योगिनी की साधना और उसकी सिद्धि मुख्यतः पत्नी के रूप में की जाती हे आज में आपके लिए मनोहरा योगिनी साधना लेकर आया हु, इस योगिनी की साधना करके साधक अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे,
तो चलिए विस्तार से जानते हे मनोहरा योगिनी साधना कैसे होती हे और उसका विधि विधान क्या हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,
पत्नी रूप में सिद्ध हो जायें, तब साधक को चाहिये कि वह अपनी पत्नी प्रथया अन्य किसी स्त्री के साथ सहवास न करे और उससे प्रामक्ति को त्याग दे। अन्यथा देवी कुल उग्र हो जाती हे।
साधक को चाहिये कि वह नदी-तट पर जाकर स्नानादि नित्य- क्रियाओ को समाप्त कर पूर्वोक्त साधन के अनुसार न्यास आदि सब कार्यो को करे। फिर चन्दन द्वारा मंडल अंकित करके उस मष्डल में देवो का मंत्र लिखे । मन्त्र यह है-
मंत्र
ॐ ह्री मनोहरे आगच्छ स्वाहा।
साधन विधि
मन्त्र लेखनोपरान्त मनोहरा योगिनी का ध्यान करे। ध्यान के समय चिन्तन का स्वरूप निम्नानुसार हो- देवी के नेत्र हिरण के नेत्रों के समान सुन्दर, मुख शरद चन्द्र मा के समान सुशोभित, ओठ बिम्बाकल के समान अरुण वर्ण, सांग, सुगन्धित तथा चन्दन से अनुनिष्त, श्रेष्ठ आभूषण, वस्त्रादि धारण किये हुये। अत्यन्त स्थल स्तन तथा शरीर का वर्ण श्याम है। वे विचित्र वर्ण वाली योगिनी कामधेनु के समान साधक को समस्त मनोभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं।
चिन्तन के इस स्वरूप का निम्नलिखित श्लोकों में वर्णन किया गया है-
कुरंगनेत्रां शरदिन्दुवस्त्रां बिम्बाधर चन्दन गन्थलिप्तान, चीनांशुको पीनकुचा मनोशा स्यामां सदा कामदुधा विपित्राम,
इस प्रकार योगिनी देवी का ध्यान करके, विधिपूर्वक पूजन कर, मन्त्र का जप करना चाहिये । अगर, धूप, दीप,गंध, पुष्प, मधु और ताम्बुल आदि से मूल मन्त्र द्वारा पूजन करे । तदुपरान्त मूल मन्त्र का प्रतिदिन दस सहस्त्र की संख्या में जप करे।
इस तरह एक मास तक निरन्तर जप करता रहे। मास के अंतिम दिन में प्रातःकाल से मन्त्र जपना पारंभ करके दिन भर जप करता रहे । अर्ध रात्रि तक अप करते रहने पर मनोहरा योगिनी साधक को दृढ प्रतिज्ञ जानकर, प्रसन्नतापूर्वक उसके पास आती है तथा साधक से कहती है तुम्हारे मन में जो अभिलाषा हो, वह वर मांग लो।उस समय साधक फिर से देवी का ध्यान करके पाचादि उपचार से उनका पूजन करे।
इस योगिनी की पूजा में ही मन्त्र से प्राणायाम तथा हा अनुष्ठा- भ्या नमः इत्यादि प्रकार से कराग्यास करना चाहिये। तथा साधक सावधान होकर सोमांस द्वारा बलि प्रदान पूर्वक चन्दन के जल एवं अनेक प्रकार के पुष्पों से मनोहरा देवी का पूजन करे तथा अपने मन की अभिलाषा योगिनी के समक्ष प्रकट करे। इस प्रकार साधन करने से योगिनी प्रसन्न होकर साधक के मन की सब अभिलाषा को पूरा करती है तथा उसे प्रतिदिन सो स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है। साधक को चाहिये कि उसे योगिनी द्वारा जो धन प्राप्त हो, सब को व्यय न कर दे, बचाके रखे। कयोंकि कुछ भी न बचाने पर देवी क्रूर होकर साधक को फिर कुछ नहीं देती।
इस योगिनी का साधन करने वाला व्यक्ति अन्य स्त्री को त्याग दे। इस साधन के प्रभाव से साधक अव्याहतमति होकर सर्वत्र विवरण कर सकता है। यह योगिनो साधन सुरासुरगणों के पक्ष में भी अत्यन्त गोपनीय है।
इस तरह साधक मनोहरा योगिनी साधना करके उसकी सिद्धि हासिल कर सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.
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