सब साधक मित्रो मुझे बहुत मेसेज आते हे की गुरूजी यक्षिणी को कैसे सिद्ध किया जाता हे क्या यक्षिणी बहुत खतरनाक हे? ऐसे सवाल हमारे साधक मित्र करते हे,आज में आपको सब यक्षिणी के बारे में बताने वाला हु,यक्षिणी को सिद्ध करना कोई मामूली बात नहीं हे यक्षिणी को सिद्ध करने के लिए आपके पास कोई न कोई शक्ति की साधना होनी चाहिए या अगर आपके पास कोई भी शक्ति की साधना नहीं हे तो आपको ये साधना गुरु के सानिध्य में करनी होगी तब जाके आपको यक्षिणी की सिद्धि प्राप्त होगी,
आज हम इस पोस्ट में यक्षिणी को कैसे सिद्ध किया जाता हे उसकी सारी विधि लेकर आये हे आज में आपको क्षीर यक्षिणी साधना और चन्द्रगिरा यक्षिणी साधना दूंगा जिसको करके आप यक्षिणी को सिद्ध कर सकते हो,
योगिनी, किन्नरी, अप्सरा आदि की तरह ही यक्षिणियां भी मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति करती हैं। साधारणतया 36 यक्षिणियां हैं तथा उनके वर देने के प्रकार अलग-अलग हैं। माता, बहन या पत्नी के रूप में उनका वरण किया जाता है। उनकी साधना के पहले तैयारी की जाती है, जो अधिक कठिन है, बजाय साधना के।
पहले चान्द्रायण व्रत किया जाता है। इस व्रत में प्रतिपदा को 1 कौर भोजन, दूज को 2 कौर इस प्रकार 1-1 कौर भोजन पूर्णिमा तक करके पूर्णिमा के बाद 1-1 कौर कम करते हुए व्रत किया जाता है। इसमें 1 कौर भोजन के अलावा कुछ नहीं लिया जाता है। इससे कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। पश्चात 16 रुद्राभिषेक किए जाते हैं, साथ में महामृत्युंजय 51 हजार तथा कुबेर यंत्र 51 हजार कर भगवान भूतनाथ शिवजी से आज्ञा ली जाती है। स्वप्न में यदि व्यक्ति के श्रेष्ठ कर्म हों तो भोलेनाथ स्वयं आते हैं या सुस्वप्न या कुस्वप्न जिसे गुरुजी बतलाकर संकेत समझकर प्रार्थना की जाती है। कुस्वप्न होने पर साधना नहीं की जानी चाहिए। यदि की गई तो फलीभूत नहीं होगी या फिर नुकसान होगा। साधना के दौरान ब्रह्मचर्य, हविष्यान्न आदि का ध्यान रखता होता है।
साधना के साधारणतया नियम माने जाते हैं तथा विशिष्ट प्रयोगों में यंत्र प्राप्त कर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर आवश्यक वस्तुएं, जो हर किसी देवी की अलग-अलग होती हैं, का प्रयोग किया जाता है।
यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति के पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती हैं। विभिन्न नामबारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी तान्त्रिकों को मान्यता है। अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषानों को पूति के लिए तंत्र शास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं का प्राविष्कार किया गया है । यक्ष जाति यूँकि चिरंजीवी होती है, अतः पक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक पर प्रसन्न हो जाती हैं , उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान करती हैं।
अब से कुछ सौ वर्ष भारतवर्ष में यक्ष-पूजा का अत्यधिक प्रचलन था। अब भी उत्तर भारत के कुछ भागों में ‘जखैया’ के नाम से यक्ष-पूजा प्रचलित है। पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्राचीन काल में निर्मित यक्षों की अनेक प्रस्तर मूर्तियों की खोज की जा चुकी है। देश के विभिन्न पुरातत्त्व संग्रहालयों में यक्ष तथा यक्षिणियों की विभिन्न प्राचीन मूर्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं।
कुछ लोग यक्ष तथा यक्षिणियों को देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं और उसी प्रकार उनका पूजन तथा आराधनादि भी करते हैं ।इनकी संख्या सहस्रों में हैं।
क्षीर यक्षिणी साधना
मंत्र
ॐ नमो ज्वालामाणिक्यभूषणायै नमः ।
यक्षिणी को कैसे सिद्ध किया जाता हे?
अपने घर के द्वार की वेदिका में बैठकर रात्रि के समय इस मन्त्र का १५००० जप करे तथा घी, दूध सहित प्रार्थना करे तो ‘क्षीरयक्षिणी’ प्रसन्न होकर साधक को केले के फल प्रदान करती हे।
चन्द्रगिरा यक्षिणी साधन
मंत्र
ॐ गुलु गुलु चन्द्रामृतमयि अवजातिलं हुल हुलु चन्द्रणि रे स्वाहा।
यक्षिणी को कैसे सिद्ध किया जाता हे?
घर में अथवा बन में इस मंत्र का १००००० जप करे तथा प्रतिदिन पुष्प, धूपादि से पूजन कर पंचामृत द्वारा दशांश हवन करे तो चन्द्रगिरा यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को प्रति दिन एक सहस्र स्वर्ण-मुद्रा प्रदान करती है।
यक्षिणी को कैसे सिद्ध किया जाता हे? उस सवाल का जवाब आपको मिल गया होगा आप दोनों यक्षिणी में से एक की साधना करके सिद्धि हासिल कर सकते हो.
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