मंत्र के अधिकारी

आज में आपको मंत्र के अधिकारी द्विजवर्णों के योग्य मंत्र क्या हे उसके बारे में बताने वाला हु, हमारे तंत्र शास्त्र में बहुत सारे प्रकार के मंत्र का उल्लेख किया गया हे और सभी मंत्र अलग अलग प्रकार के होते हे,

तो चलिए विस्तार से जानते हे मंत्र के अधिकारी द्विजवर्णों के योग्य मंत्र कौन कौन से होते हे उसके बारे में विस्तार से चर्चा करते हे,

अघोर मंत्र,  दक्षिणामूर्ति  मंत्र, उमा मंत्र, माहेश्वर मंत्र, हयग्रीव  मंत्र,  बाराह मंत्र,  लक्ष्मी मंत्र, नारायण मंत्र, प्रणव  के आरम्भ होने वाले मंत्र, चार अक्षरों के मंत्र, अग्नि के मंत्र, सूर्य के मंत्र, प्रणव से आरंभ होने वाला गणेश  मंत्र,  हरिद्रा  गणेश षड़क्षर राम मंत्र, को और वैदिक  मंत्रों  को  ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही देने चाहिए।

ब्राह्मण और क्षत्रियों के योग्य मंत्र

सुदर्शन मंत्र, पाशुपत मंत्र, आग्नेयास्त्र और नृसिंह मंत्र को ब्राह्मण और क्षत्रिय को ही देना चाहिये अन्य को नहीं।

चारों वर्गों के योग्य मंत्र

छिन्नमस्ता, मांतगी, त्रिपुरा, कालिका, शिव, लघु श्यामा, कालरात्रि,  गोपाल,  राम उग्र तारा और भैरव के मंत्र चारों वर्गों को देने चाहिये। यह मंत्र स्त्रियों को विशेष

रुपसे सरलता से सिद्ध होते हैं। इसकी अधिकारी चारों वर्गों की स्त्रियां ही होती हैं।

वर्ण क्रम से बीजों के अधिकारी

ह्रीं,  क्लीं,  श्रीं  और ऐं बीज ब्राह्मण को दे। क्लीं, श्री और  ऐं  क्षत्रिय को दे। श्रीं और ऐं वैश्य को दे तथा ‘ऐं’ बीज शूद्र को दे। अन्यों को फट् बीज दे।

वर्गों के भेद

वर्ण-रंग    व      मण्डल     की    अपेक्षा

स्वरोष्माणो द्विजाः श्वेता, अबूमण्डलसंस्थिताः ।

कंतस्या   भूर्भुजो   रक्ता-स्तेजोमंडलसंस्थिताः।

चूपूवैश्यान्वयौ    पीतौ     पृथ्वीमंडलभागिनौ।

दुतु    कृष्णत्विषौ    शूद्रौ   वायुमण्डलसंभवौ।

अक्षर वर्ण

रंग

मण्डल मंत्रों के भेद व लक्षण

१. अक्षर  संख्या की अपेक्षा-(१) मंत्र के तीन भेद हैं- बीजमंत्र, मंत्र और मालामंत्र।

एक अक्षर  से  लगाकर  नी  अक्षर तक के मंत्र को बीजमंत्र  कहते  हैं। दस अक्षर से बीस अक्षर तक के मंत्र  को ‘मंत्र’  और  बीस अक्षर से अधिक बालों को माला मंत्र कहते हैं।

(२) बीज  मंत्र सदा ही सिद्ध हो जाते हैं और सदा ही फल  देते  हैं।  मंत्र  वाले  मंत्र,  मंत्री  (साधक) को यौवनावस्था  में ही फल देते हैं। मालामंत्र वृद्धावस्था में फल देते हैं।

(३) प्रकारान्तर  से-सोलह अक्षरों तक माला मंत्र और उससे आगे कल्प कहलाते हैं।

कल्प  इस  लोक  और परलोक दोनों स्थान में फल देते हैं।

२. लिंग की अपेक्षा

लिंग  की  दृष्टि  से मंत्र के तीन भेद हैं- स्त्री, पुरुष और नपुंसक। जिन मंत्रों के अंत में श्री व स्वाहा’ शब्द होता है वह स्त्रीमंत्र कहलाते हैं। हूं वषट्, फट् ये तथा

स्वधा आदि पल्लव जिनमें होते हैं वे पुल्लिंगी मंत्र हैं और नमः अंत वाले मंत्र  नपुंसक होते  हैं। स्त्री मंत्रों का  प्रयोग पाप नष्ट करने में, पुरुष मंत्रों का उपयोग शुभ कर्म, मारण, उच्चाटन, निर्वषीकरण और वशीकरण में  करें  और उच्चाटनादि शेष कर्मों में नपुंसक मंत्रों का प्रयोग करें।

मंत्र के अधिकारी

३. आग्नेय और सौम्य की अपेक्षा-

प्रणव,  अग्नि  और  आकाश बीजों वाले आग्रेय मंत्र कहलाते  हैं। दूसरे  आचार्य सौर्यबीजों को सौम्य और फट अंत  वालों को आग्नेय कहते हैं। आग्नेयों के ही अंत  में ‘नमः’  लगा  देने से वह सौम्य हो जाते हैं।

मारण,  उच्चाटन आदि में आगेय मंत्र बतलावें। शांत वशीकरण,  पौष्टिक  आदि  कर्मों  में सौम्य मंत्रों को बतलावें।  आग्नेय  मंत्र के लिए सायंकाल बाम स्वर और  जागृत  मंत्र कहा है तथा सौम्य के लिए इससे उल्टा लेना चाहिये।

४. प्रबुद्ध व स्वाप की अपेक्षा

मंत्रों  की  दो अवस्थायें होती हैं- स्वाप (सोया हुआ) और  बोध (जागता) आग्नेय की स्वाप दशा होती है। बायें  बहना  प्रबोध  या बोध और दायें बहना स्वाप

कहलाता है। यह एक दूसरे के विपरीत होते हैं। यदि मंत्र दोनों में बह रहा हो तो दोनों ही भेदों को जानना चाहिये । केवल  प्रसुप्त  और केवल प्रबुद्ध सिद्ध नहीं होते।

५. मंत्रों का षडङ्गन्यास पण्डित पुरुष हदय में ‘नमः’, मस्तक में ‘स्वाहा’, चोटी अर्थात शिखा स्थान में वषट् कवच  में ‘ॐ’ और नेत्रों में क्रम से संवौषट् और फट् लगायें।  जिस मंत्र के  पृथक् अंग भेदों का वर्णन न हो  बुद्धिमानी से ही उनकी कल्पना कर लें। एक मंत्र

का  षडङ्ग  न्यास होता है। उस न्यास में पांच अंग का उपदेश भी किया जाता है।

पंचांग मंत्र का नेत्र सहित अनुष्ठान करें।

६. ॐ पंचपरमेष्ठी का वाचक है

ओं कार  पंचपरमेष्ठी  का  द्योतक  है। यह अरहंत, अशरीर (सिद्ध), आचार्य, उपाध्याय और मुनि का प्रथम अक्षर  अ-अ  आ+  उम्-  लेकर  बनाया  गया है।

मंत्र के अधिकारी द्विजवर्णों के योग्य मंत्र के अन्दर उपर्युक्त सभी मंत्र का समावेश होता हे.

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