बटुक भैरव की साधना से पूर्व साधक को बटुक भैरव का ध्यान करना जरुरी हे जो साधक भैरव का उपासक हे वो भी बटुक भैरव ध्यान करता हे,
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्। दिव्याकल्पैर्नव- मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥ दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्। हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥
अर्थात् भगवान् श्री बटुक भैरव बालक रूप ही हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुंघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव-मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्ज्वल रूपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं।
कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है। भगवान भैरव के ध्यान के बाल स्वरूप, आपदा उद्धारक स्वरूप के ध्यान के पश्चात् गंध, पुष्प, धूप, दीप, इत्यादि से निम्न मंत्रों के साथ ‘बटुक भैरव यंत्र’ का पूजन सम्पन्न करे।
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक- भैरव-प्रीत्यर्थे घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।
विधि:-
बटुक भैरव यंत्र पूजन के पश्चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न बटुक भैरव मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें।
आह्वाहन मंत्र
आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।
प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥
बटुक भैरव आह्वाहन के पश्चात् साधक भैरव का ध्यान करते हुए अपनी शत्रु बाधा शांति हेतु भैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें।
संकल्प मैं अपनी अमुक शत्रु-बाधा के निवारण हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं। बाधा निवारण संकल्प के पश्चात् ‘बटुक भैरव गुटिका’ का सिन्दूर लगाकर पूजन करें। उस सिन्दूर से स्वयं के मस्तक पर भी तिलक लगाये। इसके पश्चात् पांचों आक्रान्त चक्र का सिन्दूर, कुंकुम, काजल, सफेद पुष्प से पूजन करें। अब एक पात्र में काली सरसों, काले तिल मिलाएं, उसमें थोड़ा तेल डालें, थोड़ा सिन्दूर डालकर उसे मिला दें, इस मिश्रण को निम्न भैरव मंत्र का जप करते हुए ‘बटुक भैरव गुटिका’ के समक्ष थोड़ा-थोड़ा कर 21 बार अर्पित करते रहें।
विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकं, महाभैरव नमः। सर्व दुष्ट विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धि कुरु।
ॐ काल भैरव, बटुक भैरव, भूत-भैरव, महा-भैरव महा-भय विनाशनं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत्।
उपरोक्त मंत्र जप के पश्चात् भैरव के निम्न मंत्र का ११ माला जप करें।
साधना मंत्र
॥ॐ हृीं भैरव भैरव भयकरहर मां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा॥
विधि:-
इस प्रकार जप पूर्ण कर भैरव को दूध से बना नैवेद्य अर्पित करें इसमें साधक खीर का भी इस्तेमाल कर सकता हे। आप स्वयं भी इस नैवेद्य को ग्रहण करें। इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है।
प्रयोग समाप्ति के पश्चात् समस्त सामग्री को किसी काले वस्त्र में बांध कर अगले दिन जल में विसर्जित कर दें। शत्रु बाधा निवारण का यह बहुत ही तीव्र प्रयोग है, साधकों ने इस प्रयोग को सम्पन्न कर अपनी बाधाओं को जड़ मूल से समाप्त किया है। इस विशिष्ट प्रयोग को किसी को हानि पहुंचाने या उसको नुकसान कराने के लिये नहीं करना चाहिए। भैरव तीव्र वशीकरण सम्मोहन प्रयोग नौकरी, व्यापार, जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि आप चाह कर भी किसी को अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते।
ऐसे कई लोग हैं जिनको इस बात का दुःख होता है कि जीवन में उन्हें ‘मौका ’ नहीं मिला। अक्सर लोग इस बात को कहते हैं कि – उसे अपनी बात कहने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये काम नहीं हुआ। जीवन में आने वाले अवसरों अर्थात् ‘मौके ’ को सु-अवसर में बदलने के लिये सम्पन्न करें भगवान भैरव का यह अति विशिष्ट वशीकरण प्रयोग। जिसको सम्पन्न करने के पश्चात् आप जिस किसी को भी अपने वश में करना चाहते हैं अथवा अपनी बात को उसके सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कर सकते हैं।
यह प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का तंत्र वशीकरण प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है। साधना विधान तंत्र वशीकरण प्रयोग किसी भी रविवार अथवा मंगलवार को सम्पन्न किया जा सकता है।
यह रात्रि कालीन प्रयोग है जिसे रात्रि में 12 बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए । इस प्रयोग हेतु मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘भैरव वशीकरण गुटिका’ तथा ‘काली हकीक माला’ की आवश्यकता होती है। रात्रि में साधक स्नान, ध्यान कर किसी शांत स्थान पर बैठकर यह साधना सम्पन्न करें। साधना स्थल को पहले से ही साफ-स्वच्छ कर लें।
भैरव का यह प्रयोग उत्तर दिशा की ओर मुख करके सम्पन्न करना चाहिए। अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर एक पीपल का पत्ता रखें। पत्ते पर कुंकुम से उस व्यक्ति के नाम का प्रथम अक्षर लिख दें जिसे आप वशीभूत करना चाहते हैं। इसके पश्चात् इस पत्ते पर ‘भैरव वशीकरण गुटिका’ स्थापित कर दें। गुटिका का संक्षिप्त पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें तथा धूप, दीप प्रज्जवलित कर लें।
इस तरह साधक बटुक भैरव ध्यान करके बटुक भैरव को प्रसन्न कर सकता हे,
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