काल भैरव अष्टक

काल भैरव अष्टक का पाठ साधक भैरवजी को प्रसन्न करने के लिए और उसकी कृपा दृष्टी पाने के लिए पाठ करता हे,कोई भी साधक हो अगर वो भैरव की उपासना या साधना कर रहा हो तो उसको काल भैरव अष्टक का पाठ करना चाहिए ताकि साधना में सफलता मिलती हे,

काल भैरव अष्टक एक पूजा पाठ है जो काल भैरव की महिमा और आराधना को समर्पित है। यह अष्टक (आठ श्लोकों का समूह) काल भैरव के गुणों, आराध्यता और महत्व का वर्णन करता है। यह पाठ उन भक्तों द्वारा किया जाता है जो काल भैरव की कृपा, संरक्षण और सुख की कामना करते हैं।

काल भैरव हिन्दू देवता हैं, जो मां दुर्गा के  वीर माने जाते हैं। वे काली भैरव और रुद्र भैरव के नाम से भी जाने जाते हैं। काल भैरव को आदिनाथ भी कहा जाता है, क्योंकि वे शिव के पहले ज्ञान गुरु माने जाते हैं। वे शक्ति, न्याय, धर्म और सत्य के प्रतीक माने जाते हैं।

इस अष्टक के द्वारा उनकी पूजा और आराधना करने से मान्यता है कि भक्त को भैरव की कृपा प्राप्त होती है, उनके द्वारा संरक्षण मिलता है और उनकी कृपा से सभी आपत्तियों और संकटों का निवारण होता है।

इस अष्टक के श्लोक तांत्रिक मान्यताओं के साथ संबंधित हैं और इसका पाठ भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाता है। इसे नियमित रूप से पाठ करने से भक्त को आध्यात्मिक उन्नति, धैर्य, शांति, सुख और सफलता प्राप्त होती है।

काल भैरव अष्टक

काल भैरव अष्टक

असितांगं चन्द्रानातं नागकोटिभूषणं

महाकालं त्रिनेत्रं च नीलकण्ठं त्रिलोचनम्।

मालकेतुकं भस्माङ्गं स्फटिकाकृतिं त्रिशूलिनम्

दिव्यं बरंबरं दक्षं खड्गत्रिंशूलभूषणम्॥

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपा करम् । नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २॥

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३॥

भुक्तिमुक्ति दायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्त लोक विग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ ४॥

धर्म सेतु पालकं त्वधर्म मार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् । स्वर्ण वर्ण शेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥ अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् । नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥

॥ फल श्रुति॥

काल भैरवाष्टकं  पठंति  ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।  शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति    कालभैरवांघ्रिसन्निधिं   नरा    ध्रुवम् ॥

॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥

इस काल भैरव अष्टक का पाठ करके साधक भैरवजी की कृपा पा सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे,घर में कलेश रहेता हो या सुख समृद्धि ना हो तो साधक को काल भैरव अष्टक का पाठ करना चाहिए.

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