Yakshini sadhna करने से साधक को हर सिद्धि प्राप्त हो जाती हे,मुख्य रूप से ३६ यक्षिणी हे और उसका वर्णन माता, बहेन या पत्नी के रूप में किया गया हे जब यक्षिणी सिद्ध हो जाये तब वो साधक को इच्छित वर प्रदान करती हे।
हम इस पोस्ट में वशीकरण यक्षिणी साधना, शोभना यक्षिणी साधना और मनोहरा योगिनी साधना के बारे में विस्तार से बात करेंगे।
वशीकरण यक्षिणी साधन
मंत्र-
“ॐ द्वार देवतायै ह्रीं स्वाहा ।”
साधन विधि–
नदी के तट पर, पवित्र होकर बैठे तथा इस मंत्र का ५१००० जप करके दशांश गूगल तथा घी का हवन करे तो वशीकरण यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित वर देती है। इस हवन की भस्म जिस स्त्री के शरीर से लगा दी जाय, वह वशीभूत हो जाती है।
शोभना यक्षिणी साधना
मन्त्रः-
“ॐ अशोक पल्लवाकारकरतले शोभने श्री क्षः स्वाहा”
साधन विधि-
Yakshini sadhna में शोभना यक्षिणी साधना श्रेष्ठ मानी गयी हे,चतुर्दशी के दिन लाल माला एवं लाल वस्त्र धारण करके इस मन्त्र का सवा लाख जप करे तो ‘शोभना यक्षिणी’ प्रसन्न होकर साधक को अनेक प्रकार के भोग प्रदान करती है।
मनोहरा योगिनी साधन
पत्नी रूप में सिद्ध हो जायें, तब साधक को चाहिये कि वह अपनी पत्नी प्रथया अन्य किसी स्त्री के साथ सहवास न करे और उससे प्रामक्ति को त्याग दे। अन्यथा देवी कुल उग्र हो जाती हे।
साधक को चाहिये कि वह नदी-तट पर जाकर स्नानादि नित्य- क्रियाओ को समाप्त कर पूर्वोक्त साधना के अनुसार न्यास आदि सब कार्यो को करे। फिर चन्दन द्वारा मंडल अंकित करके उस मंडल में देवो का मंत्र लिखे । मन्त्र यह है-
मंत्र
ॐ ह्री मनोहरे आगच्छ स्वाहा।
साधन विधि
मन्त्र लेखनोपरान्त मनोहरा योगिनी का ध्यान करे। ध्यान के समय चिन्तन का स्वरूप निम्नानुसार हो-
देवी के नेत्र हिरण के नेत्रों के समान सुन्दर, मुख शरद चन्द्र मा के समान सुशोभित, ओठ बिम्बाकल के समान अरुण वर्ण , सांग, सुगन्धित तथा चन्दन से अनुनिष्त, श्रेष्ठ आभूषण, वस्त्रादि धारण किये हुये। अत्यन्त स्थल स्तन तथा शरीर का वर्ण श्याम है। वे
विचित्र वर्ण वाली योगिनी कामधेनु के समान साधक को समस्त मनोभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं।
चिन्तन के इस स्वरूप का निम्नलिखित श्लोकों में वर्णन किया गया है-
कुरंगनेत्रां शरदिन्दुवस्त्रां बिम्बाधर चन्दन गन्थलिप्तान, चीनांशुको पीनकुचा मनोशा स्यामां सदा कामदुधा विपित्राम।।
इस प्रकार योगिनी देवी का ध्यान करके, विधिपूर्वक पूजन कर, मन्त्र का जप करना चाहिये। अगर, धूप, दीप, गंध, पुष्प, मधु और ताम्बुल आदि से मूल मन्त्र द्वारा पूजन करे । तदुपरान्त मूल मन्त्र का प्रतिदिन दस सहस्त्र की संख्या में जप करे।
इस तरह एक मास तक निरन्तर जप करता रहे। मास के अंतिम दिन में प्रातःकाल से मन्त्र जपना पारंभ करके दिन भर जप करता रहे । अर्ध रात्रि तक अप करते रहने पर मनोहरा योगिनी साधक को दृढ प्रतिज्ञ जानकर, प्रसन्नतापूर्वक उसके पास आती है तथा साधक से कहती है तुम्हारे मन में जो अभिलाषा हो, वह वर मांग लो। उस समय साधक फिर से देवी का ध्यान करके पाचादि उपचार से उनका पूजन करे।
इस योगिनी की पूजा में ही मन्त्र से प्राणायाम तथा हा अनुष्ठा- भ्या नमः इत्यादि प्रकार से करान्ग्न्यास करना चाहिये। तथा साधक सावधान होकर सोमांस द्वारा बलि प्रदान पूर्वक चन्दन के जल एवं अनेक प्रकार के पुष्पों से मनोहरा देवी का पूजन करे तथा अपने मन की अभिलाषा योगिनी के समक्ष प्रकट करे। इस प्रकार साधना करने से योगिनी प्रसन्न होकर साधक के मन की सब अभिलाषा को पूरा करती है तथा उसे प्रतिदिन सो स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है। साधक को चाहिये कि उसे योगिनी द्वारा जो धन प्राप्त हो, सब को व्यय न कर दे , बचाके रखे।कयोंकि कुछ भी न बचाने पर देवी क्रूर होकर साधक को फिर कुछ नहीं देती।
इस योगिनी का साधन करने वाला व्यक्ति अन्य स्त्री को त्याग दे। इस साधन के प्रभाव से साधक अव्याहतमति होकर सर्वत्र विवरण कर सकता है। यह योगिनो साधन सुरासुरगणों के पक्ष में भी अत्यन्त गोपनीय है।
इस तरह साधक Yakshini sadhna और योगिनी की साधना करके अपना जीवन सुखमय बना सकता हे।
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