कर्णपिशाचिनी यक्षिणी साधना बहुत ही खतरनाक और तीव्र साधना हे यक्षिणी तो वेसे कई प्रकार की हे, कर्णपिशाचिनी यक्षिणी साधना करना हर कोई के बश की बात नहीं हे क्योकि अगर इस साधना में जरा सी चुक हो गई तो उसका नकारात्मक परिणाम खुद साधक को भुगतना पड सकता हे,
कोई तांत्रिक या जिसने पहले से ये साधना की हे और सिद्धि हासिल कर रखी हे उसके सानिध्य में या उसका मार्गदर्शन लेकर इस साधना का प्रारम्भ करना चाहिए,अगर आपके कोई गुरु हे तो उसके सानिध्य में भी ये साधना सम्पन्न की जा सकती हे,
मुझे सब साधक मित्रो बोलते हे की गुरु ऐसी कोई साधना बताए जिसमे गुरु की जरुरत न पड़े और घर में ही सम्पन्न की जाये,कई साधना आप बिना गुरु के कर सकते हो और कोई ऐसी खतरनाक और तीव्र साधना हे इसमें गुरु की आवश्यकता पड़ती हे,बिना गुरु के भी साधना सम्पन्न हो जाती हे पर आपको जिस भी शक्ति की साधना करनी हो उस शक्ति की अनुमति लेनी पड़ती हे बाद में अपने इष्ट देव की फीर आप गुरु गोरखनाथ या भोलेनाथ अपना गुरु बनाकर साधना में प्रवेश कर सकते हो,
बिना गुरु के साधना करने में आपको विधि विधान और पूरी श्रद्धा के साथ करनी पड़ेगी तब जाके साधक को सफलता मिल सकती हे और साधक के पास सुरक्षा मंत्र होना जरुरी हे,
कर्णपिशाचिनी यक्षिणी साधना मन्त्र:-
“ॐ क्रीं समान शक्ति भगवति कर्णपिशाचिनी चण्डरोषिणि वद वद स्वाहा।।
साधन विधि-
पहले इस मंत्र का ११००० जप करे, फिर गवार पाठे को दोनों हाथों पर मलकर शयन करे तो शयन के समय में ‘कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी’ समस्त शुभ फल को कह जाती है।
११००० जाप पुरे करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करे ये जाप साधक ११ दिन में भी सम्पन्न कर सकता हे,पूरी श्रद्धा और विस्वास के साथ ये साधना करोगे तो साधक को साधना में अवश्य सफलता मिलेगी,
कर्णपिशाचिनी यक्षिणी साधना करके साधक बहुत ही बड़ा तांत्रिक कार्य कर सकता हे,किसीका और खुद का भुत भविष्य जान सकता हे,किसीको आसानी से अपने वश में कर सकता हे.
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