर्व पर उपर्युक्त मंत्र की २१ माला करके इसको सिद्ध करले ताकि मंत्र जागृत रहे.
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