यक्षिणी कई प्रकार की होती हे और उसकी साधना भी अलग अलग प्रकार से की जाती हे,यक्षिणी की साधना साधक माता,बहेन और पत्नी के रूप में कर सकता हे,यक्षिणी साधना में आपको कुछ खास नियमो का पालन करना पड़ता हे,दारू और मांस से दूर रहे और पराई स्त्री से दूर रहे,यहाँ हम जलवासिनी यक्षिणी की साधना के बारे में बात करेंगे,
सही विधि विधान के साथ आप यक्षिणी की साधना करोगे तो आपको जरुर सफलता मिलती हे,जलवासिनी यक्षिणी की साधना आपको समुद्रतट पर बैठकर करनी पड़ेगी और एक लाख बार मंत्रजाप करने से जलवासिनी यक्षिणी की सिद्धि मिलती हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे इस पोस्ट में की जलवासिनी यक्षिणी साधना कैसे करे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.
मन्त्र:-
“ॐ भगवन् समुद्रदेहि रत्नानिजलवासो ह्रीं नमस्तुते स्वाहा ।’
साधन विधि-
यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न नामबारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है। अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए तंत्र शास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।
जब आप कोई भी यक्षिणी की साधना करो आपको पहले गुरु पूजन और उसका आशीर्वाद लेना चाहिए अगर आपका कोइ गुरु नहीं हे तो आपको अपने इष्ट देव का पूजन करके और भगवान भोलेनाथ का पूजन करके आपको साधना का प्रारम्भ करना चाहिए,
समुद्र तट पर बैठकर, इस मन्त्र का एक लाख जप करने से जलवासिनी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को उत्तम! रत्न प्रदान करती है,
इस तरह साधक जलवासिनी यक्षिणी साधना करके अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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