शिव चालीसा

आज में साधक मित्रो के लिए शक्तिशाली शिव चालीसा लेकर आया हु इसका जाप करके आप भगवान् शिव को प्रसन्न कर सकते हो, भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए साधक जितना कष्ट सहन करे जितने सेवा पूजा करे उतना ही कम हे,

साधक को साधना से पूर्व यानि की मूल मंत्र जाप से पहले शिव चालीसा का पाठ करना अनिवार्य हे, साधक को कम से कम एक बार शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए,

शिव चालीसा

दोहा

जय   गणेश   गिरिजा   सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत    अयोध्यादास  तुम,   देउ  अभय  वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजापति दीनदयाला।

सदा करत संतन प्रतिपाला॥

भाल चंद्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर सिर गंग बहाए।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघंबर सोहै।

छवि को देखि नाग मुनि मोहै॥

मैना मातु कि हवै दुलारी।

वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा।

तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा॥

कियो उपद्रव तारक भारी।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।

लव निमेष महं मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा करि लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं।

सेवक अस्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला।

जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ह दया तहं करी सहाई।

नीलकंठ तव नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ गोई।

कमल नैन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभुशंकर।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनासी।

करत कृपा सबके घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौं।

यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

ले त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।

संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं।

जो कोइ जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन।

विघ्न विनाशन मंगल कारन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावें।

नारद सारद शीश नवावें॥

नमो नमो जय नमः शिवाय।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई।

ता पर होत हैं शंभु सहाई॥

ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी।

पाठ करे सो पावनहारी॥

पुत्र होन कर इच्छा कोई।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावै।

ध्यान पूर्वक होम करावै॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।

तन नहिं ताके रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावै॥

जन्म-जन्म के पाप नसावै।

अंत धाम शिवपुर में पावै॥

कहत अयोध्या आस तुम्हारी।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

दोहा

नित्य   नेम   कर   प्रात   ही,  पाठ करो चालीस।

तुम   मेरी   मनोकामना,   पूर्ण   करो  जगदीस॥

मंगसर   छठि   हेमंत   ऋतु,  संवत् चौसठ जान।

अस्तुति   चालीसा  शिवहि,   पूर्ण  कीन  कल्याण॥

इस तरह साधक शिव चालीसा का पाठ करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर सकता हे और अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकता हे.

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