महायक्षिणी साधना सबसे खतरनाक और प्रचंड मानी जाती हे,इसकी साधना करना कोई बच्चो का खेल नहीं हे जिसके पास कोई भी तांत्रिक शक्ति हे वही साधक ही महायक्षिणी साधना कर सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे महायक्षिणी साधना कैसे होती हे और उसके निति नियम क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे.
जिस किसी यक्षिणी का साधन करना हो, उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करे। मांस-रहित भोजन करे, पान खाना छोड़ दे, किसी का स्पर्श न करे यक्षिणी भैरव सिद्धि का, तथा निश्चिन्त होकर, एकान्त स्थान में मन्त्र का तब तक जप करे, जब तक सिद्धि प्राप्त न हो। जिन यक्षिणियों के साधन के लिए जिस स्थान पर बैठकर मंत्र जाप की विधि का वर्णन किया गया है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।
जिस किसी यक्षिणी का साधन करना हो, उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान करे। मांस-रहित भोजन करे, पान खाना छोड़ दे, किसी का स्पर्श न करे यक्षिणी भैरव सिद्धि का, तथा निश्चिन्त होकर, एकान्त स्थान में मन्त्र का तब तक जप करे, जब तक सिद्धि प्राप्त न हो। जिन यक्षिणियों के साधन के लिए जिस स्थान पर बैठकर मंत्र जाप की विधि का वर्णन किया गया है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।
साधना के साधारणतया नियम माने जाते हैं तथा विशिष्ट प्रयोगों में यंत्र प्राप्त कर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर आवश्यक वस्तुएं, जो हर किसी देवी की अलग-अलग होती हैं, का प्रयोग किया जाता है।
मंत्र
ॐ ह्रीं महायक्षिणि भामिनि प्रिये स्हा ।
साधन विधि-
रवि अथवा चन्द्रवार से प्रारम्भ करके प्रथम तीन दिन करके माला, गंध और स्नानादि उपचारों से देवी की पूजा करे। तदुपरान्त ग्रहण लगने पर मन्त्र जपना प्रारम्भ करे और ग्रहण के मोक्ष तक मन्त्र का जप करता रहे तो महायक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित वस्तु प्रदान करती है।
इस तरह साधक महायक्षिणी साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे.
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